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Red Lady Finger (Abelmoschus esculentus), also known as Okra, is a vegetable that is widely cultivated in tropical and subtropical regions of the world. It is a member of the mallow family and is closely related to cotton and hibiscus. The plant produces edible pods that are usually green but can be red or yellow in color. Red lady finger pods are usually longer, thinner, and less hairy than green okra pods.


Red lady finger pods are a popular ingredient in many dishes, particularly in Southern and African American cuisine. They are often used in stews, soups, and gumbo. The seeds inside the pods are edible and are considered a nutritious food source, as they are a good source of fiber, vitamins, and minerals.


When cooking with red lady finger, it is best to avoid overcooking, as this can cause the pods to become slimy and unappealing. The pods are often sliced or chopped and then fried, boiled, or baked. They can also be pickled or canned.


In addition to being a food source, red lady finger is also used for medicinal purposes in some cultures. The leaves, stems, and seeds are used to make teas and other remedies for a variety of ailments, including headaches, indigestion, and sore throat.


In conclusion, red lady finger is a versatile and nutritious vegetable that is enjoyed for its flavor, texture, and health benefits.

Benefits to eat red lady finger 

Red lady finger, also known as okra, provides numerous health benefits when consumed as part of a balanced diet. Some of the benefits include:


Fiber: Red lady finger is a good source of fiber, which can help to regulate digestion and promote feelings of fullness.


Antioxidants: The vegetable is rich in antioxidants, which protect cells from damage caused by harmful molecules known as free radicals.


Vitamins: Red lady finger is a good source of vitamins such as vitamin C, folate, and vitamin K.


Minerals: It is also a good source of minerals such as calcium, iron, and magnesium.


Heart health: The fiber and antioxidants in red lady finger can help to support heart health and reduce the risk of heart disease.


Blood sugar control: The fiber in red lady finger can help to regulate blood sugar levels, making it a good food choice for people with diabetes.


Eye health: Red lady finger is a good source of vitamin A, which is important for eye health.


Immune system support: The vitamin C in red lady finger can help to boost the immune system and protect against illness.


In conclusion, eating red lady finger as part of a balanced diet can provide numerous health benefits and support overall well-being.


How to grow red lady finger 

Growing red lady finger (okra) is a simple process, and it is well-suited to warm, tropical climates. Here are the steps to grow red lady finger:


Choose a suitable site: Select a location in full sun with well-draining soil.


Prepare the soil: Loosen the soil to a depth of about 12 inches, and amend it with compost or other organic matter.


Sow seeds: Plant the seeds about 1 inch deep and 4 to 6 inches apart in rows. Cover with soil, and water well.


Provide support: As the plants grow, they will need support, such as a trellis or stake.


Water regularly: Okra requires regular watering, especially during dry periods. Water deeply and avoid getting water on the leaves.


Fertilize: Apply a balanced fertilizer, such as 10-10-10, every 4 to 6 weeks.


Harvest: Red lady finger pods are ready to harvest when they are 3 to 4 inches long. Use a sharp knife to cut the pods from the plant.


Pest control: Keep an eye out for common okra pests, such as aphids and leaf-footed bugs. Control pests with organic methods, such as beneficial insects or neem oil.


In conclusion, growing red lady finger is a simple and rewarding process. With proper care, you can enjoy a bountiful harvest of this nutritious vegetable in your own garden.


लाल भिंडी के बारे में सब कुछ /


रेड लेडी फिंगर (एबेलमोशस एस्कुलेंटस), जिसे ओकरा के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी सब्जी है जिसकी खेती दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से की जाती है। यह मैलो परिवार का सदस्य है और कपास और हिबिस्कस से निकटता से संबंधित है। यह पौधा खाने योग्य फली पैदा करता है जो आमतौर पर हरे रंग की होती हैं लेकिन लाल या पीले रंग की हो सकती हैं। लाल भिंडी आमतौर पर हरी भिंडी की तुलना में लंबी, पतली और कम बालों वाली होती है।


लाल भिंडी कई व्यंजनों में एक लोकप्रिय सामग्री है, विशेष रूप से दक्षिणी और अफ्रीकी अमेरिकी व्यंजनों में। वे अक्सर स्ट्यू, सूप और गम्बो में उपयोग किए जाते हैं। फली के अंदर के बीज खाने योग्य होते हैं और उन्हें एक पौष्टिक खाद्य स्रोत माना जाता है, क्योंकि वे फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत होते हैं।


