क्या आप जानते है , वो कौन था जो महाभारत के ५० लाख सेनिको का भोजन हर रोज अकेले बनाता था ?

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Image result for mahabharat sena imageमहाभारत के युद्ध में कौरवो की ओर से 11 अक्षौहिणी  सेना और पांडवो की ओर 7 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था !अक्षौहिणी यानी अत्यंत विशाल और चतुरंगिणी सेना जिसमे 109350 पैदल  , 65610  घोड़े , 21870  रथ , 21870  हाथी होते है अर्थात  वह सेना जिसमे अनेक हाथी , घोड़े , रथ और पैदल सिपाही हो !  यानि इस युद्ध में सभी महारथियों और सेनाओं को मिलाकर करीब 50 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया था ! लेकिन यहां अब सवाल यह उठता है कि इतनी विशालकाय सेना के लिए युद्ध के दौरान भोजन कौन बनाता था और कैसे ये सब प्रबंध करता था और सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हर दिन हज़ारों लोग मारे जाते थे तो शाम को खाना किस हिसाब -किताब से बनता था ! दोस्तों - महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध भी कह सकते है क्योंकि उस समय शायद ही ऐसा कोई राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग न लिया हो ! उस काल में आर्यवर्त के सभी राजा या तो कौरव या फिर पांडव के पक्ष में खड़े दिख रहे थे ! हम सभी जानते है कि श्री बलराम और रुक्मी ये दो ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था किन्तु एक और राज्य ऐसा था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध से विरक्त था और वो था दक्षिण के उड्डपी का राज्य ! महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब उड्डपी के राजा अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुंचे तो कौरव और पांडव दोनों उन्हें अपने -अपने पक्ष में लेने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उड्प्पी के राजा बहुत ही दूरदर्शी थे उन्होंने  श्री कृष्ण से पूछा कि हे माधव दोनों ओर से जिसे देखो युद्ध के लिए ललायित दिखता है किन्तु क्या किसी ने सोचा है कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा महाराज आपने बिलकुल सही सोचा है आपकी इस बात से मुझे प्रतीत होता है कि आपके पास इसकी कोई योजना है अगर ऐसा है तो कृपया बताएं ! उसके बाद उड्प्पी नरेश बोले - हे वासुदेव सत्य तो यह कि भाइयों के बीच हो रहे इस युद्ध को में उचित नहीं मानता ! इसी कारण इस युद्ध में भाग लेने की इच्छा मुझें नहीं है !
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 किन्तु ये युद्ध अब टाला भी नहीं जा सकता इस कारण मेरी यह इच्छा है कि मैं अपनी पूरी सेना के साथ यहां  उपस्थित सभी सेना के लिए भोजन का प्रबंध करूं ! इस पर श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले - महाराज आपका विचार अति उत्तम है इस युद्ध में करीब 50 लाख योद्धा भाग लेंगे और अगर आप जैसा कुशल राजा उनके भोजन के प्रबंध को देखेगा तो हम सभी उस ओर से निश्चिंत ही रहेंगें ! वैसे भी मुझे पता है सागर जैसी इस विशाल सेना को भोजन का प्रबंध करना आप से और भीमसेन  के अतिरिक्त और किसी के लिए भी सम्भव नहीं है किन्तु भीम सेन इस युद्ध से विरक्त नहीं हो सकते ! इसलिए मेरी आप से प्रार्थना है कि आप अपनी सेना सहित दोनों ओर की सेनाओं के भोजन का भार सम्भालिये ! इस प्रकार उड्प्पी के महाराजा ने सेना के भोजन का भार संभाला ! पहले दिन उन्होंने उपस्थित सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया ! उनकी कुशलता ऐसी थी कि दिन के अंत तक एक दाना भी अन्न का बर्बाद नहीं होता था ! जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गयी ! दोनों ओर के योद्धा ये देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि हर दिन के अंत तक उड्प्पी नरेश केवल उतने ही लोगों के लिए भोजन बनवाते थें जितने वास्तव में उपस्थित रहते थें ! किसी को समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें ये कैसे पता चल जाता है कि आज कितने योद्धा मृत्यु को प्राप्त होंगे ताकि उस आधार पर भोजन की व्यवस्थता करवा सके ! इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध करना अपने आप में ही एक आश्चर्य था और उस पर भी इस प्रकार कि एक अन्न का दाना भी बर्बाद ना हो ! ये तो किसी चमत्कार से कम नहीं था ! जब 18 दिन बाद युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों की जीत हुई तो अपने राज्याभिषेक के दिन आख़िरकार युधिष्ठिर से रहा नहीं गया और उन्होंने उड्प्पी नरेश से पूछ ही लिया कि हे महाराज समस्त देशो के राजा हमारी प्रशंशा कर रहे है कि कैसे हमने कम सेना होते हुए भी उस सेना को परास्त कर दिया जिसका नेतृत्व  पितामह भीष्म , गुरु द्रोण और हमारे ज्येष्ठ भ्राता कर्ण जैसे महारथी कर रहे थे किन्तु  मुझे लगता है कि हम सबसे अधिक प्रशंशा के पात्र तो आप है जिन्होंने ना केवल इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया अपितु ऐसा प्रबंध किया कि एक दाना भी अन्न का व्यर्थ ना हो पाया ! मैं आपसे इस कुशलता का रहस्य जानना चाहता हूँ ! इस पर उड्प्पी नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा - सम्राट आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय किसे देंगें !

