Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | कृष्ण नाम का महत्व | बकरी बोली कृष्णा कृष्णा


 

किसी गांव में एक आदमी के पास बहुत सारी बकरियां थी । वह बकरियों का दूध बेचकर ही अपना गुजारा करता था । एक दिन उनके गांव में बहुत से महात्मा आए । उन सब ने गांव के बाहर जंगलों में आकर यज्ञ किया। उनमें से कुछ महात्मा वृक्षों के पत्तों को तोड़ कर उस पर चंदन से कृष्ण कृष्ण नाम लिख रहे थे । वह आदमी बकरियों को घास चराने  गांव से बाहर ही जाया करता था । कुछ दिनों बाद साधु अपना यज्ञ हवन करके वहां से चले गए । लेकिन कुछ कृष्ण नाम लिखे पत्ते वहीं पर पड़े रह गए । वह आदमी जब वहां पर घास चराने आया तो उनमें से एक बकरी ने उस कृष्ण नाम के लिखे हुए पत्ते को खा लिया । आदमी बकरी चराने के बाद अपने घर चला गया । घर जाकर सब बकरियां मैं मैं कर रही थी । लेकिन सिर्फ एक ही बकरी कृष्ण का नाम जप रही थी । क्योंकि उसने कृष्ण रूपी पत्ते को खा लिया था । उसके अंदर कृष्ण वास करने लगे थे । कृष्ण नाम जपने से उसका मैं (अंहकार) तो अपने आप ही खत्म हो गया था  । तब सब बकरियां ने उसे अपनी भाषा में समझाया कि तू अपनी भाषा छोड़कर यह क्या कृष्ण कृष्ण नाम जप रही है । तब वह कहती कि मैंने कृष्ण नाम का पत्ता अपने अंदर ले लिया है और मेरे मुख से अपने आप ही कृष्ण कृष्ण निकल रहा है । तब सब बकरियों ने फैसला किया कि हमें इसे अपनी टोली से बाहर कर देना चाहिए । सब बकरियों ने सींग मार कर उसे अपने बाड़े से बाहर कर दिया । सुबह जब उसका मालिक आता है , तो देखता है कि वह बकरी बाड़े से बाहर खड़ी है   मालिक उसे पकड़कर बाड़े के अंदर कर देता है । लेकिन सब बकरियां उसे फिर से सींग मार कर बाहर कर देती है । मालिक को कुछ समझ नहीं आता कि सब बकरियां इसकी  दुश्मन क्यों बन गई  है ।  तब वह सोचता है कि जरूर इसको कुछ बीमारी होगी , तभी सब बकरियां इसे अपने पास नहीं आने दे रही है । कहीं एक बकरी की वजह से सारी बकरियां बीमार ना हो जाए । मालिक उस बकरी को रात में जंगल में छोड़ आता है ।  जंगल में अकेली खड़ी बकरी को देख एक आदमी जो चोर होता है , उस बकरी को लेकर भाग जाता है और किसी  दूर गांव में जाकर एक किसान को बेच देता है । किसान बेचारा बहुत ही भोला भाला होता है । उसे समझ में नहीं आता कि बकरी मैं मैं कर रही है , या फिर कृष्ण कृष्ण ।  बकरी सारा दिन कृष्ण कृष्ण करती रहती थी ।  किसान  उसका दूध बेच कर अपना गुजारा करता था । कृष्ण नाम के प्रभाव से बकरी बहुत ही ज्यादा और मीठा दूध देती थी ।दूर-दूर से सब लोग उस किसान से उस बकरी का दूध लेने आते थे । दूध की बिक्री की वजह से अब उस किसान की हालत भी सुधरने लगी थी । एक दिन राजा का मंत्री और सैनिक उस गांव से गुजर रहे थे । उन्हें बहुत ही भूख लगी । उन्हें किसान का घर दिखाई दिया । किसान ने उन्हें बकरी का दूध पिलाया । बकरी का मीठा और अच्छा दूध पीकर सैनिक और मंत्री बहुत ही खुश हुए और कहने लगे कि उन्होंने कभी भी ऐसा दूध पहले नहीं पिया है । तब किसान बोला कि यह तो इस बकरी का दूध है , जो सारे दिन कृष्ण कृष्ण कहती है  ।  मंत्री और सैनिक बकरी को देखकर हैरान हो गए। बाद में मंत्री किसान का धन्यवाद कहकर अपने राज महल में चले गए । कुछ दिनों के बाद राज महल की राजमाता बीमार हो गई । कई वैद्य ने उनका उपचार किया , परंतु वे ठीक नहीं हो रही थी । तब वैद्य जी ने राजा से कहा कि अब इनका ठीक होना बहुत मुश्किल है । अब तो भगवान ही इन्हें बचा सकते हैं । तब राजगुरु जी ने राजा से कहा कि आपको अब इनके पास बैठ कर इन्हें भगवान का नाम याद कराना चाहिए । लेकिन राजा अपने काम में इतने व्यस्त थें कि वे चाहकर भी राजमाता के पास बैठकर ठाकुर जी का नाम नहीं जप सकते थे । तभी राजा के मंत्री को उस बकरी की याद आई और उन्होंने बकरी के बारे में सारी बात राजा को बताई । पहले तो  राजा को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । परंतु जब मंत्री राजा को किसान के घर लेकर पहुंचा तो राजा यह सब देख कर हैरान हो गया । राजा ने किसान से कहा कि यह बकरी उसे दे दे । तब किसान ने हाथ जोड़कर नम्रता पूर्वक राजा से कहा कि इस बकरी के कारण ही मेरे घर की दशा में सुधार आया है । यदि यह बकरी मैं आपको दे दूंगा तो मैं फिर से भूखा मर जाऊंगा ।  राजा ने कहा कि आप इस बात की चिंता मत करो । मैं आपको इतना धन दे दूंगा कि आप की गरीबी दूर हो जाएगी । तब किसान ने बकरी राजा को दे दी और राजा बकरी को राज महल में ले आया । अब तो बकरी राजमाता के पास बैठकर सारे दिन कृष्ण कृष्ण नाम का जाप करती रहती थी । सारे दिन कानों में कृष्ण का नाम जाने से और बकरी का मीठा दूध पीने से राजमाता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी और वह अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी । अब तो वह बकरी राजा के साथ राज महल में ही रहने लगी । उस बकरी के कृष्ण कृष्ण नाम के जप से सारे राजमहल में कृष्ण का नाम समा गया। अब तो सभी कृष्ण का नाम जपते थें। कृष्ण नाम के प्रभाव से राजा का यश चारों ओर फैल गया और वह बहुत से दान और पुण्य करने लगा । अपने अंत समय में बकरी और राजमहल के सभी लोग वैकुंठ धाम को चले गए।

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | कर्म बड़ा या भाग्य। एक फूल वाले की कहानी | हर गरीब चोर नहीं होता। रोटी की कीमत

  हर गरीब चोर नहीं होता।  रोटी की कीमत 




कक्षा की एक छात्रा बहुत जोर जोर से रो रही थी । अध्यापिका उसके पास गई और उससे पूछा कि – बेटा तुम क्यों रो रही हो ? उसने उत्तर दिया कि – मेरी फीस के पैसे   चोरी हो गए हैं , मैंने तो बैग में ही रखे थे । पता नहीं किसने चुरा लिए । अध्यापिका ने एक लड़की की ओर इशारा करके कहा कि दरवाजा बंद कर दो , सब की तलाशी होगी । अध्यापिका ने सामने की 3 लाइन की खुद तलाशी ली  और फिर उन्हें पूरी क्लास की छात्राओं के बैग और जेब की तलाशी लेने के लिए कहा । कुछ देर बाद दो लड़कियां तलाशी लेती हुई निशा नाम की एक लड़की के पास पहुंची । लेकिन निशा अपने बैग की तलाशी लेने से उन्हें रोक रही थी । उन लड़कियों ने ये बात जाकर अध्यापिका को बताई तो अध्यापिका निशा के पास आ गई और उसके बैग की तलाशी लेने लगी । लेकिन निशा ने अध्यापिका को भी अपने बैग की तलाशी लेने के लिए मना कर दिया । अध्यापिका को बहुत ही गुस्सा आया और वह कहने लगी कि – हो ना हो इसके बैग में ही पैसे हैं और इसी ने पैसे चुराए हैं । तभी तो यह अपने बैग की तलाशी नहीं लेने दे रही । निशा ने रोते हुए कहा कि – नहीं , टीचर जी मैंने पैसे नहीं चुराए हैं । मैं चोर नहीं हूं । टीचर गुस्से से बोली – चोर नहीं हो तो फिर बैग की तलाशी लेने दो , मना क्यों कर रही हो  ।  निशा ने कहा – नहीं , मैं अपने बैग की तलाशी नहीं लेने दूंगी ।  अध्यापिका आगे बढ़ी और निशा से बैग छीनने की कोशिश करने लगी । लेकिन वो असफल रही । तब अध्यापिका ने गुस्से में आकर निशा को थप्पड़ मार दिया । निशा जोर जोर से रोने लगी । तभी पीछे से आवाज आई – रुको । अध्यापिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे प्रिंसिपल मैडम खड़ी थी । उन्होंने अध्यापिका और निशा को अपने ऑफिस में बुलाया । तब प्रिंसिपल मैडम ने  अध्यापिका से पूछा कि –  क्या मामला है ?  अध्यापिका ने सारी बात प्रिंसिपल मैडम को बता दी ।  तब प्रिंसिपल मैडम ने बड़ी ही विनम्रता से निशा से पूछा कि – बेटा , क्या तुमने पैसे चुराए हैं ?  नहीं मैडम जी –  निशा ने सहमते हुए उत्तर दिया । साथ ही उसकी आंखों में आंसू भी आ गए थे । प्रिंसिपल मैडम ने कहा – ठीक है , मान लेते हैं तुमने पैसे नहीं चुराए , पर तुम अध्यापिका को अपने बैग की तलाशी क्यों नहीं लेने दे रही थी । निशा खामोशी से प्रिंसिपल मैडम की ओर देख रही थी और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे । प्रिंसिपल मैडम समझ गई थी कि जरूर कोई बात है ,  जिसके कारण निशा अपना बैग चेक करने नहीं दिया । अध्यापिका कुछ बोलना चाह रही थी । लेकिन प्रिंसिपल मैडम ने उन्हें रोक दिया और उन्हें वापस क्लास में जाने के लिए कहा । जब अध्यापिका क्लास में चली गई , तब प्रिंसिपल मैडम ने निशा को अपने सामने वाली सीट पर बैठाया और प्यार से पूछा कि – बताओ बेटा , क्या बात है ?  तब निशा ने झट से अपना बैग प्रिंसिपल मैडम को दे दिया । प्रिंसिपल मैडम ने बड़ी ही उत्सुकता और जिज्ञासा से उसके बैग को खोला । मगर यह क्या , किताबों और कापियों के अलावा एक काले रंग का थैला भी बैग से बाहर निकल आया । उस वक्त निशा को ऐसा लगा कि जैसे उसका दिल ही बाहर निकल कर आ गया हो । जब प्रिंसिपल मैडम ने वह काले रंग का थैला खोला तो उसमें आधे खाए हुए बर्गर , पिज्जा के टुकड़े , समोसे , चटनी , दही थी । तब सारा मामला प्रिंसिपल मैडम की समझ में आ गया था । प्रिंसिपल मैडम ने यह सब देखते ही निशा को गले से लगा लिया ।  निशा ने प्रिंसिपल मैडम को बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है और उसकी दो छोटी बहनें हैं । उसके पिताजी एक चपरासी की नौकरी करते हैं और कुछ महीने पहले उन्हें लकवा मार गया है । तब से वो बिस्तर पर ही है। घर में कोई भी कमाने वाला नहीं है । थोड़ी बहुत पेंशन आ जाती है , पर उस से घर का गुजारा नहीं चलता । एक दिन तो एक रात बिना खाए ही गुजारी और ना ही सुबह नाश्ते में कुछ था । जब निशा कॉलेज के लिए निकली , तो भूख के कारण उस से चला नहीं जा रहा था । उसे चक्कर आ रहे थे , तब रास्ते में एक छोटे से होटल के सामने से गुजरी , तो देखा कि कचरे के डिब्बे में समोसे , आधा पिज़्ज़ा के टुकड़े , दही  और चटनी पड़ी है । यह देख कर उससे रहा नहीं गया और उसने वह खा लिया और सामने के नल से पानी पिया । भगवान का धन्यवाद किया और कॉलेज आ गई । ऐसा कई बार हुआ ।  मैं कॉलेज आते हुए यह बचा हुआ खाना ले आती हूं , और घर जाकर इसे अपनी बहनों को दे देती हूं । मेरे पिता जब हम बहनों को ऐसे खाना खाते देखते हैं , तो वे बहुत ही दुखी होते हैं । मेरी बहनें अभी छोटी है , इसलिए अभी उन्हें नहीं पता कि यह खाना कहां से आता है । यह कहते हुए निशा जोर जोर से रोने लगी थी ।…


 कर्म बड़ा या भाग्य।  एक फूल वाले की कहानी

एक फूल बेचने वाला था । वह मंदिर के बाहर ही अपनी फूलों की टोकरी में कई तरह के रंग बिरंगे फूल लेकर बैठता था । जब भी मैं मंदिर में जाता , उससे फूल लेकर मंदिर में चढ़ाता था । एक दिन मैंने उससे फूल खरीदे , मंदिर में चढ़ाए , भगवान के दर्शन किए और वापस आते हुए उस फूल वाले के पास बैठ गया । मैं उससे बातें करने लगा , बातों ही बातों उसके साथ मेरी परिश्रम और भाग्य पर बात शुरू हो गई । मैंने उस फूल वाले से एक सवाल पूछा कि –  आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से ? उस फूल वाले ने जो जवाब दिया , उस जवाब को सुनकर मेरे दिमाग में कर्म और भाग्य को लेकर सारी शंका दूर हो गई । वह फूल वाला बोला कि आपका किसी बैंक में लॉकर तो जरूर होगा ? मैंने कहा –  हां । तो उस फूल वाले ने कहा कि उस लॉकर की चाबी ही मेरा जवाब है । हर लॉकर की दो चाबियां होती है – एक आपके पास होती है और एक मैनेजर के पास । आपके पास जो चाबी है – वह है परिश्रम की चाबी और जो चाबी मैनेजर के पास है – वह है भाग्य की चाबी । जब तक दोनों चाबियां नहीं लगती , तब तक लॉकर का ताला नहीं खुल सकता । आप कर्म योगी पुरुष है और मैनेजर भगवान । आपको अपनी चाबी से कोशिश करते रहना चाहिए पता नहीं कब ऊपरवाला अपनी चाबी लगा दे और आपकी किस्मत खुल जाए । ऐसा ना हो कि भगवान अपनी भाग्य वाली चाबी लगा रहा हो और आप परिश्रम वाली चाबी ना लगा पाए और हमारा ताला खुलने से रह जाए

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया। बलिदान। माँ बेटे की प्रेरणादायक कहानी। पाप नाशनी गंगा , शिव पार्वती संवाद

 

Hindi story | Hindi stories ।  हिंदी कहानिया।  बलिदान। माँ बेटे की प्रेरणादायक कहानी।  पाप नाशनी गंगा , शिव पार्वती संवाद  Hindi story | Hindi stories ।  हिंदी कहानिया।  बलिदान। माँ बेटे की प्रेरणादायक कहानी।  पाप नाशनी गंगा , शिव पार्वती संवाद