लाल भिंडी के साथ पकाते समय, ज़्यादा पकाने से बचना सबसे अच्छा है, क्योंकि इससे फली चिपचिपी और अनाकर्षक हो सकती है। फली अक्सर कटी हुई या कटी हुई होती है और फिर तली, उबाली या बेक की जाती है। उन्हें अचार या डिब्बाबंद भी किया जा सकता है।


एक खाद्य स्रोत होने के अलावा, लाल भिंडी का उपयोग कुछ संस्कृतियों में औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। सिरदर्द, अपच और गले में खराश सहित विभिन्न प्रकार की बीमारियों के लिए पत्तियों, तनों और बीजों का उपयोग चाय और अन्य उपचारों के लिए किया जाता है।


अंत में, लाल भिंडी एक बहुमुखी और पौष्टिक सब्जी है जिसका स्वाद, बनावट और स्वास्थ्य लाभ के लिए आनंद लिया जाता है।


लाल भिंडी खाने के फायदे

लाल भिंडी, जिसे भिंडी के नाम से भी जाना जाता है, संतुलित आहार के हिस्से के रूप में सेवन करने पर कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है। कुछ लाभों में शामिल हैं:


फाइबर: लाल भिंडी फाइबर का एक अच्छा स्रोत है, जो पाचन को विनियमित करने और परिपूर्णता की भावनाओं को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।


एंटीऑक्सीडेंट: सब्जी एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होती है, जो कोशिकाओं को मुक्त कणों के रूप में जाने वाले हानिकारक अणुओं से होने वाले नुकसान से बचाती है।


विटामिन: लाल भिंडी विटामिन सी, फोलेट और विटामिन के जैसे विटामिन का अच्छा स्रोत है।


खनिज: यह कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम जैसे खनिजों का भी एक अच्छा स्रोत है।


हृदय स्वास्थ्य: लाल भिंडी में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।


रक्त शर्करा नियंत्रण: लाल भिंडी में मौजूद फाइबर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जिससे यह मधुमेह वाले लोगों के लिए एक अच्छा भोजन विकल्प बन जाता है।


नेत्र स्वास्थ्य: लाल भिंडी विटामिन ए का अच्छा स्रोत है, जो आंखों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।


प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन: लाल भिंडी में विटामिन सी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और बीमारी से बचाने में मदद कर सकता है।


अंत में, संतुलित आहार के हिस्से के रूप में लाल भिंडी खाने से कई स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं और समग्र कल्याण में सहायता मिल सकती है।


लाल भिंडी कैसे उगाएं

लाल भिंडी (भिंडी) उगाना एक सरल प्रक्रिया है, और यह गर्म, उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए उपयुक्त है। यहां लाल भिंडी उगाने के उपाय दिए गए हैं:


एक उपयुक्त स्थान चुनें: अच्छी तरह से जल निकासी वाली मिट्टी के साथ पूर्ण सूर्य में एक स्थान का चयन करें।


मिट्टी तैयार करें: मिट्टी को लगभग 12 इंच की गहराई तक ढीला करें, और इसे खाद या अन्य कार्बनिक पदार्थों से संशोधित करें।


बीज बोएं: बीजों को पंक्तियों में लगभग 1 इंच गहरा और 4 से 6 इंच अलग रखें। मिट्टी से ढक दें, और अच्छी तरह से पानी दें।


सहायता प्रदान करें: जैसे-जैसे पौधे बढ़ते हैं, उन्हें समर्थन की आवश्यकता होगी, जैसे कि ट्रेलिस या स्टेक।


नियमित रूप से पानी दें: भिंडी को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, खासकर शुष्क अवधि के दौरान। गहराई से पानी दें और पत्तियों पर पानी लगने से बचें.