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इस पर युधिष्ठिर ने कहा - श्री कृष्ण के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसी को जा ही नहीं सकता अगर वे न होते तो कौरव सेना को परास्त करना असम्भव था ! तब उड्प्पी नरेश ने कहा  - हे महाराज आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे है वो भी श्री कृष्ण का ही प्रताप है ! ऐसा सुनकर वहा उपस्थित सभी लोग आश्च्रियचकित हो गए तब उड्प्पी नरेश ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और कहा हे महाराज श्री कृष्ण प्रतिदिन रात्रि को मूंगफली खाते थे !  मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिनकर मूंगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात् गिनकर देखता था कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है वे जितनी मूंगफली खाते थे उसके ठीक हज़ार गुना सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे अर्थात अगर वे 50  मूंगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था कि अगले दिन 50 हज़ार योद्धा युद्ध में मारे जायेंगे उसी अनुपात में मैं अगले दिन भोजन कम बनाता था ! यही कारण था कि कभी भी कुछ व्यर्थ नहीं हुआ ! श्री कृष्ण के इस चमत्कार को सुनकर सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए ! ये कथा महाभारत की सबसे दुर्लभ कथाओं में से एक है ! कर्नाटक के उड्प्पी जिले में स्थित कृष्ण मठ में ये कथा हमेशा सुनाई जाती है ! ऐसा माना जाता है कि इस मठ की स्थापना उड्प्पी के सम्राट द्वारा ही करवाई  गयी थी जिसे बाद में श्री माधव आचार्य जी ने आगे बढ़ाया !



आखिर क्यों परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली थे दानवीर महायोद्धा कर्ण के बाण ? आज के परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली थे महाभारत के कर्ण के बाण .

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महारथी कर्ण महाभारत युद्ध के एक ऐसे महान योद्धा थे जिन्हे अपने जीवन में काल में बार-बार अपमानित होना पड़ा ! जन्म लेते ही उन्हें जन्म देने वाली माता ने त्याग दिया ! शिक्षा ग्रहण करने जब गुरु द्रोणाचार्य के पास गए तो उन्होंने कर्ण को सूत पुत्र होने के कारण शिक्षा देने से मना कर दिया ! तब उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर बभगवान विष्णु  के अंश अवतार परशुराम से शिक्षा ग्रहण की लेकिन वहां भी उन्हें अपमानित ही होना पड़ा क्योंकि शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब गुरु परशुराम को ये बात पता चली कि वो एक ब्राह्मण पुत्र नहीं बल्कि एक सूत पुत्र है तो उन्होंने कर्ण को एक श्रापित जीवन जीने को विवश कर दिया ! लेकिन कर्ण ने कभी हार नहीं मानी और अपने बाहुबल से उन्होंने भारतीय पौराणिक इतिहास में वो ख्याति हांसिल की जिसके वो हकदार थे !

आज हम आपको कर्ण के पराक्रम से अवगत कराएंग और जानेंगे कि उनके पास वे कौन-कौन से अस्त्र -शस्त्र और दिव्यास्त्र थे जिन्होंने उन्हें महारथी बनाया ! कर्ण महाभारत के वे योद्धा थे 
जिन्होंने अधर्म यानि दुर्योधन की ओर से युद्ध लड़ा था पर उन्होंने कभी भी युद्ध नीति को भंग नहीं किया और नाहिं कौरव सेना के सेनापति रहते हुए कोई छल होने दिया ! महारथी कर्ण के पास जो सबसे शक्तिशाली अस्त्र था वह था गुरु परशुराम का दिया हुआ विजिया धनुष ! हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पौराणिक काल में दिव्यास्त्रों के संधान के लिए एक दिव्य धनुष की आवश्यकता होती थी क्योंकि साधारण धनुष से दिव्यास्त्रों का संधान नहीं किया जा सकता था  ! कर्ण का ये धनुंष एक दिव्य धनुष था जिसे उन्हें उनके गुरु परशुराम ने दिया था ! दरअसल जब गुरु द्रोणाचार्य ने सूत पुत्र होने के कारण उन्हें शिक्षा देने से मना कर दिया तो वे अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पाने के लिए एक ब्राह्मण पुत्र बनकर गुरु परशुराम के पास पहुंचे ! क्योंकि उन्हें डर था कहीं सूत पुत्र होने के कारण परशुराम भी उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना न कर दे ! ब्राह्मण के वेश में ही कर्ण ने परशुराम से अस्त्रों-शस्त्रों का ज्ञान तो प्राप्त कर लिया लेकिन एक दिन जब कर्ण की शिक्षा पूर्ण हो चुकी थी तभी उनके गुरु को पता चला किकर्ण किसी ब्राह्मण का पुत्र नहीं बल्कि एक सूत पुत्र है तभी अपने क्रोध के लिए विख्यात परशुराम ने कर्ण को श्राप दे दिया कि तुमने मुझसे धोखे से शिक्षा प्राप्त की है इसलिए जब तुम्हे मेरी दी हुई शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम सब कुछ भूल जाओंगे ! परन्तु जब कर्ण ने वेश बदलने का कारण बताया तब गुरु परशुराम का क्रोध शांत हुआ ! तब उनका मन व्यथित हो उठा तब परशुराम ने कर्ण से कहा कि हे वत्स !