बलिदान। माँ बेटे की प्रेरणादायक कहानी।

अमित 10-12 साल का लड़का था । स्कूल से आते ही उसने अपने बैग को फेंका और अपनी मां से झगड़ने लगा । तुम मेरे स्कूल में क्यों आई ....   मैंने तुम्हें कितनी बार मना किया है कि मेरे स्कूल में मत आया करो । मां ने कहा –  बेटा , तुम्हारे लंच बॉक्स में चटनी रखना भूल गई थी और तुम टिफिन लेकर स्कूल चले गए थे । लेकिन तुम इतना नहीं जानती कि तुम काणी हो ,  तुम्हारे पास एक ही आंख है । तुम्हारे जाने के बाद सब मुझसे कहने लगे कि – तुम्हारी मां तो काणी है । सब हंस रहे थे और मेरा मजाक उड़ा रहे थे । मां बोली – कोई बात नहीं बेटा तुम स्कूल से आए हों , तो तुम्हे भूख लग रही होगी ......   चलो खाना खा लो । बेटा बोला – नहीं , मैं आज खाना नहीं खाऊंगा । तब मां बोली कि ठीक है बेटा , मैं दोबारा तुम्हारे स्कूल में नहीं आऊंगी । पर तुम खाना तो खा लो । बेटा नहीं माना और कहने लगा तुम काणी हो , तुम काणी हो । मां इस जहर को शक्कर की तरह पी गई और अपने बेटे से प्रेम करने लगी । उस घटना के बाद मां दोबारा स्कूल में नहीं गई और उसने मेहनत करके अपने बेटे को पढ़ाया । बेटा स्कूल में प्रथम आया । स्कूल वालों ने उसके सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया । लड़का तैयार हो गया और स्कूल के लिए निकलने लगा । मां ने पूछा कि बेटा मैं आऊं या नहीं । लड़के ने कहा तुम काणी हो ,यह कहकर चला गया  । बेटे के मुंह से यह शब्द सुनते ही मां का कलेजा फटने को आ गया , लेकिन उस बुद्धिमान युवक को अपनी मां का दर्द दिखाई नहीं दिया । परंतु मां से रहा नहीं गया और वह उसके स्कूल में चली गई । परंतु स्कूल में सबसे आखिर में जाकर खड़ी हो गई ताकि किसी को भी पता ना चले । अपने बेटे का सम्मान देखकर वह बहुत खुश हो रही थी और उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे । कार्यक्रम के समाप्त होने पर वह जल्दी से घर आ गई । जब उसका बेटा घर आया तो वह अपने बेटे से बताने लगी कि – बेटा , मैं तेरे स्कूल में आई थी , तुम्हारा सम्मान देखने ......   लेकिन अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी , कि तभी बेटा जोर से उस  पर चिल्लाया .......  लड़के को अपनी मां की ममता नजर नहीं आई ।  बुद्धि को ममता नजर नहीं आती , क्योंकि उसे बाहर का विषय समझ आता है । उसे अपने मां के दिल की बात सुनाई नहीं दी । वह बोला –  काणी तुम्हें समझ नहीं आता , तुम मेरे स्कूल में क्यों आई । उसकी मां चुपचाप यह सब सुनती रही ।  समय बीता और लड़के की शादी हो गई । तब उसकी पत्नी ने कहा कि अड़ोस पड़ोस के सब मुझे कहते हैं कि तुम्हारी सास तो काणी है और मुझे  काणी सास की बहु कहकर चिढ़ाते हैं , मुझसे अब यह सहन नहीं होता । एक दिन लड़के ने अपनी मां से कहा कि – हम तुम्हारे साथ नहीं रह सकते इसलिए हम शहर जा रहे हैं और वही जाकर रहेंगे । जन्म देने वाली , लोगों के झूठे बर्तन मांजने वाली , खुद के गहने बेचकर पढ़ाने वाली मां को अकेला छोड़कर दोनों पति-पत्नी शहर चले जाते हैं । कई वर्ष बीत जाने के बाद एक दिन मां की तबीयत खराब हो जाती है । तब मां सोचती है कि क्या पता मैं कब मर जाऊं ..... लेकिन सब कहते हैं कि मेरी परी जैसी पोती है और राजकुमार जैसा पोता है । यह सुनकर मुझे मेरे पोता पोती देखने की इच्छा हो रही है । तभी उसे बेटे और बहू का दिल चीर कर रखने वाला शब्द याद आया कि तुम काणी हो और वह रुक गई । मां ने तीन-चार दिन बड़ी बेसब्री से निकाले , पर उससे रहा नहीं गया और वह अपने पोता पोती को देखने शहर के लिए निकल पड़ी । अपने पोता पोती को खेलते देखा , उन्हें गोद में उठाने के लिए दौड़ पड़ी, तभी उसकी बहू ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा कि – इन्हें हाथ मत लगाना तभी उसका बेटा भी बाहर आ गया और बोला कि –  काणी , यहां क्यों आई हो , चली जाओ यहां से । सुनाने का काम दिमाग करता है , बुद्धि करती है लेकिन किसी के द्वारा कहे गए कड़वें वचनों को सुनने का काम प्रेम करता है ,  हृदय करता है । मां अपने आंसुओं को जैसे तैसे रोककर वापस अपने गांव आ गई । कुछ दिनों के बाद गांव के मुखिया ने उसके लड़के को फोन करके कहा कि – तुम्हारी मां कुछ ही दिनों की मेहमान है । वह लड़का मुखिया की शर्म के कारण अपनी मां से मिलने के लिए शहर से चल पड़ा । परंतु अपने मन ही मन में कह रहा था कि – अच्छा हो , काणी मर जाए । परंतु जब लड़का गांव में पहुंचा तो उसके मुखिया और पड़ोसियों ने कहा कि – तुम्हारी मां तो कल रात ही गुजर गई थी । फिर हमने दोपहर के 12:00 बजे तक तुम्हारा इंतजार किया और तुम्हारे ना आने पर हमने स्वयं ही उसका दाह संस्कार कर दिया । वह अपने आखिरी पलों में तुम्हें ही याद कर रही थी , यह कहते हुए पड़ोसी ने उसे एक लिफाफा दिया । लड़का जब अपने घर आया तो उसकी पत्नी ने पूछा कि –  क्या हुआ ? तब लड़के ने कहा कि काणी मर गई ।  पत्नी ने उसे चाय पिलाई । लड़के ने चाय पीते – पीते उस लिफाफे को खोला , जो उसे उसके पड़ोसी ने दिया था । उसके अंदर एक कागज था वह उस कागज को पढ़ने लगा । उसमें लिखा था कि – बेटा ,अब मुझे लगता है कि मेरा समय आ गया है । इसलिए अब मैं तुम्हें यह बात बताना चाहती हूं कि जब तू छोटा था तो एक एक्सीडेंट में तेरी एक आंख चली गई थी । मैं तुझे एक आंख का नहीं देख सकती थी । तेरे पिता ने तेरी आंख को वापस दिलवाने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी थी , पर वे तेरी एक आंख नहीं दिला सके ।  तेरे सारे दोस्त तुझे काणा काणा कहकर चिढ़ाते थे । मैं तुझे इस प्रकार नहीं देख सकती थी ।  इसलिए मैंने अपनी एक आंख तुझे दे दी और तेरी दूसरी आंख देख कर मेरी एक आंख में खुशी के आंसू आते थे । जाओ खुश रह , मेरे बच्चे ।  यह पढ़ते ही उसके हाथ से चाय का कप नीचे गिर गया और वह जोर से चिल्लाया – मां... मां.... मां और जोर जोर से रोने लगा .... रोते हुए बोला – तुम मेरे लिए काणी हो गई मां .... तूने मुझे अपनी एक आंख दी.....  तूने मुझे यह बात बताई क्यों नहीं .... तू आज तक एक बार भी क्यों नहीं बोली .......मुझे माफ कर दे मां....... परंतु अपने बेटे की यह बात सुनने के लिए अब उसकी मां नहीं रही थी 

       दोस्तों, दुनिया में सिर्फ मां बाप ही एक ऐसे इंसान है जो आपकी परवाह करते हैं। जिन्हें आपका दुःख देखकर तकलीफ होती है। जो आपकी हर गलती को हंसते हुए माफ कर सकते है। इसलिए कभी भी कड़वे शब्द बोलकर मां बाप का दिल नही दुखाना चाहिए।



 पाप नाशनी गंगा , शिव पार्वती संवाद 

एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे । पार्वती जी ने देखा कि – हजारों की संख्या में लोग गंगा जी में नहा कर " हर हर गंगे " कहते चले जा रहे हैं । परंतु सभी दुखी और पाप परायण है । तब पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा – हे प्रभु , गंगा में इतनी बार स्नान करने के बाद भी इनके पाप और दुख का निवारण क्यों नहीं हुआ ?  क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रहा ?  तब शिवजी ने कहा – पार्वती , गंगा में तो सामर्थ्य है , परंतु लोगों ने पापनाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है , तो इन्हें लाभ कैसे हो । पार्वती जी ने आश्चर्य से कहा कि – स्नान कैसे नहीं किया , सभी तो नहा नहा कर आ रहे हैं , अभी तक तो इनके शरीर भी नहीं सूखे हैं । शिव जी ने कहा – यह केवल जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं , तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊंगा।  दूसरे दिन बड़े जोर से बरसात होने लगी । गलियां कीचड़ से भर गई । सड़क के रास्ते में एक गहरा गड्ढा था । उसमे कीचड़ भरा था । शिव जी ने एक वृद्ध व्यक्ति का रूप बनाया और दीन विवश होकर उस गड्ढे में जा गिरे ।  शिव जी ऐसे उस गढ्ढे में पड़ गए जैसे कोई मनुष्य चलता चलता गड्ढे में गिर पड़ा हो और निकलने की चेष्टा करने पर भी ना निकल पा रहा हो । पार्वती जी को उन्होंने यह समझा कर गड्ढे के पास बिठा दिया कि तुम लोगों को यू सुना सुना कर बार-बार पुकारती रहो , कि मेरे पति अचानक ही चलते चलते गड्ढे में गिर पड़े हैं । कोई पुण्य आत्मा इन्हें निकाल कर इन के प्राण बचाए और मुझ असहाय की सहायता करें । शिव जी ने यह भी समझा दिया कि जब कोई गड्ढे में से मुझे निकालने लगे , तो इतना और कह देना कि –  भाई मेरे पति सर्वथा निष्पाप है , इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो । यदि आप निष्पाप हो तो इन्हें हाथ लगाइए , नहीं तो हाथ लगाते ही आप भस्म हो जाएंगे । पार्वती जी गड्ढे के किनारे बैठ गई और आने जाने वालों को सुना-सुना कर शिवजी की सिखाई बात कहने लगी । गंगा जी में नहा कर लोगों के दल के दल आ रहे थे । सुंदर युवती को यूं बैठे देख कर कईयों के मन में तो पाप आ गया , कई लोग लज्जा से डरे , तो कईयों को धर्म का भय हुआ । कुछ लोगों ने तो पार्वती जी को यह भी सुना दिया कि मरने दे बुड्ढे को , क्यों उसके लिए रोती है । उनमें से कुछ दयालु , सज्जन पुरुष थे । उन्होंने उस वृद्ध को गड्ढे से निकालने के बारे में सोचा । परंतु पार्वती जी के वचन सुनकर वे भी डर गए कि हम गंगा में नहा कर आए हैं तो क्या हुआ ?  हम हैं तो पापी ही ....  कहीं हम जल कर भस्म ना हो जाए । किसी का भी साहस नहीं हुआ । सैकड़ों आए और चले गए । संध्या हो चली थी । शिवजी ने पूछा –  देखो , पार्वती कोई आया क्या , गंगा जी में सच्चे हृदय से नहा कर आने वाला । थोड़ी देर बाद  "हर हर गंगे " कहता हुआ एक युवक वहां से निकला । पार्वती जी ने उसे भी वही बात कही । युवक का हृदय करुणा से भर आया  । उसने शिवजी को निकालने की तैयारी की । पार्वती जी ने उसे रोककर कहा – यदि तुम निष्पाप हो , तभी मेरे पति को हाथ लगाना , नहीं तो मेरे पति को हाथ लगाते ही जलकर भस्म हो जाओगे । युवक ने उसी समय बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय से पार्वती जी से कहा – माता , मेरे अभी भी निष्पाप होने में आपको क्यों संदेह होता है । देखती नहीं , मैं अभी गंगा नहा कर आया हूं । भला गंगा मां में गोता लगाने के बाद भी पाप रहते हैं क्या ? मैं अभी तेरे पति को निकालता हूं । उस युवक ने लपक कर शिवजी को बाहर निकाल दिया । तब शिव  पार्वती ने उसे अधिकारी समझकर अपने असली रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए । तब शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि – इतने हजारों की संख्या में आए युवकों में से बस इस एक युवक ने ही गंगा स्नान किया है । पार्वती, गंगा में स्नान का मतलब शरीर की डुबकी नही बल्कि मन की डुबकी है। मन से गंगा में डुबकी लगाओ और निष्पाप हो जाओ। तभी तो कहते है – 

       " मन चंगा तो कठौती में गंगा "

Hindi story | Hindi stories | कुली माँ की अफसर बिटिया। माँ कुली बेटी IAS | नया पड़ोसी। शिक्षा प्रद कहानी

 