उर्वरक: एक संतुलित उर्वरक, जैसे 10-10-10, हर 4 से 6 सप्ताह में लगाएं।


कटाई: लाल भिंडी की फली 3 से 4 इंच लंबी होने पर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे से फली काटने के लिए एक तेज चाकू का प्रयोग करें।


कीट नियंत्रण: आम भिंडी के कीटों, जैसे एफिड्स और लीफ-फुटेड बग्स पर नज़र रखें। कीटों को जैविक तरीकों से नियंत्रित करें, जैसे लाभकारी कीट या नीम का तेल।


अंत में, लाल भिंडी उगाना एक सरल और पुरस्कृत प्रक्रिया है। उचित देखभाल के साथ, आप अपने बगीचे में इस पौष्टिक सब्जी की भरपूर फसल का आनंद ले सकते हैं।

क्यों मनाई जाती है जया एकादशी। जया एकादशी व्रत कथा |Hindu festival, Ekadashi, Shukla Paksha, Magha, religious rituals, fasting, Dwadashi.

 माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं । यह एकादशी बहुत ही पुण्यफल देने वाली होती है  । इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य नीच योनि यानी भूत , प्रेत , पिशाच जैसी योनि से भी मुक्त हो जाता है । इस एकादशी को भीष्म एकादशी भी कहा जाता है ।

क्यों मनाई जाती है जया एकादशी।  जया एकादशी व्रत कथा |Hindu festival, Ekadashi, Shukla Paksha, Magha, religious rituals, fasting, Dwadashi.
जया एकादशी व्रत कथा के बारे में बताते हुए भगवान श्री कृष्ण महाराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि – एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था । इस उत्सव में देवता , सिद्ध महात्मा और दिव्य पुरुष विद्यमान थे । उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याए नृत्य कर रही थी । सभा में माल्यवान नाम का गंधर्व गायन कर रहा था और  पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था । नृत्य करते समय जैसे ही पुष्पवती की नजर माल्यवान पर पड़ी , वह उस पर मोहित हो गई । पुष्पवती सभा की मर्यादा को भूल कर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो गया । वह गंधर्व कन्या के अदभुत नृत्य को देखकर अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया । जिससे सुर और ताल उसका साथ छोड़ गए । देवराज इंद्र को पुष्पवती और माल्यवान की इस अमर्यादित कृत्य को देखकर बहुत ही क्रोध आ गया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि तुम दोनों स्वर्ग से वंचित हो जाओ और पृथ्वी पर अति नीच  योनि  पिशाच योनि तुम दोनों को प्राप्त हो । इंद्र के श्राप के कारण दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों रहने लगे । उन दोनों को पिशाच योनि में बहुत ही कष्ट भोगना पड़ रहा था । एक बार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दोनों अत्यंत ही दुखी थे । उस दिन उन्होंने केवल फलाहार ही किया । रात्रि के समय दोनों को बहुत ही ठंड लग रही थी । जिससे उन्होंने सारी रात्रि जागते हुए ही काट दी । ठंड के कारण दोनों की अगले दिन मृत्यु हो चुकी थी । और उनसे अनजाने में ही जया एकादशी का व्रत हो गया था । जिसके  प्रभाव से उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई । अब माल्यवान और पुष्पवती दोनों पहले से अधिक सुंदर हो गए थे और उन्हें स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हो गया । जब देवराज इंद्र ने दोनों को देखा तो वे बहुत ही चकित हो गए और उनसे पूछने लगे कि तुम्हें पिशाच योनि से मुक्ति कैसे मिली ।  तब माल्यवान ने कहा कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी के व्रत का प्रभाव है । हम इस व्रत के प्रभाव से ही पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं । देवराज इंद्र यह सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए और कहने लगे कि आप अब विष्णु भक्त हैं और इसलिए आप मेरे लिए भी आदरणीय है । अब आप इस स्वर्ग लोक में आनंद पूर्वक विहार करिए।

जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए और इस बात का ध्यान रखें कि भोजन सात्विक ही होना चाहिए । फिर एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । एकादशी के दिन सिर्फ फलाहार ही करें । फिर अगले दिन द्वादशी को गाय और ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें ।


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"The Power of Papaya: Discover the Astonishing Health Benefits of this Superfruit"

 Papaya is rich in fiber which can help regulate digestion and prevent constipation.

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Papaya's high levels of antioxidants help protect against damage from free radicals, promoting overall health and longevity.

The fruit is a good source of vitamins A, E, and C, as well as the minerals calcium, magnesium, and potassium.

Papaya contains a digestive enzyme called papain that helps break down proteins and improves digestion.

Papaya has anti-inflammatory properties that can help alleviate joint pain, reduce the risk of heart disease and help prevent cancer.

The high levels of vitamin C and antioxidants in papaya help boost the immune system, keeping you healthy and protected from diseases.