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 मैं अपना दिया हुआ श्राप तो वापिस नहीं ले सकता लेकिन मैं तुम्हे धनुष रूपी एक कवच देता हूँ जब तक ये धनुष तुम्हारे हाथों में रहेगा तब तक तीनों लोकों का कोई भी योद्धा तुमसे जीत नहीं पायेगा ! गुरु परशुराम का ये ही धनुष विजिया धनुष था ! कर्ण ने इस धनुष का इस्तेमाल या तो दिव्यास्त्र चलाने के लिए किया या फिर अर्जुन से युद्ध करते समय ! बांकी का सारा समय वे साधारण धनुष से ही कुरुक्षेत्र में युद्ध करते रहते ! महासर्प अश्वसेन नाग -  महाभारत युद्ध के 17 दिन अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध चल रहा था ! तभी कर्ण ने एक बाण अर्जुन पर चलाया जो साधारण बाणों से अलग था ! इस बाण को अर्जुन की ओर आता देख भगवान श्री कृष्ण समझ गए कि वो बाण नहीं बल्कि बाण रूपी अश्वसेन नाग हैं ! तब उन्होंने अर्जुन को बचाने के लिए अपने पैर से रथ को दबा दिया भगवान श्री कृष्ण के ऐसा करने से रथ के पहिये जमीन में धंस गए साथ ही रथ के घोड़े भी झुक गए तब वह बाण रूपी अश्वसेन अर्जुन की जगह अर्जुन के सिर के मुकुट पर जा लगा ! वार के खाली जाने के बाद अश्वसेन कर्ण के तरकश में दुबारा वापिस आ गया और अपने वास्तविक रूप में आकर कर्ण से बोला कि हे अंगराज ! अबकी बार ज्यादा सावधानी से बाण संधान करना इस बार अर्जुन का वध होना ही चाहिए ! मेरा विष उसे जीवित नहीं रहने देगा ! तब कर्ण ने उससे पूछा कि आप कौन हैं और अर्जुन को क्यों मारना चाहते हैं ! तब अश्वसेन ने कहा में नागराज ततक्षत का पुत्र अश्वसेन हूँ ! मैं और मेरे माता-पिता खांडव वन में रहा करते थे ! एक दिन अर्जुन ने उस वन में आग लगा दी उसके बाद में और मेरी माता आग में फँस गए ! जिस समय वन में आग लगी उस वक्त मेरे पिता नागराज वन में नहीं थे ! 

मुझे आग में फंसा हुआ देख मेरी माता मुझको निगल गयी और मुझको लेकर उड़ चली परन्तु अर्जुन ने मेरी माता को अपने बाण से मार गिराया लेकिन मैं किसी तरह से बच गया ! जब मुझे ये बात पता चली कि मेरी माता को अर्जुन ने मारा है तभी से मैं अर्जुन से बदला लेना चाहता हूँ और इसी कारण आज मैं बाण का वेश धारण कर आपके तरकश में आ घुसा ! इसके बाद कर्ण ने उसकी सहायता के प्रति कृतग्यता प्रकट करते हुए कहा कि हे अश्वसेन -  मुझे अपनी ही नीति से युद्ध लड़ने दीजिये आपकी अनीति युक्त सहायता लेने से अच्छा मुझे हारना स्वीकार है ! ये शब्द सुनने के बाद कालसर्प कर्ण की नीति निष्ठा को सराहता हुआ वहा से वापिस लौट गया !
इन्द्रास्त या वसावी शक्ति  -   ये तो सभी जानते है कि कर्ण जैसा योद्धा अपनी दान वीरता के कारण जाना जाता है ! इसी दानवीरता के फ़लस्वरुप इंद्र से उन्हें वसावी शक्ति प्राप्त हुई थी ! ये एक ऐसा अस्त्र था जिसे कोई भी अस्त्र काट नहीं सकता था ! दरअसल युद्ध के निश्चित हो जाने के बाद इंद्र देव को अर्जुन की चिंता सताने लगी कि कर्ण के कवच कुंडल रहते हुए मेरा पुत्र उसे परास्त कैसे कर पायेगा ! क्योंकि वे जानते थे कि सूर्य देव का दिया हुआ कवच कुंडल जब तक कर्ण के पास है तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता ! इसीलिए इंद्र देव ने छल का सहारा लिया और एक दिन जब कर्ण सुबह के समय सूर्य देव को जल अर्पित कर रहे थे तो इंद्र देव ब्राह्मण का रूप बनाकर उसके पास पहुंचे और कर्ण से उसका दिव्य कवच कुंडल मांग लिया क्योंकि सूर्य को जल अर्पित करते समय कर्ण से कोई भी कुछ मांगता तो वे मना नहीं करते थे इसीलिए उन्होंने ब्राह्मण रूपी इंद्र को अपना कवच कुंडल दान में दे दिया और फिर ब्राह्मण से बोले हे, ब्राह्मण - अब आप अपने असली रूप में आ जाइये क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप देवराज इंद्र है और मैं ये भी जानता था कि आज आप मुझसे मेरा कवच कुंडल दान में मांगने वाले है ! कर्ण के मुख से ऐसी बातें सुनकर देवराज इंद्र उसी क्षण अपने असली रूप में आ गए और बोले हे कर्ण -  तुम्हे मेरे बारे में किसने बताया और जब तुम जानते थे तो आज सूर्य को जल अर्पित करने आये ही क्यों
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? तब कर्ण ने कहा हे देवराज इंद्र मुझे ये सारी बातें रात को मेरे पिता सूर्य देव ने बताई थी और मुझे जल अर्पित करने से मना भी किया ! परन्तु हे देवेंद्र - अब आप ही बताइये मैं अपने धर्म से विमुख कैसे हो सकता था ! तब इंद्र  देव ने कहा - कर्ण तुम महान हो ! इस दुनिया में आज तक तुमसे बड़ा दानी ना कभी हुआ है और ना ही पृथ्वी के अंतकाल तक होगा ! आज के बाद तुम महादानवीर कर्ण के नाम से जाने जाओगे ! इसके अलावा मैं तुम्हे अपनी वसावी शक्ति भी देता हूँ जिसका इस्तेमाल तुम सिर्फ एक बार कर सकोगे ! इस शक्ति का जिस किसी पर भी संधान करोगे उसे इस ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति नहीं बचा सकेगी और इसके बाद देवराज वहा से अंतर्ध्यान हो गए ! जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तो कर्ण ने अपनी ये शक्ति अर्जुन के लिए बचा कर रखी थी लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच को युद्ध में शामिल कर कर्ण को इंद्र की दी हुई वसावी शक्ति को चलाने पर विवश कर दिया ! इन तीनो शक्तियों के अलावा कर्ण के पास आगयेणास्त्र , पाशुपतास्त्र , रुद्रास्त्र ,ब्रह्मास्त्र , ब्रह्मशिरास्त्र , ब्रह्माण्ड अस्त्र , भार्गव अस्त्र , गरुड: अस्त्र , नागास्त्र और नागपास अस्त्र जैसे और भी कई दिव्य अस्त्र थे जिन्हे मंत्रों से प्रकट कर संधान किया जा सकता था ! इन अस्त्रों को चलाने के लिए महारथी कर्ण अपने विजिया धनुष का इस्तेमाल किया करते थे ! महाभारत युद्ध में जिस समय अर्जुन ने कर्ण का वध किया उस समय कर्ण के हाथ में वह विजिया धनुष नहीं था अगर उस समय उनके हाथ में वह धनुष होता तो अर्जुन कभी भी उनका वध नहीं कर पाता ! तो दोस्तों - ये थे कर्ण के अस्त्र और शस्त्र जिन्होंने उन्हें ज्यादा  शक्तिशाली बनाया !   