कुली माँ की अफसर बिटिया।  माँ कुली बेटी IAS

भीमा को दो दिन से बुखार आ रहा था । फिर भी वो तीसरे दिन सवेरे सवेरे रेलवे स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गया । रेलवे स्टेशन पर वह कुली का काम करता था । उसका काम बहुत ही मेहनत वाला था । पूरे दिन में ना जाने कितने किलो वजन लेकर उसे एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म तक जाना पड़ता था । पूरे दिन की मेहनत के बावजूद किसी तरह उसके घर की रोटी चलती थी । उस दिन जब वह काम पर जा रहा था , तो उसकी गर्भवती पत्नी सावित्री ने उसे काम पर जाने के लिए मना कर दिया और उसे घर पर ही आराम करने को कहा । क्योंकि उसे 2 दिन से बुखार था । तब भीमा बोला – अरे ! तुम क्यों फ़िक्र करती हो ? मैं बिल्कुल ठीक हैं । उसकी पत्नी बोली – आप क्यों झूठ बोल रहे हैं , आपको 2 दिन से बुखार था । आज रहने दीजिए काम पर जाने के लिए .........  तभी भीमा बोला –  अरे नहीं , मैं बिल्कुल ठीक हूं , ले हमारा सर छू कर देख ले .....      यह कहकर भीमा ने सावित्री का हाथ पकड़कर अपने सर से लगा लिया ।  देखा , नहीं है ना बुखार ......  हो गई तसल्ली .......  देखो , सावित्री हमें पैसों की बहुत जरूरत है , अगर मैं घर पर बैठ गया ,तो बस फिर हो गया काम ....... यह कहकर भीमा काम पर चला गया । परंतु सावित्री को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह आखरी बार अपने पति को जाते हुए देख रही है । असल में भीमा को उस वक्त बुखार नहीं था , परंतु उसके शरीर में बहुत ही कमजोरी थी । जैसे ही वह प्लैटफॉर्म पर गया और ट्रेन आई , ट्रेन को आते देख जैसे ही वह भागा और अचानक उसे बहुत जोर से चक्कर आया और वह ट्रेन के आगे आ गया और उसकी मौत हो गई।  उसकी पत्नी सावित्री को जब यह पता चला तो वह रोते रोते स्टेशन पर गई । यह क्या हो गया ......  आप हमें किस के भरोसे छोड़ कर चले गए ....... भगवान के लिए आप वापस आ जाइए , आप वापस आ जाइए । यह कहते कहते वह बहुत जोर जोर से रो रही थी । तभी उसके पेट में बहुत जोर से दर्द उठा और वह वहीं बेहोश हो गई । भीमा का दोस्त मनोज उसे अस्पताल ले गया । वह भीमा की पत्नी सावित्रि को अपनी बहन की तरह ही मानता था । डॉक्टर ने उसकी हालत देखकर उसे तुरंत ही एडमिट कर लिया और कहा कि – हमें  इनका ऑपरेशन करना पड़ेगा । थोड़ी देर बाद डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए और बोले कि –  हमें बहुत ही खेद है , हम बच्चे को नहीं बचा पाए .......     कुछ दिनों बाद  सावित्री भी अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ गई । उसके जीने का कुछ भी मकसद नहीं बचा था । उसका पति भी जा चुका था और उसका बच्चा भी । वह सारा दिन घर में भूखी प्यासी पड़ी रहती और पागलों की तरह रोती रहती । एक रात की बात है सावित्री ने तय कर लिया कि अब वह भी जिंदा नहीं रहेगी.....    पास वाली नदी में वह भी कूद कर आत्महत्या कर लेगी । यह सोचकर वह अपने घर से निकल पड़ी । सड़क बहुत सुनसान पड़ी थी । तभी उसके कानों में किसी बच्चे के रोने की आवाज आई । अरे ! यह किसके बच्चे की रोने की आवाज है ....   सावित्री ने इधर-उधर देखा .....  लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया । तभी अचानक उसकी नजर कूड़े के ढेर पर पड़ी ।  कूड़े के ढेर में एक नवजात बच्ची कपड़ों में लिपटी हुई पड़ी थी और वह लगातार रोए जा रही थी । सावित्री दौड़कर उसके पास गई और उसे गले से लगा लिया । बच्ची उसके सीने से लिपट कर चुप हो गई थी । सावित्री को ऐसे लगने लगा था कि भगवान ने कुछ दिनों पहले जो उसका बच्चा छीना था , वह उसे अब वापस कर दिया है । क्या हुआ क्यों रो रही हो...... तुम्हें भूख लगी है क्या ...... अरे कोई है यहां पर .....  यह किसकी बच्ची है ? लेकिन वहां कोई नहीं था । पता नहीं लोग अपने बच्ची को क्यों कूड़े में फेंक देते हैं । सावित्री के पास इन सब बातों का कोई जवाब नहीं था । लेकिन सावित्री को अपने जीने का मकसद मिल चुका था । कुछ समय पहले वह अपने जीवन को खत्म कर देना चाहती थी , परंतु इस बच्ची के मुस्कुराते चेहरे को देखकर उस में जीने की आशा फिर से आ गई थी । तभी तो कहते हैं कि बच्चे भगवान का दूसरा रूप होते हैं । सावित्री ने उस बच्ची का नाम आशा रखा , क्योंकि वह उसके जीने की आशा थी । सावित्री उसे अपने घर ले आई । अरे घर में तो खाने-पीने का कुछ भी सामान नहीं है ।  मैं थोड़ा सा दूध मनोहर भैया से लेकर आती हूं । सावित्री मनोहर के घर से थोड़ा सा दूध ले आई और बच्ची को पिलाने लगी । अब उसने सोच लिया था कि वह भी मेहनत करेगी और इस बच्ची को पालेगी । जिस स्टेशन पर भीमा काम करता था , उसी स्टेशन पर सब एक कुली महिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गए ,  जिसने एक नवजात बच्ची को अपनी पीठ पर बांध रखा था । वह औरत और कोई नहीं बल्कि सावित्री थी । प्लेटफार्म पर ट्रेन की आने की घोषणा हुई । सावित्री दौड़कर ट्रेन के पास जा रही थी । ट्रेन आकर रुकी .....  तभी उसमें से एक महिला उतरी ......  जिसके पास काफी सामान था । सावित्री उसके पास आकर बोली –  कुली ...कुली ....कुली ....चाहिए मैम साहब ! अरे तुम उठा पाओगी यह सारा बोझ , उस मैम साहब ने कहा । मेम साहब , मैंने अपने जीवन में ऐसे ऐसे बोझ उठा लिए हैं , ये तो कुछ भी नहीं है । यह कहकर सावित्री ने उसका सामान अपने सर पर रखा और चल पड़ी । उस दिन उसके जीवन का यह एक नया अनुभव भी था और नया सफर भी । सावित्री बहुत मन लगाकर काम करती । हालांकि कभी-कभी वह थक भी जाती । लेकिन अपनी बेटी के लिए फिर से खड़ी होती और काम पर लग जाती । धीरे-धीरे उसकी बेटी आशा बड़ी हो रही थी । सावित्री ने उसका दाखिला एक अच्छे स्कूल में करवा दिया । एक दिन सावित्री जब घर पहुंची , तो उसकी बेटी आशा उससे जाकर लिपट गई ....   मां ..  मां ... मुझे आपको एक चीज दिखानी है । क्या चीज है बेटा ...   तब आशा ने एक बहुत बड़ा अवार्ड अपनी मां को दिखाया , जो उसे स्कूल की ओर से मिला था । अरे वाह ! वाह .... वाह....  मेरी बेटी यह तुम्हें स्कूल से मिला ...  हां मां ..... मैं स्कूल में फर्स्ट आई हूं । यह तो बस आशा की शुरुआत भर थी । एक बार इनाम मिलने का सिलसिला जो शुरू हुआ फिर वह रुका नहीं ..... मिडिल स्कूल से हाई स्कूल  फिर कॉलेज .... हर जगह आशा ने सावित्री का नाम रोशन किया । आशा को आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना था । लेकिन वह चिंता में थी कि वह कैसे शहर में जाकर आगे की पढ़ाई करेगी । क्योंकि इतने पैसे जो नहीं थी उसके पास ....   अरे तुझे फिक्र करने की क्या जरूरत है .........  तेरी मां है ना ....तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे । पैसे कैसे आएंगे .....   कहां से आएंगे......  वह सब तू अपनी मां पर छोड़ दे । सावित्री ने कुछ पैसे ब्याज पर उधार ले लिए । उसने उन पैसों से आशा को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया । सावित्री अब और भी ज्यादा मेहनत करने लगी थी , क्योंकि वह चाहती थी कि उसकी बेटी आशा को अब किसी बात की कोई कमी ना रहे । आशा ने भी अपनी मां की मेहनत को बेकार नहीं जाने दिया । वह खूब मेहनत करती , वह पूरी यूनिवर्सिटी में प्रथम आई। बाद में वह नौकरी की तैयारी करने लगी । उसकी मेहनत का फल भी उसे मिल गया । वह रेलवे की बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और उसकी पोस्टिंग उसी के शहर में हो गई । लेकिन उसने यह बात अपनी मां को नहीं बताई और सीधा ट्रेन से अपने घर की ओर चल पड़ी । उसकी ट्रेन ठीक समय पर प्लेटफार्म पर पहुंची । आशा अपने सामान सहित स्टेशन पर उतरी । आशा का स्वागत करने के लिए उसके असिस्टेंट भी वहां पर मौजूद थे । सावित्री हमेशा की तरह दौड़ती हुई ट्रेन के पास पहुंची और कहने लगी – कुली ....कुली .....कुली .....  मेमसाहब कुली चाहिए क्या ....    अचानक सावित्री की नजर गेट पर खड़ी हुई उसकी बेटी आशा पर गई । उसके असिस्टेंट मैडम मैडम कहकर आशा के पास आकर खड़े हो गए । सावित्री को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । इधर आशा का पूरा ध्यान अपनी मां पर था । वह अपनी मां सावित्री के पास गई और उनके पैर छुए । दोनों की आंखों में आंसू थे । आशा के असिस्टेंट सावित्री को घूर कर देख रहे थे । उनके दिमाग में एक ही सवाल चल रहा था कि ये कुली कौन है .... जिसके पांव उनकी मैडम आशा ने छुए हैं । लेकिन थोड़ी देर में ही उन्हें यह बात पता चल गई कि वह कुली कौन है , जब आशा ने सावित्री को मां कहकर पुकारा । बेटी यह लोग कौन है और यह तुम्हें मैडम मैडम क्यों कह रहे हैं । मां ....  मैं अफसर बन गई हूं । अफसर .....  मेरी बच्ची तुम अफसर बन गई हो , हे भगवान ! आज तूने मेरी सारी तपस्या का फल मुझे दे दिया । तूने मेरे लिए बहुत कष्ट सहे हैं मां , काश कि मैं तेरे सारे कष्ट ले पाती । पता है मां .....मैं भगवान से यही दुआ करती हूं कि हर जन्म में मुझे तेरे जैसी मां मिले । मुझे भी हर जन्म में तेरी जैसी बेटी चाहिए आशा .....  सिर्फ तेरे जैसी ।  आशा ने अपनी मां सावित्री का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था , हालांकि यह सब उसके कठिन परिश्रम के बिना बिल्कुल संभव नहीं था ।



नया पड़ोसी।  शिक्षा प्रद कहानी 


अचानक दरवाजे की कुंडी खटखटाई .......खट ...खट..... खट..... कौन है ...... पता नहीं कौन है ?  इतनी रात गए.....  बड़बड़ाते हुए रमा देवी ने दरवाजे के बीच बने झरोखे से झांकते हुए देखा । अरे !  पायल तुम .... इतनी रात गए  । जानती हो 2:00 बज रहे हैं । अच्छा बताओ... क्या हुआ ? आंटी जी – वो अचानक बाबू जी की तबीयत खराब हो गई है। उन्हें अस्पताल ले कर जाना होगा । आंटी जी अंकल जी से कहिए ना वह अपनी गाड़ी से उन्हें...... बात बीच में ही काटते हुए सावित्री देवी बोली –  वह क्या है बेटा , इनकी भी तबीयत खराब है ........  अभी दवाई देकर बड़ी मुश्किल से सुलाया है , ऊपर से गाड़ी भी ठीक नहीं है । तुम चौक पर चली जाओ , वहां से कोई ऑटो रिक्शा मिल जाएगा । क्या चौक पर ...... यह सुनकर पायल की आंखें भीगी हो गई थी । रात के 2:00 बजे ......  वह भी चौक पर ....  वह सोचने लगी –  मां और बाबू जी ने कभी भी 8:00 बजे के बाद घर से बाहर नहीं निकलने दिया । कारण अक्सर मां बाबूजी समझाते हुए कहते थे कि बेटा ,ये समय असामाजिक तत्वों के बाहर घूमते हुए शिकार करने का ज्यादा होता है । लेकिन आज ......    आज तो मुझे जाना ही होगा । मां को घर में ढांढस बंधा कर आई हूं ।  मुझे बेटी नहीं , बेटा मानते हैं मेरे मां और बाबू जी ,  तो मैं कैसे पीछे हट सकती हूं ......   लेकिन मन में अक्सर अकेली लड़कियों के साथ होती वारदातों की खबरें पायल के मन में होने वाली शंका को और बढ़ा रही थी । लेकिन वह हिम्मत करते हुए अपनी गली से बाहर सड़क की ओर जाने लगी । अरे रुको .....  कौन हो तुम ?   पीछे से आवाज आई .....  पायल ने घबराकर पीछे की ओर देखा तो गली के नुक्कड़ पर महीने भर पहले आए हुए नए पड़ोसी जो की रिक्शा चलाते हैं , उन्हें खड़ा देखा । अरे तुम तो हमारी गली के दीनानाथ जी की बिटिया हो ना ? कहां जा रही हो ? इतनी रात गए  ....   ।     काका , वह बाबू जी की तबीयत खराब है , बड़े अस्पताल लेकर जाना है कोई सवारी रिक्शा .....ढूंढने ।  क्या दीनानाथ जी की तबीयत खराब है । तुम घर चलो वापस , कहते हुए जंजीर से बंधे अपने रिक्शे को खोलने लगे । पायल तुरंत घर पहुंची और बाबूजी को सहारा देकर उठाने की कोशिश ही कर रही थी कि रिक्शा वाले भैया अंदर आ गए ।  आइए दीनानाथ जी , सहारा देते हुए दीनानाथ जी को पकड़ते हुए रिक्शेवाले ने कहा –  अरे भाभी जी ......   बिटिया .... कुछ नहीं , सब कुछ ठीक है । अभी डॉक्टर के पास पहुंच जाएंगे । तीनों को पिछली सीट पर बिठा कर रिक्शे को तेजी से पेंडल मारकर खींचने लगा । अस्पताल पहुंचकर पायल के साथ डॉक्टरों के आगे पीछे भाग कर दीनानाथ जी को भर्ती कराया । देखिए , थोड़ा बी पी बढ़ा हुआ था । डॉक्टरों ने उन्हें दवाई सहित थोड़ा आराम करने को कहा । डैडी के पास बैठी पायल को अपनी आंखों सामने शाम की वह तस्वीर नजर आ रही थी , जब बगल वाली रमा आंटी अंकल के साथ खिल खिलाकर गाड़ी से उतरी । तब ना तो गाड़ी खराब थी , ना ही अंकल जी की तबीयत । बस ......      देखिए , यह इंजेक्शन मंगवा लीजिए डॉक्टर ने एक पर्ची पायल की ओर बढ़ाते हुए कहा । यहां दीजिए , डॉक्टर साहब ! रिक्शा वाले ने यह कहकर पर्ची पकड़ ली । तुम मम्मी-पापा के साथ रहो , हम अभी लेकर आए बिटिया ..... और वह बाहर की ओर तेजी से निकल गया ।  पायल एक टक उसकी ओर देखती रही । एक छोटा सा टीन की चद्दर वाले , मकान में रहने वाला रिक्शा वाला .....   गली में सभी के घर दो तीन मंजिला मकान वाले थे । सभी के घरों में मार्बल , पत्थरों की सजावट थी , तो किसी के घर में टाइल्स की..... बस वही एक झोपड़ी नुमा घर अजीब सा लगता था । लो डॉक्टर साहब , अचानक रिक्शे वाले की आवाज आई । डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाया और आराम करने के लिए कह कर चला गया । सुबह 6:00 बजे तक डॉक्टर साहब ने तकरीबन चार बार बीपी चेक किया । सभी समय सुधार था , इसलिए डॉक्टर साहब ने उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी । वापसी रिक्शे पर लेकर रिक्शेवाले ने बहुत सावधानी से दीनानाथ जी को जैसे ही घर तक छोड़ा और चलने को हुआ , तभी पायल ने पर्स निकालकर पांच सौ का नोट उसकी ओर बढ़ा कर कहा , लीजिए  काका........    यह क्या कर रही हो बिटिया । हम इन कामों के पैसे नहीं लेते ।  मतलब ......   यह तो आपका काम है ना काका लीजिए  – पायल ने कहा । बेटा हमारे परिवार के जीवन यापन के लिए सुबह से शाम तक हम मेहनत  कर उस ऊपर वाले की दया से कमा लेते हैं । ज्यादा का लालच नहीं है । वह ऊपर वाला सब इंतजाम कर देता है , हमारा पेट भरने का ....   और वैसे भी हम एक गली में रहते हैं , तो हम दोनों तो पड़ोसी हुए ना ....   और वह पड़ोसी किस काम का जो ऐसी स्थिति में भी साथ ना दे .... कहकर पायल के सिर पर हाथ फेर कर वह चलने लगा । पायल भीगी हुई आंखों से आंसु पोंछते हुए , ऊपर वाले की ओर देखकर बोली – सच कहते है बाबूजी, आप किसी ना किसी रूप में आकर जरूर मदद करते है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो ऐसे पड़ोसी दिए  , पड़ोसी हो तो ऐसे ।

हिंदी कहानिया। हिंदी स्टोरी। Hindi Story। कुली से Gucci तक। सफर कामयाबी का। औरत की शक्ति

 औरत की शक्ति 

hindi story reading short hindi story story in hindi with moral hindi story for kids love story in hindi hindi story time bedtime stories in hindi