  

क्या आप जानते है क्यों जरुरी है वर वधु का कुंडली मिलान ?


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विवाह बहुत पवित्र सम्बन्ध है ! यह एक ऐसा सूत्र है जहा ना केवल दो लोग अपितु दो परिवारों का सम्बन्ध होता है इसलिए ये दो विवाह करने वाले लोगों का उत्तरदायत्व बन जाता है की वो अपने जीवनसाथी के साथ उनके  परिवार को भी खुश रखें और अपने कर्तव्यों को अच्छी प्रकार से निभाएं ! इस बंधन में घनिष्ठता ,मित्रता ,गहनता और सामंजस्य होना बहुत आवश्यक है ! पूरा जीवन साथ में व्यतीत करने के विचार से वर-वधु एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते है ! इसलिए ही यह कहा जाता है कि यदि जीवनसाथी अच्छा मिल जाये तो व्यक्ति जीवन की बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को भी
सहन करके उसे पार कर जाता है

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परन्तु वही यदि इस सम्बन्ध में विश्वास , प्रेम और सामजस्य नहीं है तो दोनों का जीवन बहुत कठिन हो जाता है ! इसी कारण सनातन धर्म में कुंडली मिलाकर विवाह करने का प्रावधान है ! यह बात तो सत्य है कि व्यक्ति के ग्रह उसके जीवन के विषय में बहुत कुछ कहते है ! ग्रह  नक्षत्रों के आधार पर ही दो लोगों की कुंडलियों को मिलाकर यह देखा जाता है कि दोनों के ग्रह भविष्य में किस प्रकार की परिस्थिति को जन्म दे सकते है ! व्यक्ति की कुंडली उसके राशि के नाम, समय ,जन्मस्थान आदि के आधार पर बनाई जाती है ! यहा तक कि कुंडली मिलान से यह भी पता लगाया जा सकता है कि लड़का और लड़की विवाह के पश्चात एक दूसरे के साथ भाग्यशाली और सुखद जीवन व्यतीत करेंगें या नहीं या फिर एक के ग्रह दूसरे के जीवन पर कैसा प्रभाव डाल सकते है और उसके परिणाम क्या होंगें  ! तो आइये जानते है कि दोनों कि कुंडली में किन-किन बातों पर विशेष  ध्यान दिया जाता है ! विवाह के लिए दो लोगों के 36 में से कम से कम 18 गुणों का मिलना आवश्यक होता है ! विवाह से पहले जब दो लोगों कि कुंडली मिलाई जाती है तो लड़के कि कुंडली में बहु विवाह योग , विदुर योग और मार्ग भटकने का योग देखा जाता है ! बहु विवाह योग में कुंडली के द्वारा यह देखा जाता है कि लड़के के जीवन में एक से अधिक विवाह ना हो ! विदुर योग में देखा जाता है कि लड़के का उसकी पत्नी के साथ सम्बन्ध कैसा होगा ! दोनों के मध्य कोई क्लेश या भेदभाव के ग्रह तो नहीं बन रहे या फिर लड़की की अकाल मृत्यु तो नहीं हो जाएगी इन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ! मार्ग भटकने का अर्थ है कि लड़का भविष्य में गलत आदतों जैसे जुंआ, शराब, असत्य , बुरे विचार आदि मार्गों का अनुसरण ना करें अन्यथा लड़की का जीवन बहुत कठिन होगा ! यदि कुंडली में इस प्रकार के दोष पाएं जातें है तो विवाह में कठिनाइयां आती है !


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वहीँ लड़की कि कुंडली में वैधव्य योग ,विषकन्या योग और बहुपति योग देखे  जातें है ! वैधव्य योग में देखा जाता है कि दोनों में से किसी की भी अकाल मृत्यु तो नहीं होंगी ! फिर यह देखा जाता है कि लड़की की कुंडली में विषकन्या योग ना हो क्योंकि इस योग के कारण लड़की सुखी नहीं रह पाती ! उसके जीवन में दुःख और दुर्भाग्य आते ही रहते है ! बहुपति योग में देखा जाता है की लड़की की कुंडली में एक से अधिक विवाह ना हो !  इसके समाधान के लिए लड़की का विवाह पहले किसी वृक्ष से करवाया जाता है जिससे इस दोष को निष्प्रभाव किया जा सके !   वर और कन्या की कुंडलियों के आधार पर कुल 8 गुणों का विश्लेषण किया जाता है ! इन गुणों की कर्म संख्या के आधार पर ही इनका अंक माना गया है जैसे पहले गुण का अंक 1 है दूसरे का 2 आदि और इस प्रकार सारे अंकों का योग 36 होता है ! इसलिए कुल मिलाकर 36 गुणों का आंकलन करके निर्धारित किया जाता है कि दोनों एक दूसरे से विवाह करने के योग्य है या नहीं ! तो आइये जानते है कि ये 8 गुण कौनसे है !
1 . वर्ण  -  जिसमे कन्या और वर के वर्ण अर्थात जाति का मिलान किया जाता है ! वर का वर्ण कन्या के वर्ण से उच्च या समान होना चाहिए ! इस गुण में दोनों के मध्य सामंजस्य को भी देखा जाता है !
2 . वश्य -  इस गुण में देखा जाता है कि दोनों में से कौन अधिक प्रभावशाली है और दोनों में से जीवनसाथी के प्रति किसकी नियंत्रण क्षमता अधिक है !
3 . तारा - इस गुण में दोनों के नक्षत्रों की तुलना की जाती है ! यह दोनों के मध्य सम्बन्ध में स्वस्थ भागफल को दर्शाता है !
4 . योनि - इस गुण में दोनों के मध्य योन संगता को देखा जाता है !
5 . गृह मैत्री - इस गुण के द्वारा जाँच की जाती है दोनों में मैत्री का व्यवहार कैसा है ! वर और वधु के विचार,मानसिक और बौद्धिक क्षमता कैसी रहेगी !
6 . गण -  यह गुण दोनों के व्यक्तित्व और दृष्टिकोण के सामंजस्य को दर्शाता है !
7 . भकूट - दोनों की कुंडली के आधार पर देखा जाता है कि भविष्य में परिवार ,कल्याण,समृद्धि आदि कि स्थिति कैसी होगी !

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8 . नाड़ी - इस गुण का अंक सबसे अधिक है इसलिए इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ! इसका सीधा संबंध संतान उत्पत्ति से है यदि दोनों की नाड़ी एक है तो संतान में दोष पाए जा सकते है ! इस गुण का आंकलन ब्लड ग्रुप से भी किया जा सकता है ! यदि वर और वधु दोनों का ही ब्लड ग्रुप एक है तो संतान के स्वास्थ्य पर उसका नकारात्मक प्रभाव होता है ! नाड़ी दोष कुंडली में सबसे बड़ा दोष है !  इसी कारण सनातन धर्म में समान नाड़ी के लोगों का विवाह ठीक नहीं माना गया है ! कुंडली मिलान से यही निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक दृष्टिकोण से वर और वधु एक दूसरे के प्रति भाग्यशाली हो और दोनों का जीवन बेहतरीन ढंग से व्यतीत हो ! वैसे तो जिसके भाग्य में जो है वो होता ही है परन्तु कुंडली मिलान एक अच्छा प्रयास है जिसके माध्यम से यह देखा जा सकता है कि एक दम्पति का जीवन खुशहाल व्यतीत हो और दोस्तों इसलिए ही सनातन धर्म में विवाह से पूर्व कुंडली मिलाने का प्रावधान है !   

क्या आपको पता है महिलाओ के बारे में आचार्य चाणक्य भी कोन कोन सी बातो के बारे में सही नहीं बता पाए

आचार्य चाणक्य को कुटीलो में कुटिल, महाज्ञानी और विद्वान् की उपाधि प्राप्त है !चाणक्य की नीतियों के तो हम सभी कायल है ! उस काल में राजा भी चाणक्य की बुद्धिमता का लोहा मानते थे ! इस महान पंडित ने ऐसी बातें दुनिया को बताई जो शत-प्रतिशत सही है ! वहीं चाणक्य ने महिलाओं पर भी टिप्पणी की है ! यदि इस विषय पर बात की जाए तो उनकी महिलाओं के विषय में कही गयी कुछ बातें बहुत आपत्तिजनक है ! जिस देश में नारी को देवी की उपाधि दी जाती है ! उस देश में इस महान विद्वान् ने नारी के विषय में कुछ ऐसी टिप्पणियां की है जिन्हे  स्वीकारना थोड़ा मुश्किल है ! आज के समय में महिलाओं के विषय में उनके कथन बहुत विवादित है ! आज हम उन्ही बातों के विषय में आपको बतातें है जो विवादित और आपत्तिजनक है !

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1 .  आचार्य चाणक्य का कहना था की व्यक्ति को नदी , सींग वाले पशु ,शाही परिवार , शस्त्रों को धारण करने वाला व्यक्ति और महिलाओं के ऊपर विश्वास नहीं करना चाहिए ! ये कभी भी विश्वासघात कर  सकते है ! परन्तु यदि इस पर विचार किया जाए तो महिला हो या पुरुष सबकी प्रवृति एक जैसी नहीं होती ! सभी महिलाएं विश्वास के योग्य नहीं है यह एक गलत टिप्पणी है !  देखा जाए तो उस काल में चन्द्रगुप्त ने एक से अधिक विवाह किये जो चन्द्रगुप्त की पहली पत्नी के साथ एक धोखा ही था !