 प्रिया शोरूम में टंगी उस ड्रेस को ध्यान से देख रही थी । उसे इस तरह देखकर राज ने कहा अगर तुम्हें पसंद है तो ले लो । लेकिन प्रिया ने मुंह बनाते हुए कहा – नहीं , इतनी भी खास नहीं है , मैं फिर कभी ले लूंगी.....   अभी तो मेरे पास बहुत से कपड़े हैं । वैसे भी ज्यादा कपड़े देख देख कर मन भर जाता है । प्रिया की बात सुनकर राज मुस्कुरा दिया । पिछले 1 साल से वह यही तो सुनता आ रहा था । प्रिया के आगे जाने के बाद भी उसने उस ड्रेस पर लगे हुए टैग को देखा , तो समझ गया कि प्रिया ने ड्रेस को लेने से इंकार क्यों किया ? तभी घड़ी की ओर देखकर प्रिया बोली अरे 5:00 बज गए राघव का ट्यूशन से आने का टाइम हो जाएगा ।  सुनो , यहां सब्जी मंडी से सब्जियां लेते हुए चलते हैं ।  यहां सब्जी सस्ती मिल जाती है । दो बड़े थैलों में सब्जियां लेकर वे लोग मोटरसाइकिल पर घर के लिए रवाना हो गए । घर पहुंचते ही प्रिया ने सारी सब्जियां फ्रिज में रख दी और खाने की तैयारी करने लगी  । प्रिया और राज की लव कम अरेंज मैरिज थी । दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे । राज की प्राइवेट जॉब थी , जबकि प्रिया के पापा का अच्छा खासा व्यापार था । उसके मम्मी पापा को चिंता थी कि प्रिया किस तरह एडजस्ट कर पाएगी । लेकिन अपनी बेटी की खुशी की खातिर उन्होंने इस शादी को मंज़ूरी दे दी ।  प्रिया भी बहुत समझदार थी । उसने बचपन से ही अपनी मां को हर परिस्थिति में घर परिवार को संभालते हुए देखा था ।  उसके पापा भी पहले छोटा मोटा काम ही करते थे । धीरे-धीरे मम्मी पापा ने संयम और एक दूसरे के साथ से यह मुकाम हासिल किया था । राज भी बहुत मेहनती और समझदार था । वह प्रिया की हर जरूरत का ध्यान रखता था । उनकी जिंदगी में राघव के आने के बाद जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थी । अपने बच्चे के भविष्य के बारे में भी सोचना था , इसलिए प्रिया फिजूलखर्ची से बचती रहती थी । एक दिन अचानक ही प्रिया के मम्मी पापा उसके घर आ पहुंचे । उन्हें देखकर प्रिया और राज बहुत खुश हुए । राघव भी नाना नानी को देखकर उनसे लिपट गया । वे 2 दिन के लिए आए थे । इस बीच प्रिया की मम्मी प्रिया के हर काम को बहुत ध्यान से देख रही थी । हर चीज में बचत और समझदारी की आदत को देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हो रहा था । यह वही प्रिया थी जो बिना सोचे समझे अपने पापा के हजारों रुपए खर्च कर देती थी । प्रिया की मम्मी ने प्रिया से कहा –  बेटा , राज का काम तो ठीक चल रहा है ना ?  हां –  मम्मी , पर आप ऐसा क्यों पूछ रही है ?  प्रिया ने उनकी शंका को समझते हुए कहा । बेटा , मैं कब से देख रही हूं .......   तुम हर काम हाथ खींचकर कर रही हो । अगर तुम चाहो , तो तुम्हारे पापा से कुछ मदद ले सकते हो तुम लोग –  प्रिया की मम्मी ने कहा । उनकी बात सुनकर प्रिया मुस्कुराई और बोली – मम्मी , हमें कोई तकलीफ नहीं है । राज हमारा बहुत ख्याल रखते हैं । बस शादी से पहले मैं अपनी जिद पूरी कर लेती थी , लेकिन अब मुझे जिद और जरूरत में फर्क करना आ गया है । आखिर सब परिस्थितियों में ढलना मैंने आपसे ही तो सीखा है । आपने भी तो हर हाल में पापा का साथ दिया है ना ?  वैसे ही मैं भी राज की ताकत बनना चाहती हूं ।  दरवाजे के पीछे खड़े पापा मां बेटी की बातें सुन रहे थे । उन्हें आज अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था । प्रिया की मम्मी ने उसे गले से लगाते हुए कहा – सच बेटा , आज मुझे अपनी परवरिश पर नाज हो रहा है । हमेशा खुश रहो ......मेरी बच्ची । इतने में राज भी आइसक्रीम लेकर आ गया । राघव अपनी फेवरेट आइसक्रीम देखकर उछल पड़ा ........    सब ने मिलकर आइसक्रीम खाई । मम्मी पापा ने जाते हुए राज से कहा कि – बेटा , अगर कभी हमारी जरूरत पड़े तो याद करना , हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं । राज ने कहा – पापा ,  आप लोगों का आशीर्वाद ही हमारे लिए सब कुछ है । यदि आपका आशीर्वाद हमारे साथ है तो हमें कभी किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी और फिर आपने इतनी समझदार बेटी मुझे  जो सौंप दी है और इसके अलावा हमें क्या चाहिए । अपने बच्चों को इतना खुश और संतुष्ट देखकर उनके मन को तसल्ली हो गई थी कि ये सब परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम है । सच ही तो है एक औरत हर परिस्थिति का सामना कर सकती है । कभी वह नाजुक होती है , तो कभी कठोर । कभी छोटी सी बात पर रो पड़ती है , तो कभी बड़े से बड़ा गम भी अपने अंदर संभाल लेती है । कम पैसों में तो वो गुजारा कर सकती है , लेकिन सम्मान कम हो वह यह हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकती । दरअसल यही एक औरत की खासियत होती है ।


Hindi Story। कुली से Gucci तक।  सफर कामयाबी का


आज हम अपनी इस कहानी में आपको एक ऐसे लड़के के बारे में बताएंगे जिसका जन्म तो गरीबी में हुआ था । परंतु उसकी सोच शुरुआत से ही एक बहुत बड़ा आदमी बनने की थी । अपनी इसी अमीर बनने की सोच के कारण उसने अपने एक मामूली से काम को दुनिया भर के एक बहुत बड़े ब्रांड के रूप में बदल दिया ।  जिसके आगे आज सारी दुनिया झुकती है और उसके ब्रांड का सामान ज्यादा पैसे देकर भी खरीदती है । यह कहानी 1881 में इटली में फ्लोरेंस के एक साधारण से परिवार में पैदा हुए एक लड़के की है । 23 साल की उम्र में इस लड़के ने 1904 में लेदर का काम शुरू किया । व्यापार के शुरुआत में उसे काफी घाटा झेलना पड़ा । क्योंकि उस समय उसे व्यापार का कोई भी अनुभव नहीं था । ज्यादा नुकसान की वजह से उस पर कर्ज बहुत बढ़ गया था । अपने कर्ज के चलते उसके पास नौकरी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था । उसने अपना काम बंद किया और लंदन के लक्जरी सेवाय होटल में एक लिफ्टमैन का काम किया । वह लड़का अपना कर्ज उतारने के लिए लंदन में आया था , लेकिन उसे यहां अपनी कामयाबी का रास्ता नजर आने लगा था । वह जिस होटल में काम करता था । वहां पर विस्टन चर्चिल और मर्लिन मुनरो जैसी शानदार हस्तियों का आना जाना होता था । वह लड़का उनके पहनावे को बहुत ही गौर से देखता था । उसने इनके पहनावे को अपने काम में उतारने की सोची । उसने सोचा यदि वह 10 साल भी इस होटल में काम करेगा , तब भी वह ज्यादा से ज्यादा एक वेटर बन कर ही रह जाएगा , जिस से कुछ नहीं होगा । लेकिन यदि उसने 10 साल अपने व्यापार में मन लगाकर काम किया , तो उसका व्यापार इन 10 साल में उसे बहुत आगे ले जाएगा । वह लड़का इस सोच के कारण 1921 में फ्लोरेंस शहर वापस लौट आया । 1922 में उस लड़के ने अपना कारोबार दोबारा शुरू किया । उस लड़के ने एक छोटी सी दुकान से अपना कारोबार शुरू किया । शुरू में उसने चमड़े से बने छोटे सामान जैसे कि सूटकेस बैग ,  घुड़सवारी का सामान जैसे छोटे उत्पाद बेचता था । उसका व्यापार बहुत ही अच्छा चलने लगा । कुछ वर्षों बाद उसका व्यापार एक छोटे से कारखाने के रूप में बदल गया । इसका साफ मतलब था कि उस लड़के के उत्पाद की डिमांड बढ़ने लगी । कारखाने की मदद से वह दस्ताने , हैंडबैग जैसे प्रोडक्ट का उत्पादन बड़े पैमाने पर करने लगा । उस लड़के के व्यापार को पहचान मिल चुकी थी । लोगों ने उसके इस व्यापार को गुच्ची (gucci) नाम से जाना और उस लड़के का नाम गुच्चियो गुच्चि था । वे  अपने बिजनेस को बढ़ाने में लगे हुए थें। तभी उनके सामने एक बड़ी परेशानी आकर खड़ी हो गई । 1935 के दौर में इटली में तानाशाह मुसोलियन का राज था । इटली में रहते हुए लेदर मिलना मुश्किल हो गया था । इधर गुच्ची का सारा बिजनेस लेदर पर टिका था । मुश्किल तो था , परंतु उसी के पास इसका उपाय भी था । उस ने अपने कुछ प्रोडक्ट में लेदर के जगह सिल्क इस्तेमाल करनी शुरू कर दी थी । छोटी सी दुकान से शुरू किया अपना बिजनेस को गुच्ची ने एक बड़े ब्रांड में बदल कर 1953 में इस दुनिया से अलविदा कह चुके थे । उनकी मौत के बाद उनके बेटों ने इस ब्रांड पर खूब मेहनत करके इसे आगे तक ले गए । यहां तक इसका दबदबा हुआ कि हॉलीवुड के लोग भी गुच्ची के ब्रांड खरीदने लगे थे । एक समय ऐसा आया कि गुच्ची की जींस ने गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया ।  कहां एक छोटा सा गरीब परिवार का लड़का और अपनी इस अमीर सोच के कारण एक ब्रांड के रूप में उभर कर आया था । इसलिए किसी भी इंसान को अपने आप को छोटा नहीं समझना चाहिए । हर इंसान के अंदर ताकत होती है कि वह अपने आप को एक अलग पहचान दिला सकता है । मुश्किल समय सब पर आता है , परंतु इस मुश्किल समय में जो हिम्मत ना हारे वही इंसान आगे चलकर कामयाब होता है ।



hindi story reading

short hindi story

story in hindi with moral

hindi story for kids

love story in hindi

hindi story time

bedtime stories in hindi



Hindi Story | Hindi khaniya | हिंदी कहानी। इज़्ज़त की रोटी। पिता के बाद बच्चे। बिन पति के बनी माँ

 


इज़्ज़त की रोटी।  पिता के बाद बच्चे।

hindi story reading, story in hindi with moral, hindi story book, hindi story for kids, love story in hindi, hindi story time, bedtime stories in hindi,  hindi kahaniyan pdf, hindi kahani reading, rk hindi kahaniya, hindi kahaniya for kids, hindi story, jadui kahaniya in hindi, hindi kahani video, प्रेरणादायक हिंदी कहानियां,



 शाम के समय निशा कपड़ों की तह बना रही थी । 

अचानक उसका गुस्सा कपड़ों पर निकल गया और वह कपड़ों को वही बिस्तर पर पटक कर कुछ बड़बड़ाने लगी –  कब तक यूं ही मैं और मेरे बच्चे तिल तिल कर जीते रहेंगे । इस घर के लिए मैंने क्या कुछ नहीं किया और मेरे बच्चों को दो वक्त की रोटी खाने को नसीब नहीं होती । आज सुबह की घटना उसकी आंखों के सामने फिर आ गई – उसकी 8 साल की बेटी स्नेहा की गलती बस इतनी सी थी कि उसने अपनी ताई जी से दो पनीर के टुकड़े मांग लिए थे । ताई जी मेरी सब्जी में आलू के टुकड़े हैं और सोनू भैया की सब्जी में 5– 5 पनीर के टुकड़े हैं । मुझे भी पनीर के टुकड़े दे दीजिए । सोनू भैया को आप ने गरम – गरम रोटी दी है और मुझे बासी रोटी ........  यह सब स्नेहा ने उदासी भरे स्वर में कहा । तब उसकी ताई जी जोर से चिल्लाते हुए बोली – तुम्हारे पापा यहां जायदाद छोड़कर नहीं गए  ।तुम्हारे बड़े पापा अकेले दिन भर कमाते हैं । मुफ्त की रोटी मिल रही है वही बहुत है । पनीर खाने के सपने छोड़ दो । यह सुनकर उस नन्ही स्नेहा की आंखों में आंसू भर आए । तभी निशा दौड़ते हुए अपनी बेटी स्नेहा के पास आई और उसके आंसू पोंछने लगी । लेकिन वह बहुत ही मजबूर थी । वह अपने आप को बहुत ही लाचार महसूस कर रही थी । तब वह स्नेहा को समझाते हुए बोली –  बेटी जो मिल रहा है , चुपचाप खा लिया करो । इस परिवार में निशा सबसे छोटी बहू बनकर आई थी । बहुत ही सुंदर , सुशील और घर के सारे कामों में निशा बहुत निपुण थी । अपने पति अविनाश का प्यार पाकर वह बहुत ही खुश रहती और मन लगाकर घर के सारे काम किया करती थी । परिवार में उसकी सास , जेठ , जेठानी और उनका बेटा सोनू था  । 5 सालों में निशा दो बच्चों की मां बन चुकी थी । उसकी एक बेटी स्नेहा और दूसरा बेटा वंश था। निशा का पति अविनाश एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था । इतना तो कमा ही लेता था कि परिवार का गुजारा अच्छे से हो सके । सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था । पर एक दिन अचानक भगवान ने पता नहीं किस गलती की सजा निशा को दी कि उसके पति अविनाश को एक साइलेंट अटैक आ गया और उसकी मौत हो गई । वह हमेशा – हमेशा के लिए निशा का साथ छोड़कर चला गया था । बेसुध सी निशा कुछ समझ ना पाई । अपनी सूनी आंखों से कभी गोद में बैठे बेटे वंश को देखती , तो कभी आंचल पकड़े अपनी बेटी नन्ही सी स्नेहा को ..........    निशा की जिंदगी एकदम से उजड़ गई थी । मायके में उसके भाई और भाभी थे । भाई ने निशा को अपने साथ चलने को कहा । लेकिन निशा ने मना कर दिया क्योंकि वहां भी उसे अपने भाई और भाभी के ऊपर बोझ बनकर ही रहना पड़ता । उसकी भाभी का स्वभाव भी कुछ खास अच्छा नहीं था और कम से कम यहां ससुराल में इसका कहने को घर तो था  । बच्चे काफी छोटे थे इसलिए उन्हें छोड़कर बाहर नौकरी भी नहीं कर सकती थी । इसी बीच उसका ससुराल में सबसे बड़ा सहारा उसकी सासू मां भी चल बसी । माता पिता समान उसके जेठ जेठानी उसके बच्चों को संभाल लेंगे , ऐसा सोचकर निशा ने जीवन भर यही रहने का सोचा । लेकिन उसकी जेठानी ने घर की सारी जिम्मेदारियों को एक-एक करके निशा के कंधों पर डाल दिया और अपने आप सब कामों से मुक्त हो गई । जो घर में एक काम वाली बाई आती थी उसे भी उसकी जेठानी ने हटा दिया । सारे दिन की मेहनत के बदले निशा और उसके बच्चों को दो वक्त की रोटी और एक साधारण से स्कूल में दाखिला करा दिया । निशा ने कई बार नौकरी ढूंढने की बात कही , तो उसके जेठ और जेठानी कहने लगे कि लोग क्या कहेंगे ? हमें ताना देंगे ......  घर की इज्जत का कुछ तो ध्यान रखो । उसके जेठ जी को समाज के आगे महान जो बनना था कि देखो भाई के जाने के बाद भी उसके परिवार का कितना ध्यान रखते हैं । दिन भर कोल्हू के बैल की तरह निशा काम करती थी और फिर भी उसे सूखी रोटी खाने को मिलती थी । स्नेहा भी नए स्कूल में नए बैग और जूतों , कपड़ों की मांग करती थी । लेकिन निशा उसे किसी तरह बहला-फुसलाकर मना लेती थी । एक दिन निशा की पड़ोसन ने कहा कि निशा तुम तो बहुत ही अच्छा अचार और पापड़ बना लेती हो , तो क्यों ना इसे ही अपना व्यवसाय बना लो । यह काम तो तुम घर पर रहकर भी कर सकती हो । शाम के समय निशा ने अपनी जेठानी के सामने बड़ी ही दबी जुबान में यह बात रखी । तुम अचार पापड़ बनाओगी तो घर का सारा काम कौन करेगा और काम शुरू करने के लिए पैसे चाहिए और हमारे पास इतने पैसे नहीं है –  उसकी जेठानी बोली । निशा अपना सा मुंह लेकर चुप रह गई । लेकिन आज अपनी बेटी को खाने के लिए रोता देख उसके अंदर बहुत कुछ टूट गया था । वह पूरी रात सो ना सकी । अगले दिन सुबह जल्दी उठी , बच्चों को स्कूल भेजा , जल्दी जल्दी घर के सारे काम किए  और भगवान के आगे हाथ जोड़ कर अपने बेटे को साथ लेकर एक सुनार की दुकान पर अपने सोने के झुमके बेचने के लिए चली गई । उन्हें बेचने से पहले एक बार तो निशा का मन अंदर से कांप गया कि क्या वह सही कर रही है ? यह झुमके तो उसके पति अविनाश की उसके पास आखिरी निशानी है । फिर उसे अपनी रोती हुई बेटी स्नेहा का चेहरा दिखाई दिया और उसने मन ही मन अपने पति से कहा कि मुझे माफ कर दीजिए ......  मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है ।  मैं बहुत मजबूर हूं । मुझसे अपने बच्चों की लाचारी देखी नहीं जा रही । उसने झुमके बेचे और सुनार से पैसे ले लिए । घर आकर उसने अपने जेठ जेठानी के सामने यह बात रखी । मेरे बच्चों को भी खाने-पीने और पहनने का हक है और उनके लिए मैं मेहनत करूंगी । मैंने पैसों का इंतजाम कर लिया है और मैं अपनी कला को अपने व्यवसाय में बदलूंगी । यह छोटे-मोटे काम करके क्या हो जाएगा और ये इतना आसान नहीं है । यदि तुम अचार पापड़ बनाओगी  तो घर के सारे काम कौन करेगा ? उसकी जेठानी बोली । भाभी ये मकान हमारे ससुर जी का है इसलिए आधा काम मैं करूंगी और आधा काम आप करोगे । और काम तो काम होता है कुछ छोटा बड़ा नहीं होता ।  अगले दिन से निशा ने अपने हिस्से का काम किया और अचार पापड़ बनाने की तैयारी करने लगी । आसपास के घरों में जाकर ऑर्डर देने लगी । लोगों को उसके अचार और पापड़ का स्वाद पसंद आया और उसे बहुत से ऑर्डर मिलने लगे । अब तो वह बड़े पैमाने पर दुकानों में भी जाकर सप्लाई करने लगी । अपनी पहली कमाई देख निशा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे । अब वह बहुत खुश थी कि अपने बच्चों को आत्मसम्मान का जीवन दे सकेगी और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी दे सकेगी ।


बिन पति के बनी माँ 


बहुत पहले के समय में वामदेव जी नाम के एक व्यक्ति थें । वे विट्ठल जी के भक्त थे । पहले के समय में छोटी उम्र में ही बेटियों की शादी कर दी जाती थी । इसलिए उन्होंने अपनी बेटी की बहुत कम उम्र में शादी कर दी थी । शादी के कुछ समय बाद ही उनकी बेटी विधवा हो गई । ससुराल में कोई और सहारा ना होने के कारण वह अपने पिता के घर आ गई थी ।  उस छोटी सी खेलने की उम्र में वह बहुत ही चुपचाप और गुमसुम रहने लगी थी । उसके पिता एक दिन उसे विट्ठल जी के मंदिर में ले गए और बातों ही बातों में कहने लगे कि अब ये ही तेरे पति है । इसलिए तू अब विट्ठल जी को अपना पति मान ।  उस भोली भाली छोटी सी लड़की ने विट्ठल जी को अपना पति मान लिया । अब तो वह विट्ठल जी के मंदिर में जाकर उनकी सेवा करती थी ।  नित्य उनके दर्शन करती थी और इस तरह अपनी जिंदगी में बहुत ही खुश हो गई । समय बीतता गया एक दिन उसने अपनी सखी को कहते हुए सुना कि वह गर्भवती हो गई है और  कुछ महीने बाद उसकी सहेली के एक लड़का पैदा हुआ । तब उसके मन में भी मां बनने की ख्वाहिश जागी और उसने विट्ठल जी के मंदिर में जाकर कहा कि मैं भी मां बनना चाहती हूं । हे विट्ठल जी , आप मेरी इस मनोकामना को पूरा कीजिए । उसकी पुकार सुनकर विट्ठल जी एक साधारण से व्यक्ति का रूप बनाकर उसके पास आए और उससे बातें करने लगे  ।  लड़की ने पूछा आप कौन हो ? तब उन्होंने कहा कि मैं विट्ठल जी हूं , जिनकी तुम पूजा करती हो । तभी विट्ठल जी कहने लगे बताओ तुम्हें क्या चाहिए?  तब उस लड़की ने कहा कि मैं भी मां बनना चाहती हूं ।  जैसे ही विट्ठल जी ने उस लड़की के सिर पर हाथ रखा और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि जाओ , नौ महीने बाद तुम्हारे गर्भ से भी एक पुत्र का जन्म होगा । भगवान के आशीर्वाद से  वह लड़की गर्भवती हो गई । अब तो सारे गांव में यह बात फैल गई कि विधवा कैसे गर्भवती हो सकती है। सब उसे ताने मारने लगे । उसके पिता ने भी उस पर शक किया । तब उसने कहा कि पिताजी , आपने ही तो कहा था कि विट्ठल जी ही मेरे पति हैं और विट्ठल जी ही मुझसे मंदिर में मिलने आए थे । उन्होंने ही मेरी मां बनने की इच्छा को पूरा किया है । परंतु उसके पिता को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । तब विट्ठल जी वामदेव जी के सपने में आए और उन्हें सारी बात बताई । तब सुबह उठकर वामदेव जी ने अपनी पुत्री के सर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा कि तुम सत्य बोल रही थी । नौ महीने पश्चात उस लड़की ने एक पुत्र को जन्म दिया । उसका पुत्र बड़ा होकर बहुत ही महान संत बना । जिनका नाम नामदेव जी था । नामदेव जी ने कई बार साक्षात विट्ठल जी के दर्शन किए थे ।




tags :


hindi story reading,

story in hindi with moral,

hindi story book,

hindi story for kids,

love story in hindi,

hindi story time,

bedtime stories in hindi,


hindi kahaniyan pdf,

hindi kahani reading,

rk hindi kahaniya,

hindi kahaniya for kids,

hindi story,

jadui kahaniya in hindi,

hindi kahani video,

प्रेरणादायक हिंदी कहानियां,

हिंदी कहानिया। वैश्या और भगवान। शिव की परीक्षा। अर्जुन का घमंड। शिव के तीन वरदान


 
 

वैश्या और भगवान 

एक बार एक बहुत ही प्रसिद्ध संत थें। वे अपने शिष्यों के साथ रंगनाथ जी के दर्शन के लिए जा रहे थे । रास्ते में उन्होंने एक बहुत ही सुंदर सा आमों का बगीचा देखा । उस बगीचे को देखकर संत जी के मन में वहां थोड़ी देर विश्राम करने का विचार आया। संत जी ने वहीं पर अपनी झोली में से अपने प्रभु की मूर्ति निकाली और उनका भजन करने लगे । तभी वहां पर एक डाली से आम टूटकर गिरा । संत जी ने उस आम का भोग भगवान जी को लगाया और अपने शिष्यो में भी बांट दिया । तभी वहां से एक आदमी गुजर रहा था । उन संत जी ने आदमी से पूछा कि – यह सुंदर सा बगीचा किसका है ? इसके फल तो बहुत ही मीठे हैं । तब उस आदमी ने कहा कि –  यह बगीचा यहां की एक प्रसिद्ध वैश्या का है । यह सुनते ही संत जी सोचने लगे कि हमसे ये क्या अपराध हो गया । हमने एक वैश्या के बगीचे का आम खाया और अपने प्रभु को भी उसका भोग लगाया । इतने में ये खबर उस वैश्या तक पहुंच गई कि – उसके बगीचे में कुछ साधु संत रुके हैं । वैश्या ने जब यह सुना , तो वह बहुत ही खुश हुई और एक थाली में सोने , चांदी , हीरे , मोती के आभूषण और दूसरी टोकरी में कंदमूल फल लेकर उन साधु-संतों के पास आई और कहने लगी कि – हे संत महाराज जी , कृपया यह सब ग्रहण कीजिए और मेरा उद्धार कीजिए । तब संत जी बोले – हमें इसमें से कुछ भी नहीं चाहिए ।  हमें सोने चांदी की आवश्यकता नहीं है । हमें तो अपने प्रभु के नाम का ही धन प्यारा लगता है । इसलिए आप कृपया अपना यह सामान वापस ले जाइए । हमारा धन तो मेरे रंगनाथ जी है। लेकिन उस वैश्या के बहुत कहने पर संत जी बोले – यदि तुम इतनी जिद कर रही हो , तो तुम यह जो सोना चांदी लाई हो इससे एक रंगनाथ भगवान जी के लिए मुकुट बनवाओ । हम उस मुकुट को रंगनाथ जी को पहना देंगे । तब उस वैश्या ने अपने पास जितने भी कीमती हीरे मोती थे । सब एक सुनार को ले जाकर दे दिए और कहा कि इनसे एक रंगनाथ जी के लिए सुंदर सा मुकुट तैयार करो । सुनार ने एक बहुत ही अद्वितीय सुंदर मुकुट बनाया। वेश्या उस मुकुट को लेकर जैसे ही रंगनाथ जी के मंदिर में पहुंचने वाली थी । तभी कुछ दूरी पर उसे मासिक धर्म शुरू हो गया और वह मंदिर के बाहर ही खड़ी हो गई । उसने संत जी को बुलवाया और कहा कि – आप यह मुकुट रंगनाथ जी को पहना दो । मैं इस समय मासिक धर्म से हूं । और वैसे भी मैं एक वैश्या हूं , मैं अपने हाथों से भगवान को छूकर अपवित्र नही करना चाहती । मैं कुछ दिनो बाद आकर तब दूर से ही भगवान के दर्शन कर लूंगी । संत जी ने वह मुकुट वहां के पुजारी को दे दिया और कहा कि रंगनाथ भगवान को मुकुट पहनाओं । जैसे ही पुजारी भगवान को मुकुट पहनाने लगे , तो रंगनाथ जी का सिर ऊंचा हो गया । पुजारी ने एक लकड़ी का मेज रखा और उस पर चढ़कर मुकुट पहनाने लगे , तो रंगनाथ जी का सिर नीचा हो गया । यह एक बहुत ही अद्भुत चमत्कार था । पुजारी जी रंगनाथ जी को मुकुट नहीं पहना पा रहे थे । सब ये देखकर हैरान हो गए थे तब संत जी ने रंगनाथ जी से पूछा कि हे भगवान , ये क्या हो रहा है । आप मुकुट क्यों नहीं पहन रहे हो? कृपया इसका कारण बताइए । तब रंगनाथ जी की मूर्ति में से एक आवाज आई कि जिस ने मेरे लिए मुकुट बनवाया है , वही मुझे मुकुट पहनाए तो मैं पहन लूंगा । तब सब आपस में सोचने लगे कि यह मुकुट तो एक वैशया ने बनवाया है । यदि एक वेश्या अपवित्र अवस्था में मंदिर में आएगी तो अनर्थ हो जाएगा ।  लेकिन संत जी बोले कि जब भगवान का यही आदेश है तो हमें यह मानना होगा ।  तब संत जी वैश्या के पास गए और कहा कि – तुम्हें मंदिर में जाकर स्वयं भगवान को मुकुट पहनाना है । यही रंगनाथ जी का आदेश है । जैसे ही वैश्या मंदिर में गई और भगवान को मुकुट पहनाने लगी तो रंगनाथ भगवान ने बहुत ही आराम से मुकुट अपने सिर पर धारण कर लिया था । पुजारी जी कहने लगे कि प्रभु , आपने एक वैश्या और वह भी मासिक धर्म की अवस्था में थी , उसके हाथ से मुकुट पहन लिया । हम आप के मंदिर में नित्य प्रतिदिन पूजा अर्चना करते हैं और आपने हमारे हाथ से मुकुट नहीं पहना । अब हम में और एक वैश्या में क्या अंतर रह जाएगा ।  तब रंगनाथ जी बोले कि पुजारी जी क्रोधित मत होइए । हमारा तो नाम ही पतित पावन है । इस वेश्या ने अपनी जीवन भर की कमाई को हमारी सेवा में अर्पण किया है । और इसके मन में इस समय पश्चाताप की अग्नि है । इसने यह मुकुट बहुत ही श्रद्धा भाव से हमारे लिए बनवाया है । मैं तो इसके श्रद्धा भाव से ही बहुत प्रसन्न हो गया । और इसके हाथों जो मैंने ये मुकुट पहना है , वह इसी की श्रद्धा है । क्योंकि मुकुट लाते समय यह सोच रही थी कि यदि यह इस जन्म में एक वैश्या ना होती , तो आज यह मुकुट अपने हाथों से मुझे पहनाती।  मैंने तो बस इसकी यह इच्छा पूरी की है ।  यह बात सुनकर मंदिर में रंगनाथ जी के जयकारे गूंज उठे और उस वैश्या ने फैसला किया कि आज से वह इस वेश्यावृत्ति को छोड़कर साधारण जीवन व्यतीत करेगी ।


शिव की परीक्षा। 


माता पार्वती ने शिव शंकर भगवान को पति रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों तक बहुत कठिन तपस्या की थी । उनकी कठिन तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए । तब माता पार्वती ने कहां कि  – प्रभु ,  मैं आपको पति के रूप में पाना चाहती हूं । इसीलिए मैंने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की है । तब शिव शंकर भगवान ने उन्हें वर दिया कि – मैं तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होऊंगा । माता पार्वती इस वरदान को पाकर बहुत खुश हुई । अपनी तपस्या सफल होने के बाद वे अपने महलों की ओर जाने लगी । तभी रास्ते में उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक तालाब में एक मगरमच्छ ने एक बालक को पकड़ा हुआ है । वह बालक जोर-जोर से चिल्ला रहा है कि बचाओ , मुझे बचाओ । माता पार्वती उस बालक की आवाज सुनकर तालाब के पास गई । वह बालक माता पार्वती को देखकर जोर-जोर से रोने लगा और कहने लगा कि – मुझे बचाइए। तब माता पार्वती ने हाथ जोड़कर मगरमच्छ से कहा कि – कृपया करके आप इस बालक को छोड़ दीजिए । तब मगरमच्छ बोला कि – यह तो मेरा आहार है , मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूं । यदि मैं अपना आहार छोड़ने लगा तो मैं तो भूखा मर जाऊंगा । तब माता पार्वती बोली – लेकिन , मैं इस बालक को मरने नही दूंगी।  तब मगरमच्छ ने कहा – भगवान ने हमें ऐसा ही बनाया है , हम अपना आहार नहीं छोड़ सकते । तब माता पार्वती ने कहा कि कोई तो दूसरा उपाय होगा । तब मगरमच्छ बोला कि –मैंने सुना है कि आप ने शिवजी को पाने के लिए बहुत ही तपस्या की है । माता पार्वती बोली –  हां । तो मगरमच्छ ने कहा कि आप मुझे अपनी संपूर्ण तपस्या का फल दे दीजिए । जिसके प्रभाव से मैं इस मगर की योनि से मुक्त हो जाऊंगा और मेरा कल्याण हो जाएगा । फिर मैं किसी के भी प्राण नहीं लूंगा । माता पार्वती बिना क्षण की देरी किए अपनी समस्त तपस्या का फल देने को तैयार हो गई । तब मगरमच्छ ने कहा कि – देवी आप एक बार दोबारा सोच लीजिए , आपने यह तपस्या शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए की थी । यदि आप मुझे सारी तपस्या का फल दे देंगी , तो आपको शिवजी पति के रूप में प्राप्त नहीं होंगे । तब माता पार्वती बोली कि – मेरे जीवन का उद्देश्य शिव जी की अर्धांगिनी बनकर उनकी सेवा करना है , चाहे मुझे उसके लिए दोबारा हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या क्यों न करनी पड़े । मुझे इसकी चिंता नहीं है । बस आप इस बालक को छोड़ दीजिए ।  माता पार्वती अपनी तपस्या का फल उस मगरमच्छ को देने के लिए जैसे ही संकल्प करने लगी । तभी वह मगरमच्छ और वह बालक उस तालाब से अदृश्य हो गए और वहां पर शिव शंकर भगवान साक्षात प्रकट हो गए । तब भगवान बोले कि –  पार्वती , मैं ही इस मगरमच्छ के रूप में तुम्हारी परीक्षा लेने आया था । मैं जानना चाहता था कि तुम्हारे ह्रदय में दूसरों के प्रति कितनी दया और कितनी करुणा है । तुम मेरी इस परीक्षा में सफल हो गई । तुमने बिना देरी किए अपने हजारों वर्षों की तपस्या के फल को मगरमच्छ को देने को तैयार हो गई । तुम इस जगत की माता बनने के योग्य हो । क्योंकि एक माता अपने बच्चों को कभी दुखी नहीं देख सकती । अपने बच्चों को बचाने के लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार रहती है ।