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2 . आचार्य चाणक्य ने कहा है की महिलाएं कभी स्थिर नहीं रह सकती ! गहन विचार किया जाए तो स्थिरता एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो योगियों और तपस्वियों में ही पायी जाती है ! साधारण व्यक्ति अपने जीवन में इतने व्यस्त और उलझे हुए है की स्थिरता के बारें में सोचने का किसी के पास समय ही नहीं है ! फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष !
3 . उन्होंने कहा था कि स्त्रियों के कारण हर व्यक्ति के जीवन में कहीं न कहीं दुख जरूर है ! वैसे तो स्त्रियों के बिना जीवन सम्भव नहीं फिर भी एक बार कल्पना करते है कि यदि संसार में स्त्रियां न हो तो क्या हर और शांति होगी या किसी भी व्यक्ति के जीवन में दुख नहीं होगा ! संसार में नकारत्मकता , युद्ध कष्ट जैसी स्थितियां नष्ट हो जाएंगी शायद नहीं ! तो इसका भी पूरा दोष स्त्रियों को देना गलत है !

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4 . आचार्य चाणक्य के अनुसार मूर्खता ,छल-कपट ,झूठ, बेईमानी, क्रोध, लालच आदि महिलाओं के स्वभाविक दोष है! यदि वर्तमान की बात करे तो बड़े -बड़े व्यवसाय में अक्सर छल -कपट और बेईमानी के किस्से सुनने में आतें है 
इनमे अधिकांश मसलो में महिलाओं के कोई भागीदारी नहीं होती !
5 . आचार्य चाणक्य के अनुसार स्त्री की सुंदरता उसके तन से नहीं उसके मन से देखनी चाहिए ! यह बात बिलकुल सही है परन्तु क्या ये बात पुरुष पर लागू नहीं होती क्या पुरुष का मन ना देखकर उसका हष्ट-पुष्ट शरीर, गोरा रंग और सुडौल बनावट देखकर उससे विवाह कर लेना क्या उचित है !

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6 . आचार्य चाणक्य के अनुसार पुरुषो को ऐसी स्त्रियों से कभी विवाह नहीं करना चाहिए जो संस्कारी ना हो तो क्या असंस्कारी पुरुष से एक स्त्री को विवाह कर लेना चाहिए ! यदि पुरुष संस्कारी नहीं है तो वो अपने माता -पिता से लेकर पत्नी और बच्चो तक किसी को भी सम्मान और प्रेम नहीं देगा ! इसलिए ये बात केवल महिलाओं पर ही नहीं अपितु पुरुषो पर भी लागू होती है !
7 . आचार्य चाणक्य का कहना था की यदि पत्नी पति की अनुमति के बिना उपवास रखती है तो वो पति की आयु को कम करती है ! पति की आज्ञा के बिना किया गया कोई भी कार्य हानिकारक सिद्ध होता है ! इस बात पर विचार किया जाए तो यदि पति किसी गलत काम करने के लिए प्रोत्साहित करे तो क्या उसे स्वीकार करना चाहिए ! इस तथ्य पर आपका क्या सोचना है जरा सोच कर देखिएगा !

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8 . आचार्य चाणक्य के अनुसार पुरुषो के अपेक्षा महिलाओं में दो गुना ज्यादा भूख , चार गुना ज्यादा शर्म ,छह गुना ज्यादा साहस और काम वासना आठ गुना ज्यादा होती है ! आचार्य चाणक्य ने ये भी कहा है जो स्त्री सुबह के समय पति की सेवा माँ के समान करे , दिन में बहन के समान प्यार करे और रात में वेश्या के समान व्यवहार करे उसे ही एक अच्छी स्त्री माना जाता है तो दोस्तों क्या ये शब्द महिलाओं के लिए अपमानजनक नहीं प्रतीत होते  ! ये कहना तो कठिन है कि आचार्य चाणक्य ने ये तथ्य उस समय के परपेक्ष्य में कहे थे या सम्पूर्ण नारी जाति को एक ही तराजू में तोला था ! आपका इन बातों पर क्या सोचना है ! सोचियेगा जरूर !

 

  

इस घोर कलयुग में भी राधा रानी ने कैसे दिए अपने भक्त को दर्शन

आखिर  कैसे ! राधा रानी ने एक छोटी सी बच्ची बनकर दिए एक अपनी सच्ची भगत को  दर्शन ! दोस्तों ! ये कलयुग का समय हैं ! इस कलयुग में हरी भजन ही एक मात्र उपाय ह मोक्ष पाने का ! जो भगत हरि नाम भजेगा हरि स्वंय उसे बचाने  के लिए किसी न किसी रूप में प्रकट होंगे ! आज हम आपको देवी राधा रानी की उसी भगतनि की कथा बता रहे  हैं जिसे  देवी राधा ने छोटी  बच्ची बनकर दर्शन दिए और अंत में उसे अपने अंदर समाहित कर लिया !दोस्तों जैसा की आप जानते हैं कि देवी राधा रानी को कृष्ण भगवान कि प्रिय सखी के रूप में जाना और पूजा जाता हैं