अर्जुन का घमंड 

एक बार अर्जुन को अपने धनुर्धर होने का बहुत ही अभिमान हो गया था । उसने सोचा कि इस धरती पर मुझसे बलशाली धनुर्धर कोई भी नहीं है । कोई भी मेरा सामना नहीं कर सकता । जब कृष्ण भगवान ने देखा कि उनके सखा अर्जुन को अभिमान होने लगा है , तो उन्होंने इस अभिमान को दूर करने का उपाय सोचा । तब उन्होंने हनुमान जी को आदेश दिया कि – हनुमान , अर्जुन के इस अहंकार को दूर करो । प्रभु की आज्ञा से हनुमान जी की भेंट अर्जुन से हो गई । अर्जुन को पता नहीं था कि – ये पवन पुत्र हनुमान है । अर्जुन ने उन्हें कोई साधारण सा वानर समझा । और बातों ही बातों में रामसेतु पर बात होने लगी । अर्जुन ने कहा कि श्रीराम ने पत्थरों का सेतु क्यों बनाया । यदि मैं उनकी जगह होता , तो मैं अपने बाणों  का सेतु बनाता । तब हनुमान जी बोले कि – प्रभु श्री राम ने बाणों का सेतु इसलिए नहीं बनाया , क्योंकि उनकी सेना में एक से एक बलशाली वानर और योद्धा थे । कहीं उनके पैरों से बाणों का सेतु टूट ना जाए । इसीलिए उन्होंने एक मजबूत पत्थरों का सेतु बनाया । तब अर्जुन बोला कि –  श्रीराम के बाण में इतनी ताकत नहीं थी कि उनके योद्धाओं का वजन झेल सके । मुझे लगता है कि श्री राम मेरे जैसे बलशाली धनुर्धर नहीं थे । मेरे बाणों में बहुत ही शक्ति है । हनुमान जी सोचने लगे कि – अब तो इनके अहंकार को तोड़ना ही पड़ेगा । अर्जुन बोले कि –  मेरे बनाए हुए बाणों के पुल को कोई तोड़ नहीं सकता । तब हनुमान जी बोले कि – चलो देखते हैं , तुम्हारे बाणों में कितनी ताकत है । यदि मैंने तुम्हारे बाणों का सेतु तोड़ दिया , तो फिर क्या करोगे ? तब अर्जुन ने कहा कि – तब मुझे इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ योद्धा कहलाने का कोई हक नहीं होगा । तब हनुमानजी ने कहा – ठीक है , तुम बाणों का सेतु बनाओ । तब अर्जुन ने वहां समुद्र के ऊपर एक बाणों का सेतु बनाया । जैसे ही हनुमान जी ने उस पर पैर रखा , वह टूट गया । दूसरी बार फिर अर्जुन ने अपनी पूरी शक्ति के साथ बाणों का सेतु बनाया । लेकिन हनुमान जी के पैर से रखने से वह फिर टूट गया । तब अर्जुन को आभास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है । और उन्होंने हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी और पूछा कि –  आप कौन हैं ? तब वे बोले कि मैं हनुमान हूं । तब अर्जुन को अपनी गलती पर पश्चाताप होने लगा । उन्होंने कहा कि – मुझे माफ कर दे ? मुझे अपनी शक्ति पर इतना अहंकार हो गया था कि मैंने प्रभु श्री राम को भी अपने सामने तुच्छ समझा । तभी वहां पर श्री कृष्ण भी प्रकट हो गए और उन्होंने अर्जुन से कहा कि –  अर्जुन , यह सब मेरी लीला थी । तुम्हें अहंकार हो गया था और मैं अपने भक्तों को अहंकार के कभी भी आधीन नहीं होने देता । इसलिए मैंने हनुमान से कहकर तुम्हारे इस अहंकार को दूर करवाया है।  लेकिन अर्जुन को अपने आप से बहुत ही घृणा सी होने लगी थी , क्योंकि उन्होंने अहंकार के चलते हनुमान जी और श्री राम जी को पता नहीं क्या क्या कह दिया था । तब हनुमान जी कहने लगे कि हे अर्जुन तुम्हें अपने आप से ग्लानि करने की कोई आवश्यकता नहीं है  , क्योंकि मैंने तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं माना । मैं तो एक दास हूं और दास को अपने अपमान और सम्मान की कोई परवाह नहीं होती । उसका तो सिर्फ एक ही धर्म होता है सिर्फ अपने प्रभु की आज्ञा का पालन करना और वही मैंने किया ।


शिव के तीन वरदान 

एक परिवार में पति-पत्नी और एक उनका एक 10 साल का बच्चा था । वह बहुत ही गरीब थे  । दोनों पति-पत्नी बहुत ही मंदबुद्धि थे । एक बार शिव शंकर भगवान और माता पार्वती जब पृथ्वी भ्रमण के लिए निकले , तो माता पार्वती की नजर उस परिवार पर पड़ी। माता पार्वती को उन पर दया आ गई । तब माता पार्वती ने भगवान से इनकी गरीबी को दूर करने के लिऐ कहा । तब शिव जी बोले कि – पार्वती , इनके भाग्य में गरीबी दूर होना नहीं लिखा है । इनका जीवन अभी इसी प्रकार व्यतीत होगा । तब माता पार्वती के बार बार निवेदन करने पर भोलेनाथ ने कहा कि –  ठीक है , यदि तुम कहती हो , तो मैं एक बार कोशिश अवश्य करता हूं । माता पार्वती और भगवान शिव उन पति पत्नी के पास गए और उनसे कहा कि – मैं तुम तीनों को एक एक वरदान देना चाहता हूं , जो चाहो मुझसे मांग लो । तो पहले पत्नी बोली कि कि –  प्रभु , सबसे पहले मुझे वरदान दीजिए । भोलेनाथ बोले – मांगों क्या चाहिए ? तब  पत्नी ने कहा कि मुझे आप 16 साल की एक खूबसूरत लड़की के रूप में बदल दीजिए । भोलेनाथ बोले – तथास्तु , ऐसा ही हो । उसकी पत्नी 16 साल की एक खूबसूरत लड़की के रूप में बदल गई । जब उसके पति ने देखा कि – उसकी पत्नि ने धन दौलत की बजाय जवानी मांगी है , तो उसे बहुत ही गुस्सा आया और उसने भोलेनाथ से कहा कि – हे प्रभु , अब मुझे वरदान दीजिए । भोलेनाथ ने कहा – ठीक है  , मांगों क्या चाहिए ? तब उसने क्रोध में आकर कहा कि – मेरी पत्नी को 100 साल की बुढ़िया बना दो । भोलेनाथ ने कहा – तथास्तु ऐसा ही हो । उसकी पत्नी देखते ही देखते 100 साल की बुढ़िया में बदल गई । अब दोनों के वरदान भी पूरे हो चुके थे । अब सिर्फ बच्चे का वरदान बचा हुआ था , तब भोलेनाथ ने कहा कि – बताओ , बेटा तुम्हें क्या चाहिए ? अब तुम्हारी बारी है । तब वह छोटा सा नन्हा बालक रोने लगा और कहने लगा – मुझे मेरी मां चाहिए । भोलेनाथ ने कहा – तथास्तु ऐसा ही हो । तब उसकी मां जैसी थी , वह वैसी ही हो गई और भगवान भोलेनाथ वहां से अंतर्ध्यान हो गए । तब दोनों पति-पत्नी सिर पकड़ कर रोने लगे कि हमें भगवान ने तीन – तीन वरदान दिए थे और हम उसका लाभ नहीं उठा पाए। हमारी किस्मत में रोना ही लिखा है । तब भोले बाबा कैलाश पर्वत पर जाकर माता पार्वती से कहने लगे कि – यदि उनके भाग्य में सुख होता तो वे एक ही वरदान में मुझसे सब कुछ मांग सकते थे । लेकिन पार्वती तुम चिंता मत करो , कुछ समय बाद उनके घर बेटी का जन्म होगा और उसके भाग्य से उनकी गरीबी धीरे – धीरे  मिट जाएगी ।


राम जी बने गवाह। जब भगवान राम खुद अदालत मे आए



 

एक गांव में रघुनाथ जी का बहुत ही भव्य मंदिर था । उसी गांव में राज कुमार नाम का एक व्यक्ति था। उसकी दो बेटिया थी । वे रघुनाथ जी के अनन्य भक्त थे । वे हर बात पर बस यही कहते थे कि मैं कुछ नहीं जानता , बस रघुनाथ जी ही जाने । वे नित्य प्रति दिन मंदिर में जाया करते थे और रघुनाथ जी की मूर्ति के आगे बैठकर भजन-कीर्तन करते थे  । एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि बेटियां बड़ी हो गई हैं । अब हमें उनका विवाह कर देना चाहिए । आप  जमींदार से कुछ कर्ज ले लो । बेटियों के विवाह के बाद धीरे-धीरे हम उनका कर्ज चुका देंगे । राजकुमार बोला जैसी रघुनाथ जी की इच्छा । वह जमींदार के पास गया और अपनी बेटी के विवाह के लिए कर्ज लिया । उसने अपनी बेटी का विवाह अच्छे परिवार में संपन्न किया। कुछ दिनों के बाद राजकुमार जमींदार के पास उनका कर्ज चुकाने गए। जमींदार ने पैसे गिने और उन्हें एक कागज दिया ।  जिस पर लिखा हुआ था कि सारा कर्जा चुका दिया है अब कोई शेष बाकी नहीं है । उस कागज पर राजकुमार को हस्ताक्षर करने के लिए कहा और जमींदार ने स्वयं भी उस कागज पर हस्ताक्षर कर दिए थे  । तब राजकुमार बोला कि मुझे तो पढ़ना लिखना नहीं आता , मैं तो अनपढ़ हूं । मैं क्या जानू इस पर क्या लिखा हुआ है ।  यह सुनते ही जमींदार के मन में लालच आ गया और उसने उस कर्ज वाले कागज को किसी दूसरे कागज से बदल दिया । जिस पर कुछ आड़ी तिरछी रेखाएं खींची थी। राजकुमार ने घर आकर वह कागज रघुनाथ जी के सामने रख दिया । कुछ दिनों के बाद जमींदार ने राजकुमार पर केस कर दिया कि राजकुमार ने उसका पूरा पैसा नहीं लौटाया है। जब राजकुमार को बुलाया गया तो जज साहब ने पूछा कि तुमने इसका पैसा क्यों नहीं लौटाया। तब राजकुमार बोला – हुजूर , मैंने तो सारा पैसा लौटा दिया है और उन्होंने मुझे एक कागज भी दिया है । जिस पर इनके हस्ताक्षर हैं और उस पर लिखा हुआ है कि मैंने इनका सारा कर्जा चुका दिया है । तब जज साहब बोले  – क्या तुम्हारे पास वह कागज है , उसे लेकर आओ । जब राज कुमार ने वह कागज अपने घर से मंगा कर जज साहब को दिखाया तो उस पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींची थी । तब जज साहब बोले कि इस पर तो यह सब नहीं लिखा हुआ है । तब राजकुमार रोने लगा । जज साहब बोले कि तुम रोओ मत , तुम दोनों के अलावा क्या कोई और तीसरा भी इस बात को जानता है । तब राजकुमार बोला – हां , रघुनाथ जी जानते हैं । जज साहब बोले –  ठीक है । जज साहब ने सोचा कि –  रघुनाथ जी कोई व्यक्ति होंगे । यह सोचकर उन्होंने रघुनाथ जी के नाम समन भिजवा दिया । और राजकुमार को घर भेज दिया । अदालत का कर्मचारी समन लेकर पूरे गांव में घूमता रहा । पर उसे रघुनाथ नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं मिला । जब वह समन लेकर जा रहा था तब  मंदिर के बाहर पुजारी जी बैठे हुए थे । उसने पुजारी से पूछा कि –  रघुनाथ जी कहां रहते हैं ? पुजारी ने कहा कि यहीं पर रहते हैं । तब उसने वह समन पुजारी को दे दिया और कहा कि रघुनाथ जी को इस समन में जो तारीख लिखी है , उस दिन अदालत में पेश होना है । पुजारी ने वह समन रघुनाथ जी की मूर्ति के पास रख दिया और कहने लगा – क्या पता प्रभु की क्या इच्छा है ?  अगली तारीख पर जब सुनवाई हुई , तो जज ने रघुनाथ जी के नाम की हाज़िरी लगवाई कि – रघुनाथ जी हाजिर हो । तब एक बूढ़ा सा व्यक्ति जिसके चेहरे पर एक दिव्य तेज था । लकड़ी के सहारे चलता हुआ अदालत में आया । जज ने पूछा – तुम कौन हो ? तो वह बोला कि मैं रघुनाथ हूं । तब उस रघुनाथ जी ने गवाही दी कि जमींदार झूठ बोल रहा है । राजकुमार ने सारा कर्ज चुका दिया है। और एक कागज पर भी यह सब लिखा हुआ है । वह कागज जमींदार की अलमारी में दराज में रखा हुआ है । जब सिपाहियों को जमींदार के घर भेजा , तो वहां से वह कागज मिला । तब जज साहब ने उस कागज को पढ़ा । और जमींदार को झूठे केस दर्ज करने के जुर्म में सजा सुनाई गई और राजकुमार को बाइज्जत बरी कर दिया गया । तब सब की भीड़ में वह वृद्ध रघुनाथ पता नहीं कहां पर अंतर्ध्यान हो गए । जज साहब ने ऐसा गवाह पहली बार देखा था । तब उन्होंने उस कर्मचारी को बुलाया , जो रघुनाथ जी को समन देकर आया था । उससे पूछा कि तुमने कहां पर समन दिया था । तो उसने मंदिर का पता बता दिया। तब जज साहब उस गांव के मंदिर में गए तो उन्हें रघुनाथ जी की मूर्ति में उस बूढ़े व्यक्ति के दर्शन हुए । जज साहब को यह समझते देर न लगी कि वह बूढ़े व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि भगवान रघुनाथ जी थें । राजकुमार की भक्ति में इतनी शक्ति थी कि स्वयं भगवान उसके लिए गवाही देने आए थे । जज साहब राजकुमार के घर की ओर दौड़े और जाकर उसके चरणों में गिर पड़े । तब राजकुमार बोला कि – जज साहब आप ये क्या कर रहे हैं ?  तब जज साहब बोले कि तुम भगवान के सच्चे भक्त हो , जो तुम्हारे लिए स्वयं भगवान गवाही देने आए थे । तब राजकुमार ने बड़े ही भोलेपन से कहा कि – मैं कुछ नहीं जानता , रघुनाथ जी ही जाने ।

भगवान ने रचाई है ऐसी लीला की कोई खुश नहीं रहेगा


 

एक पेड़ की डाल पर एक कौवा बैठा हुआ था । उसी पेड़ की दूसरी डाल पर एक कोयल भी बैठी हुई थी । कौवा कोयल को देखकर सोचने लगा कि – यह भी काली है और मैं भी काला हूं । हम दोनों का रंग एक जैसा है , लेकिन फिर भी कोयल की आवाज को सब सुनते हैं । इसको सब प्रेम करते हैं और मुझे सब कंकड़ और पत्थर मारते हैं  इसकी जिंदगी कितनी खूबसूरत है और मेरी जिंदगी दुख से भरी है । चलो इस से इसके सुखी जीवन के बारे में पूछता हूं । वह कौवा कोयल के पास गया और बोला है कि – कोयल बहन , तुम्हारी जिंदगी कितनी अच्छी है । सब तुम्हें प्रेम करते हैं । तब कोयल बोली कि – क्यों कौवा भैया , तुम्हें हमारी जिंदगी कैसे अच्छी लगती है । तब कौवा बोला – जब तुम गाती हो तो लोग तुम्हारे मधुर गीत को सुनते हैं । और तुम से प्रेम करते हैं । और मैं जब बोलता हूं तो लोग मुझे कंकड़ पत्थर मारते हैं और हम से घृणा करते हैं । जबकि हम दोनों का रंग काला है । लोग हमारी आवाज सुनना भी पसंद नहीं करते । भगवान ने हमारे साथ कितनी नाइंसाफी की है । काश ! मैं भी एक कोयल होती । सब मुझसे प्रेम करते । कौवे की बात सुनकर कोयल बोली कि – ठीक है , अगर तुम्हें लगता है भगवान ने तुम्हारे साथ नाइंसाफी की है , तो तुम जाकर भगवान से कहो कि वह तुम्हें कोयल बना दे । यह सुनकर वह कौवा उड़ता हुआ कैलाश पर्वत पर गया और शंकर जी के सामने जाकर बोला कि हे प्रभु, आपने मेरा शरीर ऐसा क्यों बनाया है । सब मुझे मारते हैं , मुझ से घृणा करते हैं , मैं अपने शरीर को बदलना चाहता हूं । भगवान शिव बोले कि– ऐसा मत कहो , चलो मुझे बताओ तुम क्या बनना चाहते हो ? तब कौवा बोला कि – मैं कोयल बनना चाहता हूं । भगवान शिव बोले – ठीक है , मैं तुम्हें कोयल बना दूंगा । पर पहले तुम कोयल से पूछ कर आओ कि कोयल को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत तो नहीं है । वह अपनी जिंदगी में खुश है ना ? भगवान शिव की बात सुनकर कौवा कोयल के पास गया और पूछने लगा कि कोयल तुम अपनी जिंदगी में खुश हो ? तुम्हें किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं है । क्योंकि मैं भी कोयल बनना चाहता हूं । तब कोयल बोली कि कौवा भैया सुनो , जैसा तुम सोच रहे हो । ऐसा मैं भी सोचती थी एक दिन मैंने सोचा कि मेरी आवाज मीठी है , तो क्या हुआ पर मेरा रंग तो काला है । हमसे अच्छा तो हंस है , वह कितना सुंदर दिखता है और उसका रंग भी सफेद है । उसकी जिंदगी कितनी खूबसूरत है , कितने सुंदर सरोवर में वह रहता है । कोयल की बात सुनकर कोवा शिव जी के पास पहुंचा और बोला कि – प्रभु , मुझे कोयल नहीं बनना , मुझे तो हंस बनना है । भगवान शिव बोले कि – मैं तुम्हें हंस बना दूंगा पर पहले एक बार हंस से जाकर पूछ कर आओ कि उसे तो अपनी जिंदगी से कोई समस्या नहीं है । वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट है ना ? भगवान शिव की बात सुनकर कौवा हंस के पास आया और बोला कि हंस भैया , आप कितने खूबसूरत हो , कितने सुंदर सरोवर में आप रहते हो , आपकी जिंदगी बहुत अच्छी है । आपको अपनी जिंदगी से कोई समस्या तो नहीं होगी ? कौवे की बात सुनकर हंस बोला –  नहीं कौवा भैया ,  मैं अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं हूं , मेरा रंग भगवान ने सफेद कफ़न की तरह  बनाया है और सारे दिन इस सरोवर में ही रहता हूं । जब लोग मुझे देखने आते हैं तो मुझे कंकड़ पत्थर मार के उड़ाते हैं। हमसे अच्छा तो तोता है , जो फलों के वृक्षों पर रहता है , मीठे – मीठे फल खाता है और कितना सुंदर है देखने में ।  हंस की यह बात सुनकर कौवा भगवान शिव के पास गया और बोला कि हे प्रभु , मुझे तोता बना दो । तब भगवान शिव बोले –  पहले एक बार जाकर तोते से पूछो कि क्या वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट है । कौवा उड़ कर तोते के पास पहुंचा और बोला कि तोता भैया , आप कितने सुंदर हो , मीठे – मीठे फल खाते हो , जब आसमान में उड़ते हो कितने सुंदर लगते हो । आप से सभी प्रेम करते हैं । कौआ की यह बात सुनकर तोता बोला – अरे भैया ! क्या कह रहे हो ? हमारा रंग तो हरा है , लेकिन मैं अपनी जिंदगी से खुश नहीं हूं । हमें लोग पकड़कर पिंजरे में कैद कर देते हैं और अपने घर में रखते हैं । बल्कि हम तो आसमान में खुले उड़ना चाहते हैं । इससे बुरी जिंदगी और क्या होगी ?  अरे हम से तो अच्छी जिंदगी उस मोर की है , जो देखने में कितना सुंदर है , कितना सुंदर नाचता है और राष्ट्रीय पक्षी भी है ।  तोते की यह बात सुनकर कौवा शिव शंकर के पास गया और बोला कि प्रभु , मुझे तोता नहीं बनना , बल्कि मुझे मोर बना दो । तब शंकरजी बोले कि – ठीक है मैं तुम्हें मोर बना दूंगा , पर पहले जाकर एक बार मोर से भी पूछ कर आओ कि क्या वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट है । उसे तो कोई शिकायत नहीं है । कौवा उड़ कर फिर मोर के पास गया और बोला कि – मोर भैया , आप कितने सुंदर हो । आपके रंग बिरंगे पंख है , जब नाचते हो कितने सुंदर लगते हो । सभी लोग आपको देखना पसंद करते हैं । आपकी जिंदगी कितनी खूबसूरत है । तब मोर बोला –तुमने जो बातें कही वह सब तो ठीक है , परंतु मेरी जिंदगी बहुत खराब है । तब कौवा बोला – वह कैसे ? तब मोर बोलता है कि जब मैं नाचता हूं , तो लोग मुझे देखते हैं और मुझे पकड़ने की कोशिश करते हैं । मेरे पंखों को उखाड़ देते हैं ,  और उन्हें बाजार में जाकर बेचते हैं । कई लोग तो , जो हमारे पंखों को पाना चाहते हैं , वह हमारे पीछे भागते हैं और कई बार तो हमें मार ही देते हैं । यह सुंदरता ही हमारी जान की दुश्मन है । यदि मैं इतना सुंदर ना होता , तो लोग ना तो हमारा पीछा करते और ना ही हमें मारते । पता नहीं भगवान ने मुझे ऐसा शरीर क्यों दिया । हमसे तो अच्छी तेरी जिंदगी है , तू  स्वतंत्र रहता है , आजाद रहता है , कोई तुझे नहीं पकड़ता , तेरी जिंदगी सबसे अच्छी है और तू अपनी जिंदगी से परेशान हो रहा है । मोर की बात सुनकर कौवा बहुत कुछ समझ चुका था । वह भगवान शिव के पास गया और बोला कि प्रभु , मुझे मोर नहीं बनना । मुझे आपने जैसा बनाया है , उसी से मैं संतुष्ट हूं । वह शिव शंकर को प्रणाम कर के चला जाता है ।

 तो दोस्तों , इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हमें अपने शरीर की , अपने जीवन की तुलना किसी से नहीं करनी चाहिए । भगवान ने हमें जैसा बनाया है उसी में हमें संतुष्ट रहना चाहिए । दूसरों की सुंदरता और धन दौलत को देखकर हमें जलना नहीं चाहिए । बल्कि भगवान ने जो हमें शरीर दिया है कुछ सोच समझ कर ही दिया होगा । और हमें इसी शरीर के साथ अच्छे कर्म करने चाहिए


hindi khaniya 

hindi story 

भगवान शिव। भक्त के लिए नौकरी की , डंडे खाए। सच्ची घटना।


 

विद्यापति नाम के एक श्रेष्ठ कवि थे । वह शिव के परम भक्त थे । एक दिन शिव शंकर भगवान उनके भक्ति भाव से प्रसन्न होकर सोचने लगे कि क्यों ना अपने इस भक्त के घर पर जाकर कुछ इसकी सेवा की जाए । ये मेरा नाम हमेशा जपता रहता है ।  क्यों ना कुछ दिन अपने इस भक्त के साथ रहा जाए। शिव शंकर ने एक साधारण से व्यक्ति  का रूप बनाया और विद्यापति के घर आ गए और उनसे कहा कि महाराज , मुझे नौकरी की बहुत जरूरत है । मुझे अपने यहां काम पर रख लीजिए । विद्यापति बोले कि – मैं तुम्हें काम पर नहीं रख सकता । मैं तो अपने परिवार के ही खाने की व्यवस्था बहुत मुश्किल से कर पाता हूं ।  लेकिन शिव जी बोले कि –  महाराज , आप जो खाएंगे उसमें से थोड़ा सा मुझे भी दे देना और यदि आप भूखे रहेंगे तो मैं भी भूखा रह लूंगा। परंतु मुझे अपनी सेवा में रख लीजिए । शिव जी बार बार विनती करने लगे । विद्यापति को उन पर दया आ गई और उनसे उनका नाम पूछा । तब शिवजी ने कहा कि – मेरा नाम उगना है । विद्यापति ने उन्हें अपने यहां नौकर रख लिया । एक बार विद्यापति राजा से मिलने के लिए जा रहे थे । तब वह उगना सेवक बोला कि – मैं भी आपके साथ चलूंगा । विद्यापति ने कहा – ठीक है , चलो । वे जंगल के रास्ते जा रहे थे । विद्यापति को प्यास लगी , लेकिन वहां पर दूर – दूर तक कहीं पानी नजर नहीं आया। तब विद्यापति ने अपने सेवक उगना से कहा कि – जाओ , कहीं से पानी की व्यवस्था करके आओ । बहुत प्यास लगी है। कंठ सूखा जा रहा है। उगना ने कहा – ठीक है , उगना थोड़ी दूरी पर गए और अपनी जटा से गंगाजल भरकर ले आए । और विद्यापति से कहा कि –लो मालिक ,जल पी लीजिए ।  विद्यापति ने कहा – अरे उगना बहुत जल्दी जल ले आए ।  ये कहते हुए विद्यापति ने जैसे ही जल पिया , तो उसे जल का स्वाद कुछ अलग लगा । तब उन्होंने उगना से पूछा कि इस जल्द का स्वाद ऐसा क्यों लग रहा है ?  जैसे यह गंगाजल हो । तब विद्यापति को उगना पर शक हुआ । और बोले कि सच – सच बताओ , तुम कौन हो ? यदि तुमने मुझे अपना सत्य नहीं बताया , तो मैं यहीं अपने प्राण त्याग दूंगा । विद्यापति के ऐसा कहते ही उगना अपने असली रूप में प्रकट हो गए । शिव जी को देखते ही विद्यापति उनके चरणों में गिर पड़े और रोने लगे कि प्रभु मेरे हाथों यह क्या अपराध हो गया ? मैंने आपको अपना सेवक बनाया , आपसे अपनी सेवा करवाई । बल्कि मुझे आप की सेवा करनी चाहिए  । तब शिवजी ने कहा कि – नहीं , इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । मैं तुम्हारी भक्ति से इतना प्रसन्न हूं कि मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं । और तुम्हारी सेवा करना चाहता हूं । यदि तुम मुझे अपने साथ नहीं रखोगे , तो मैं तुमसे रूष्ट हो जाऊंगा । विद्यापति ने कहा कि – नहीं , भगवान ! आप मुझसे नाराज मत होइए ।  यदि आप मुझसे नाराज हो जाएंगे , तो फिर तो मेरे इस जीवन का कुछ भी महत्व नहीं है । यदि आप को यही मंजूर है , तो आप मेरे साथ ही रहना । तब शिव जी ने कहा कि – तुम्हें मुझे एक वचन और देना होगा कि यह बात तुम किसी को नहीं बताओगे कि मैं शिव हूं । यदि तुमने अपना वचन तोड़ा तो मैं उसी क्षण तुम्हें छोड़ कर चला जाऊंगा । विद्यापति ने कहा – ठीक है भगवन, जैसी आपकी इच्छा । तब से विद्यापति भगवान शिव से सबके सामने बहुत ही संभल कर काम करवाते थें। उन्हें डर था कि भगवान से कुछ ऐसा काम ना कराया जाए जिससे भगवान को कष्ट हो । एक दिन विद्यापति को किसी काम से बाहर जाना पड़ा । घर पर उगना सेवक ही थे । विद्यापति की पत्नी चूल्हे पर खाना बना रही थी और उन्होंने उगना सेवक को कुछ काम सौंप दिया । उस काम को करने में उगना सेवक को विलंब ( देर ) हो गया । इस पर विद्यापति की पत्नी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने जलते चूल्हे से लकड़ी निकालकर उगना की खूब पिटाई की । उगना सेवक चुपचाप पिटते रहे । इतने में विद्यापति घर पर आ गए और उन्होंने ये सब देखा ।  तो उन्होंने दौड़ कर अपनी पत्नी से लकड़ी छीन कर फेंक दी । और कहने लगे कि– हे दुर्भाग्यवान , ये तुमने क्या कर दिया , तुमने हमारे जन्म – जन्म के पापों को बढ़ा लिया । तुम्हें पता है , तुम किसकी पिटाई कर रही थी । ये तो साक्षात शिव भगवान है । जैसे ही विद्यापति ने यह बात कही उगना सेवक वहां से अंतर्ध्यान हो गया । क्योंकि विद्यापति ने अपने वचन को तोड़ दिया था । ये देखते ही विद्यापति भागकर जंगल की ओर आए और वहां बैठकर जोर – जोर से रोने लगे और भगवान शिव को पुकारने लगे , कि हे भगवान ! एक बार आ जाओ । मुझे अपने दर्शन दो । मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगा । वह बहुत ही जोर – जोर से रो – रो कर प्रार्थना कर रहा था । उसकी करुण प्रार्थना सुनकर भोले बाबा प्रकट हुए । विद्यापति ने शिव शंकर भगवान के चरण पकड़ लिए और अपने पापों के लिए क्षमा मांगने लगा । शिव जी बोले कि – इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । मैं तुमसे अब भी बहुत प्रसन्न हूं , बोलो क्या चाहते हो ?  तब विद्यापति बोले कि – प्रभू, मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ हमेशा रहे । तब भोले बाबा ने कहा कि – जिस स्थान पर तुमने रो-रोकर मुझे पुकारा है मैं यहीं पर अपने शिवलिंग रूप में स्थापित रहूंगा और मेरा नाम उगना महादेव के नाम से जाना जाएगा । 

तो भक्तों, भगवान को अपने भक्तों के लिए क्या-क्या रूप धारण करने पड़ते हैं  । जिस तरह एक सच्चे भक्त को अपने भगवान से मिलने की चाहत रहती है , उसी तरह भगवान भी अपने भक्तों से मिलने के लिए उतावले रहते हैं  । आज भी शिव शंकर भगवान हमारे भारतवर्ष में उगना महादेव के रूप में हमारे साथ विराजमान है।

Why doesn't Lord Jagannath have hands? भगवान जग्गनाथ के हाथ क्यों नहीं है ?