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 लेकिन अगर देवी राधा को उनका कोई भगत सच्ची श्रद्धा से पूजता हैं  तो वे उसकी  सभी इच्छा पूरी करती हैं ! तो दोस्तों कथा के अनुसार एक गांव में रामा नाम कि एक महिला रहती थी ! वह बहुत ही भोली थी ! उसकी शादी को 5 साल से ज्यादा हो चुके थे लेकिन उनके घर में अभी तक कोई संतान नहीं हुई थीं ! उनके घरवाले बच्चे के लिए बहुत तरसते थे ! एक बार कि बात हैं कि रामा के गांव कि कुछ महिलाएं राधा अष्ट्मी के दिन किशोरी जी यानि राधा रानी के दर्शन  के लिए बरसाने जा रही थी  उन्होंने रामा को भी अपने साथ चलने के लिए कहा ! रामा चलने के लिए तुरंत  तैयार हो गयी वह बहुत खुश थी कि वो पहली बार बरसाने धाम जा रही थी  उसने ये बात जाकर अपनी सास को बताई ! रामा कि सास ने कहा कि ये तो अच्छी बात हैं किशोरी जी बहुत करुणामयी हैं क्या पता वे तेरी गोद भर दे ! इसके बाद रामा ख़ुशी - ख़ुशी जाने कि तैयारी करने लगी उसी रात कि गाडी से सबको बरसाने धाम जाना था लेकिन शाम  को ही रामा के पाँव में काम करते हुए अचानक चोट लग गई थी यह देख कर उसकी सास ने कहा कि वहाँ फिर कभी चले जाना क्योकि  वहाँ बहुत पैदल चलना पड़ता हैं और तुम पैदल कैसे चलोगी पर रामा नहीं मानी उसे लग रहा था कि क्या पता बरसाने धाम जाने से किशोरी जी उसकी गोद भर दे ! इसलिए सास के लाख मना करने पर भी रामा उन महिलाओं के साथ बरसाने धाम जाने के लिए निकल पड़ी ! रामा और उसकी सहेलियाँ राधा जी का जयकारा करते हुए मथुरा और वृन्दावन में श्री कृष्ण के दर्शन करते हुए बरसाने धाम पहुंची  ! मंदिर कि सीढ़ियों पर सब राधे - राधे  का जयकारा लगाते हुए चली जा रही थीं !रामा के पैर में चोट लगने के कारण उससे चला नहीं जा रहा था वह धीरे -धीरे चढ़ने लगी उसने सबसे कहा कि तुम लोग जाओ मेँ तुम्हे अटारी पर मंदिर के बाहर मिलूंगी आप सभी वहीं मेरा इन्तजार करना ! रामा राधे - राधे कहती हुई सीढिया चढ़ रही थीं कि तभी उसका पैर मूड़ गया वह गिरने ही वाली थीं कि तभी 7 से 8 साल कि बच्ची ने उसका हाथ पकड़ लिया और फिर रामा से बोली मैया संभलकर चलो नहीं तो गिर जाओगी ! यह सुन रामा घबरा गयी रामा ने उस लड़की कि और देखा और धन्यवाद देते हुए कहा कि बेटी अगर तुम न होती तो मैं गिर ही जाती ! तब लड़की ने कहा नहीं मैया मै न गिरने देती आपको जब भी वो लड़की रामा को मैया कहती रामा को बड़ा सकुन मिलता ! मैया शब्द सुनकर रामा कि आँखों मै आंसू आ गए रामा थोड़ी देर के लिए वहीं बैठ गयी वो लड़की भी रामा के PAAS ही बैठ गयी तब रामा ने पूछा कि बेटी तुम कहा रहती हो लड़की ने कहा मैया मै तो यही रहती हूँ और यही मेरा घर है ! उसके बाद लड़की बोली मैया मेरे लिए तुम क्या लेकर आयी हो  यह सुन रामा हैरान होकर उसे देखने लगी रामा बोली मै तेरे लिए क्या लाऊंगी मै तो तुम्हे जानती भी नहीं लड़की बोली मैया मै तो यही रहती हूँ यही मेरा घर ह सब मुझे प्यार से लाडो बुलाते है तुम भी मुझे लाडो नाम से ही बुलाओ और है मैंने तुम्हे गिरने से भी बचाया  है तुम मुझे कुछ दोगी भी नहीं क्या ? उसकी भोली भाली और मीठी बातें सुनकर रमा मन ही मन खुश हो रही थी ! फिर रामा बोली अच्छा बताओ बेटी तुम्हे क्या चाहिए ? मै तुम्हे कल लेकर जरूर दूंगी !अगले 8 दिनों तक मै यही हूँ ! राधा अष्ट्मी के दिन किशोरी जी के  दर्शन करने के बाद ही हम सभी अपने घर को जायेंगे ! तो लाडो बोली मैया मुझे चूड़ी , कंगन , मेहँदी , घाघरा चोली , माथे का टीका , बिछुवे सभी पसंद हैं तो क्या आप मुझे सभी लेकर दोगी !तो रामा बोली हां मेरी लाडो बेटी सब ला दूंगी !उसके बाद रामा बोली लाडो अब मै चलती हूँ !मेरी सखियाँ ऊपर मंदिर के बाहर मेरा इंतज़ार कर रही हैं ! तब लाडो बोली ठीक हैं मैया मै आपको छोड़ आती हूँ !कहीं तुम फिर से न गिर जाना ! रामा लाडो की प्यारी - प्यारी बातें सुनते उसका हाथ पकड़कर सिडिया चढ़ने लगी ! कुछ देर बाद दोनों अटारीं पर पहुंच गयें ! लाडो बोली मैया अब मै चलती हूं ! तब रामा भी मंदिर के अंदर चली गयी  !  मंदिर मै रामा ने किशोरी जी और ठाकुर जी के दर्शन किये !बहुत ही आनंदमय दर्शन हुए ! अगले दिन रामा लाडो के लिए बहुत सूंदर चूड़ियां और पायल लेकर सीढ़ियां चढ़ रही थी तब उसने देखा लाडो पहले से ही बैठी उसका इंतज़ार कर रही हैं रामा को देखते ही लाडो बोली मैया मेरे लिए चूड़ी , टीका लायी हो या नहीं रामा ने उसको चुडिया और पायल दे दी ! लाडो बोली मैया तुम तो कह रही थी सब लाऊंगी बाकीं चीजे कहाँ हैं ! तब रामा बोली अरें मै अभी 8 दिन यही हूँ रोज तुझे कुछ न कुछ लाकर दूंगी  ताकि तुम मुझसे रोज मिलने आ सको ! अगर मै तुम्हे एक दिन मै ही सब लाकर दे दूंगी फिर तो तुम मुझसे मिलोगी ही नहीं ! यह सुन लाडो मुस्कराने लगी और चूड़ी ,पायल लेकर वह से भाग गयी ! एक दिन की बात हैं कि जब रामा लाडो से मिली तो उसके साथ एक लड़का भी था  !