Why doesn't Lord Jagannath have hands? भगवान जग्गनाथ के हाथ क्यों नहीं है ?

 


एक बार श्री कृष्ण और बलराम द्वारिका की सभा में बैठे हुए थे ।  उस समय सारी पटरानियां महल में मौजूद थी और वे सब आपस में बातें कर रही थी  कि कृष्ण भगवान बृज की गोपियों की बहुत ही प्रशंसा करते हैं । आखिर ब्रज की गोपियों के प्रेम में ऐसा क्या है जो भगवान उनकी इतनी प्रशंसा करते हैं । तभी वहां पर देवकी माता आ जाती है । वे सब देवकी माता से बृज के बारे में जानना चाहती थी । तब देवकी माता बोली कि –मैं अभी तुम्हें ब्रज के बारे में नहीं बता सकती । क्योंकि कृष्ण और बलराम इस समय द्वारिका की सभा में बैठे हुए हैं । यदि उनके कानों में बृज का नाम भी पड़ा ,  तो वे द्वारिका की सभा को छोड़कर यहां महल में आ जाएंगे । लेकिन सभी पटरानिया जिद करने लगी । तब देवकी माता ने सुभद्रा जी से कहा – कि तुम महल के द्वार पर खड़ी होकर कृष्ण और बलराम को देखती रहो । यदि वे अंदर आए , तो उन्हें अंदर मत आने देना । देवकी माता कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं और ब्रज के बारे में बातें करने लगी । जैसे ही देवकी माता ने ब्रज की गोपियों और राधा जी का नाम लिया । तभी कृष्ण भगवान के कानों में यह नाम सुनाई दिया और कृष्ण और बलराम द्वारिका की सभा को छोड़कर महल की ओर आने लगे । जैसे जैसे देवकी माता ब्रज के बारे में बताती जा रही थी । कृष्ण भगवान उतनी ही तेजी से महल में आ रहे थे । जब वे दोनों भाई महल के द्वार पर आए तो उन्होंने वहां सुभद्रा जी को देखा । सुभद्रा जी ने कृष्ण और बलराम को अंदर जाने से रोक दिया । तब कृष्ण और बलराम द्वार पर खड़े होकर ही ब्रज के बारे में सुनने लगे । जब देवकी माता ने ब्रज की गोपियों और उनके प्रेम के बारे में चर्चा करती जा रही थी । वैसे ही वैसे कृष्ण और बलराम के आंखों से आंसू बहने लगे । कहते हैं कि वे इतने भाव विभोर हो गए कि अपने तन की सुध – बुध खो बैठे । और उनके हाथ और पैर अश्रुओं की धारा से गलने लगे । और उनकी आंखें बड़ी हो गई थी । तभी नारद जी वहां पर आए  । नारद जी ने कृष्ण भगवान के इस स्वरूप को देखा और उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया । और कहा कि प्रभु आपके इस स्वरूप के दर्शन संसार वालों को भी होने चाहिए। तब कृष्ण भगवान ने कहा कि – नारद ऐसा ही होगा । मेरे इस स्वरूप की जिसमें मैं , सुभद्रा और बलराम होंगे , पुरी में मेरे इस स्वरूप विग्रह की पूजा - अर्चना होगी । द्वापर युग के अंत में जब श्री कृष्ण भगवान की मृत्यु हुई , तो अर्जुन के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया । परंतु कई दिन बीत जाने के बाद भी श्री कृष्ण भगवान का हृदय जलता रहा । तब श्री कृष्ण भगवान ने स्वपन में अर्जुन को आदेश दिया । उनके आदेशानुसार अर्जुन ने लकड़ी समेत उनका हृदय समुद्र में बहा दिया और वह समुद्र से बहता हुआ पुरी आ पहुंचा । तब श्री कृष्ण भगवान ने मालवा के राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में आदेश दिया कि वह उस लकड़ी के गट्ठे से उनके श्री विग्रह स्वरूप को बनवा कर एक विशाल मंदिर स्थापित करने को कहा । लेकिन कोई भी शिल्पकार उस लकड़ी के गट्ठे से श्री विग्रह को नहीं बना पाया । तब स्वर्ग के शिल्पकार विश्वकर्मा जी एक बूढ़े आदमी का रूप बनाकर आए और कहा कि मैं इससे भगवान की मूर्ति बना सकता हूं । उन्हें इस कार्य के लिए 21 दिन का समय चाहिए । परंतु उन्होंने शर्त रखी कि इस दौरान कोई भी मंदिर में प्रवेश नहीं करेगा और वे अकेले ही मूर्ति निर्माण का कार्य करेंगे । राजा ने उनकी शर्त मान ली । कुछ दिनों तक तो कमरे के अंदर से हथोड़ा चलने की और मूर्ति निर्माण की आवाजे आती रही । एक दिन राजा की पत्नी ने मन्दिर के बाहर कान लगाकर सुना , तो अंदर से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी । रानी को डर हो गया था कि कहीं वह बूढ़ा आदमी अंदर अकेले मर ना गया हो । उसने यह बात राजा को बताई । राजा ने जैसे ही मंदिर का दरवाजा खोलकर देखा तो वह बूढ़ा आदमी वहां से गायब हो गया ।  मूर्तियां आधी अधूरी बनी हुई थी । तीनों मूर्तियों के पैर नहीं बने थे और कृष्ण और बलराम के तो आधे हाथ ही बने थे । सुभद्रा जी के तो हाथ भी नहीं बने थे । तब राजा को बहुत ही दुख हुआ कि उन्होंने उस बूढ़े आदमी की शर्त क्यों नहीं मानी । परंतु श्री कृष्ण ने राजा इन्द्रद्युम्न को स्वप्न में कहा कि राजा ऐसा ही होना निश्चित था । इसलिए तुम इन आधी अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करो और इनकी पूजा-अर्चना करो ।


tags 

Why doesn't Lord Jagannath have hands? भगवान जग्गनाथ के हाथ क्यों नहीं है ?

a true story of vrandavan | वृंदावन के ग्वाले की सच्ची घटना


 

वृंदावन में एक संत जी रहते थे । श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे । उनका एक छोटा सा 8 साल का शिष्य था ।  वह एक अनाथ बालक था । इसीलिए गुरु जी ने बचपन से ही उसे संभाला , उसे अपनी शरण दी और उसका पालन पोषण किया । उस बालक के अंदर कृष्ण भगवान से मिलने की बहुत ही ललक थी । वह गुरु जी से कान्हा जी की कथाएं सुनता था और कथाओं के माध्यम से उसे कृष्ण जी से इतना लगाव हो गया कि वो उनके साक्षात दर्शन करना चाह रहा था । वह बार-बार अपने गुरु से पूछता था कि गुरु जी , मुझे कृष्ण भगवान के दर्शन कब होंगे । तब गुरु ने एक बार उसे कह दिया कि तुम गाय चराने वन में जाया करो । कृष्ण भगवान भी गईया चराने वन में ही जाते थे । तो तुम्हें वहां पर कृष्ण भगवान के दर्शन हो जाएंगे । वह रोज प्रतिदिन आश्रम की गायों को चराने के लिए लेकर जाने लगा । लेकिन उसे कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । एक दिन उस ने अपने गुरु से पूछा – गुरु जी , मैं तो गाय भी चराने जाता हूं ,लेकिन मुझे अब तक कृष्ण भगवान क्यों नहीं मिले । तब गुरु जी ने कहा कि तुम यमुना पार जाकर गैया चराया करो । वहां कृष्ण भगवान गईयां चराने अवश्य आते होंगे और तुम्हें वहीं पर उनके दर्शन होंगे । गुरु जी के कहे अनुसार वह बालक अगले दिन यमुना पार गया और वहीं पर गैया चराने लगा । लेकिन उसे फिर भी कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । उसने अगले दिन फिर गुरु जी से पूछा कि – गुरु जी , मुझे कल भी कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । क्या वे अब गैया चराने नहीं आते । तो गुरुजी ने कहा कि आते हैं ,लेकिन भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं । तुम अपना नित्य कर्म करते रहो । तुम्हें एक दिन भगवान के जरूर दर्शन होंगे । गुरु जी को कुछ दिनों के लिए आश्रम से बाहर जाना पड़ा । कुछ दिनों पश्चात जब वह बालक एक दिन गाय चरा रहा था , तो उसने देखा कि दूर से कोई गाय और बछड़े को चराता हुआ आ रहा है । जब वे उसके पास गए तो वे स्वयं साक्षात ही कृष्ण भगवान और बलराम थे और उनके साथ में उनके ग्वाल बाल सखा भी थें । बालक ने कहा कि – कान्हा , आप इतने दिनों बाद यहां गैया चराने आए हो , मैं आपकी प्रतीक्षा में कब से यहां आता हूं कि मुझे आप के दर्शन होंगे । भगवान ने कहा –  आओ बैठो , मिलकर बातें करते हैं । तब बालक बोला कि – कान्हा, मैं आपके साथ मित्रता करना चाहता हूं । क्या आप मुझे अपना ग्वाल सखा बनाएंगे ? कृष्ण भगवान ने कहा – अवश्य , तुम्हारे जैसा सखा पाकर तो मैं भी धन्य हो जाऊंगा ।  तो आज से हम मित्र हुए –  बालक ने कहा । कृष्ण भगवान के सखा कुछ दाल बाटी बनाने का सामान भी साथ में ले रहे थे । उन्होंने सब ने मिलकर वही भोजन बनाया और खाया । कृष्ण भगवान ने उस बालक से कहा कि – कल जब तुम आओगे , तुम भी दाल बाटी की सामग्री लाना और यहीं पर सब भोजन बनाकर खाएंगे । उसने कहा ठीक है । अगले दिन वह दाल बाटी की सामग्री लेकर गैया चराने गया । वहीं पर उसे फिर से कृष्ण और बलराम के दर्शन हुए । उन सब ने मिलकर दाल बाटी बनाई और वहीं पर खाई । अब तो वह प्रतिदिन दाल बाटी की सामग्री ले जाता और वहीं पर भगवान कृष्ण के साथ मिलकर खाता । गुरु जी आश्रम में आ गए थे । गुरु जी के आते ही उनके दूसरे शिष्यों ने कहा कि – गुरुदेव जब आप यहां पर नहीं थे , तो यह प्रतिदिन दाल बाटी की सामग्री वन में ले जाता था । इससे पूछो कि – ये ऐसा क्यों करता था ? तब गुरुदेव ने उस छोटे से 8 साल के बालक को अपने पास बुलाया और उससे प्यार पूछा । तब उसने बताया कि – गुरु जी , आपने सत्य कहा था , कृष्ण और बलराम वहीं पर गैयां चराने आते हैं । मुझे उनके दर्शन हुए हैं । उन्होंने ही मुझसे दाल बाटी की सामग्री वन में मंगवाई थी और हम सब वहीं पर भोजन बनाकर खाते थे। दूसरे सभी शिष्य उसकी इस बात पर हंस पड़े । परंतु गुरुदेव को उसकी बात पर विश्वास था । क्योंकि वह बालक कभी भी झूठ नहीं बोलता था । तब गुरु जी बोले कि – तुम दाल बाटी की सामग्री लेकर जाओ और कृष्ण भगवान से कहना कि – मैं भी उनके दर्शन करना  चाहता हूं । क्या वे आश्रम में आकर हमारी सेवा स्वीकार करेंगे । उसने कहा ठीक है , मैं अपने कृष्ण सखा से पूछ लूंगा । वह फिर चला गया। बालक ने कृष्ण भगवान से पूछा कि – मेरे गुरुजी भी आपके दर्शन करना चाहते हैं । क्या आप कल हमारे आश्रम में आएंगे ।  तो कृष्ण भगवान ने कहा कि – नहीं , मैं वहां नहीं आ सकता । मैं तुम्हारे गुरु को दर्शन नहीं दे सकता । क्योंकि उनमें अभी तुम्हारे जैसी निष्काम भक्ति नहीं है । यह सुनते ही वह नन्हा सा 8 साल का बालक उठकर चलने लगा । कृष्ण भगवान ने कहा – अरे ! क्या हुआ सखा , तुम कहां चल दिए ? तब वह बालक बड़ी मासूमियत से बोला कि – जब आप मेरे गुरु जी को दर्शन नहीं दोगे , तो मैं भी आपसे मित्रता नहीं करूंगा और ना ही आपसे मिलने यहां आया करूंगा । कृष्ण भगवान उस बालक के भोलेपन पर मोहित हो गए और कहा कि – ठीक है सखा , कल अपने गुरु जी को यही ले आना । मैं उनसे यही मिलूंगा । लेकिन मैं तुम्हारे आश्रम में नहीं जाऊंगा । तब वह बालक बोला ठीक है , कल मैं अपने गुरु जी को अपने साथ ले आऊंगा । उस बालक ने आश्रम में जाकर सारी बात गुरु जी को बताई ।  गुरु जी ने कहा –  ठीक है , जैसी भगवान की इच्छा । अगले दिन वह बालक अपने गुरु जी के साथ दाल बाटी की सामग्री लेकर वन में गैयाँ चराने आ गया । तब वहां एक अद्भुत करिश्मा हुआ । कृष्ण , बलराम और उनके ग्वाल सखा उस नन्हे से बालक को तो नजर आ रहे थे । परंतु उसके गुरु जी को वहां पर कोई भी नजर नहीं आया । वह बालक कृष्ण भगवान से बातें करने लगा । तब उसके गुरुजी बोले कि तुम किस से बात कर रहे हो ? यहां पर तो कोई भी नहीं है । बालक बोला कि – गुरु जी , यहां सामने कृष्ण और बलराम बैठे हैं , मैं उन्हीं से बातें कर रहा हूं और उनके साथ उनके सारे ग्वाल बाल भी हैं । तब गुरु जी ने कहा – लेकिन मुझे तो यहां किसी के भी दर्शन नहीं हो रहे हैं । तब वह बालक बोला कि – हे कान्हा , यह क्या लीला है , आप मुझे तो नजर आ रहे हो ,  लेकिन मेरे गुरुदेव को नहीं । यदि आप ऐसा करोगे तो मैं यहां से उठ कर चला जाऊंगा । तब कृष्ण भगवान बोले – नहीं , नहीं सखा ऐसा मत करना । दरअसल तुम्हारे गुरु जी की भक्ति अभी तुम्हारे जैसी निश्चल नहीं है । इसीलिए मैंने उन्हें दर्शन नहीं दिए , लेकिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे कहने से मैं तुम्हारे गुरु जी को भी दर्शन देने को तैयार हूं । ऐसा कहते ही कृष्ण भगवान ने गुरु जी को अपने और बलराम जी के और अपने ग्वाल सखा के दर्शन कराएं । गुरु जी कृष्ण भगवान के चरणों में गिर पड़े और बोले कि – भगवन , आपका बड़ा उपकार है ,जो आपने मुझ पर कृपा की और मुझे दर्शन दिए । मेरा तो जन्म सफल हो गया । तब कृष्ण भगवान बोले कि – आपके शिष्य की वजह से ही आपको मेरे दर्शन हो पाए हैं । आपका ये शिष्य बड़ा ही निश्चल और आपका सच्चा सेवक है । जो आपके लिए मेरी मित्रता को त्यागने के लिए भी तैयार है । तब गुरु जी और उस नन्हे से बालक ने भोजन बनाया और कृष्ण , बलराम को भोग लगाया और फिर आपस में मिल बांट कर खाया । उसके पश्चात कृष्ण भगवान वहां से अंतर्ध्यान हो गए। 

  तो भक्तों इस कथा से हमें यही सीख मिलती है कि  भगवान तो प्रेम के भूखे होते हैं । जो उनसे निष्काम भाव से प्रेम करता है , वे उसे अवश्य दर्शन देते हैं ।