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 तीखे नैन नक्श , रंग सावंला ,घुंगराले बाल इतना सूंदर कि रामा कि नज़र उससे हट ही नहीं रही थी ! रामा ने पूछा  -  ये कौन हैं  ! तब लाडो बोली मैया ये मेरा सखा है हम साथ ही रहते है मैया कल तुम इसके लिए भी कुछ लेकर आना ! अगले दिन रामा उस लड़के के लिए बाजार से सूंदर सा धोती कुरता और मौर मुकुट लेकर गयी ! उसने देखा दोनों बच्चे वहीं सीढ़ियों पर बैठें हैं और उसका इंतज़ार कर रहे है ! रामा ने बच्चो को बहुत प्यार किया और खूब सारी बातें की ! उसने बच्चो को मौर मुकुट और धोती कुरता दिया ! उसके बाद रामा ने कहा देख लाडो मैंने तुझे और तेरे सखा को सब चीज़ें लाकर दी पर तुम दोनों ने तो कुछ पहनकर दिखाया  ही नहीं मै भी तो देखूं कि तुम दोनों कैसे लगते हो और तुम्हारा नाप सही है या नहीं ! तब लाडो बोली मैया कल राधा अष्ट्मी है मै तुम्हे कल पहनकर दिखाऊंगी ! ये कहकर दोनों बच्चे चले गए ! रामा भी मंदिर में दर्शन कर के चली गयी ! अगले दिन राधा अष्ट्मी के दिन मंदिर में लाखों कि संख्या में लोग आये ! मंदिर में राधे - राधे के जयकारे लग रहे थे ! अब रामा भी वहां पहुंची जहां लाडो उससे रोज मिलती थी पर आज लाडो वहां नहीं थीं ! रामा ने सोचा आज बहुत भीड़ है उत्स्व का दिन है हो सकता है लाडो आज आयी ही नहीं ! रामा मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचीं ! भीड़ के कारण रामा को दर्शन नहीं हो पा रहें थे ! रामा भीड़ को चीरती हुईं बड़ी मुश्किल से आगे किशोरी जी और कृष्ण जी के दर्शन के लिए पहुंची ! वहां जाकर वो तो थोड़ी देर के लिए पत्थर हो गयी ! उसने देखा किशोरी जी ने वहीं सामान पहना हुआ है जो उसने लाडो को दिया था ! वहीं मोटे-मोटे घोटें वाला लेहंगा चोली वहीं चूड़ियाँ , ठाकुर जी ने भी वहीं धोती कुरता और मुकुट पहना था ! उसके पुरे शरीर से पसीने निकलने लगे ! उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ! बड़ी मुश्किल से पुजारी तक पहुंचकर रामा ने पूछा कि आज वस्त्रो और श्रृंगार की व्यवस्था किसने की हैं! पुजारी ने कहा आज वस्त्रो की व्यवस्था स्वंय लाड़ली जी ने की है ! आज सुबह जब हमने पट खोले ये सारा श्रृंगार और वस्त्र वहीं रखें थे ! हमने इसे लाड़ली जी की मर्जी समझकर इन्हें यहीं पहना दिया ! यह सुनकर रामा तो जैसे पागल सी हो गयी ! उसे समझ नहीं आ रहा था जिस लाडो और उसके सखा से रोज मिल रही थी वो तो साक्षात् किशोरी जी और ठाकुर जी थे ! वो पागलों की तरह निच्चे सीढ़ियों तक आयी जहां वो रोज उनसे मिलती थी और जोर - जोर से लाडो-लाडो चिल्लाने लगी ! पर आज तो लाडो को लाखों लोगों को दर्शन देने थे वो वहां कहा से आती ! तभी वहां रामा की सखियाँ आ गयीं उन्होंने पूछा तुम किसे पुकार रही हो ! इसके बाद रामा ने सारा किस्सा उन्हें बताया वे भी रामा के द्वारा दिए गए लेहंगा चोली को पहचान गयीं क्योंकि रामा ने उन्हें उनकर सामने ही तैयार किया था !सब हैरान हो गए ! रामा ने वापिस घर जाने से मना कर दिया ! रामा बोली में घर नहीं जाउंगी जब तक मुझे लाडो नहीं मिलेंगी ! 

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 तब सब  औरतें अपने - अपने घर चली गयी ! यह बात जब रामा के घर वालो को पता चली तो रामा की सास और पति भी रामा को घर ले जाने के लिए आये ! पर रामा उनके साथ भी नहीं गयी ! रामा अब भी उन सीढ़ियों पर आकर लाडो की याद में आंसू  बहती और लाडो -लाडो चिलाती ! जब शाम तक भी लाडो नहीं आती तो उसे बहुत पीड़ा होती   ! परन्तु उस पीड़ा का भी अपना ही एक आनंद था ! ऐसा करते हुए रामा को 30 साल बीत गए !रामा कमजोर हो चुकी थी ! बुढ़ापा अब हावी होने लगा था ! एक दिन एक छोटी सी लड़की रामा का हाथ पकड़कर  अटारी पर उसे ले गयी ! और बोली मैया ये रही तुम्हारी लाडो ! रामा की वहीं लाडो बाहें फैलाएं उसे बुला रही थी ! रामा बावली सी हो गयी थी !और एक आखिरी हिचकी के साथ रामा वहीं गिर गयी ! ऐसा लगा मानो किशोरी जी ने रामा को नहीं उसकी आत्मा को ही गले लगा लिया हो !!!