Papaya is also good for skin health, as the vitamins and minerals in the fruit help keep skin smooth, soft, and youthful.

Folate, which is present in high amounts in papaya, plays a crucial role in preventing birth defects, promoting proper cell growth and development, and supporting heart health.

Lastly, the high levels of potassium in papaya help regulate blood pressure and prevent heart disease, stroke and kidney problems.

Papaya: A Nutritious Superfood with a Range of Health Benefits


Papaya is a tropical fruit that is known for its sweet and juicy flavor as well as its numerous health benefits. It is a highly nutritious food that is rich in antioxidants, digestive enzymes, vitamins, and minerals. Papaya is a versatile fruit that can be enjoyed in a variety of forms, including fresh, dried, and as a juice or smoothie.


Papaya Nutrition


Papaya is an excellent source of nutrition, and a single serving of the fruit provides a range of important vitamins and minerals. One of the key nutrients found in papaya is vitamin C, which is an important antioxidant that helps protect the body from harmful free radicals. Papaya also contains high levels of folate, which is important for cell growth and DNA synthesis. Additionally, papaya is a good source of potassium, which is essential for maintaining a healthy heart and blood pressure.


Antioxidants


One of the key health benefits of papaya is its high antioxidant content. Antioxidants are essential for fighting against harmful free radicals, which can cause damage to cells and increase the risk of chronic diseases, such as cancer and heart disease. The vitamin C content in papaya makes it an excellent source of antioxidants, and it is also rich in carotenoids, such as beta-carotene and lycopene, which have also been shown to have antioxidant properties.


Digestion


Papaya is also known for its digestive benefits, and it contains a unique enzyme called papain, which is known to aid in the digestion of proteins. Papain is also thought to help reduce inflammation in the digestive tract, making it an excellent food for people with digestive problems, such as irritable bowel syndrome (IBS) or inflammatory bowel disease (IBD).


Immune System


In addition to its digestive benefits, papaya is also known for its ability to boost the immune system. The high vitamin C content in papaya makes it an excellent food for boosting the immune system, and it has also been shown to have anti-inflammatory properties, which can help reduce the risk of chronic diseases.


Anti-inflammatory


Papaya has been shown to have anti-inflammatory properties, and this is largely due to its high antioxidant content. Inflammation is a natural response to injury or infection, but when it becomes chronic, it can contribute to the development of chronic diseases, such as heart disease, cancer, and Alzheimer's disease. By consuming papaya, you can help reduce inflammation in the body and reduce your risk of these diseases.


Heart Health


In addition to its anti-inflammatory properties, papaya is also known to be beneficial for heart health. The high potassium content in papaya makes it an excellent food for maintaining healthy blood pressure levels, and it is also thought to reduce the risk of heart disease. Papaya is also rich in antioxidants, which help protect against heart disease by reducing oxidative stress and preventing damage to the cardiovascular system.


Skin Health


Papaya is also known to be beneficial for skin health, and it is often used in beauty products for its ability to help improve the texture and appearance of the skin. The high vitamin C content in papaya makes it an excellent food for improving skin health, and it is also thought to help protect the skin from damage caused by UV radiation. Additionally, papaya is rich in antioxidants, which can help reduce the appearance of fine lines and wrinkles and improve the overall health of the skin.


Cancer Prevention


Papaya has also been shown to have potential cancer-fighting properties, and its high antioxidant content is thought to play a role in


Short Information about health Benefits of Papaya 

Papaya: A Nutritious Fruit with Surprising Health Benefits


Papaya, also known as the "fruit of the angels," is a tropical fruit known for its sweet, juicy flavor and numerous health benefits. Rich in vitamins, minerals, and antioxidants, papaya has a unique combination of nutrients that can provide numerous health benefits. Here are some of the ways in which papaya can contribute to a healthy lifestyle:


Papaya nutrition: Papaya is a nutrient-dense fruit that is a good source of essential vitamins and minerals, including vitamin C, folate, and potassium.


Antioxidants: Papaya contains antioxidants, such as vitamin C and carotenoids, that protect the body against harmful free radicals and oxidative stress.


Digestion: Papaya is known to improve digestion due to the presence of papaya enzymes, such as papain and chymopapain, which help break down food and improve the digestive process.


Immune system: Papaya is also known to boost the immune system, due to its high concentration of vitamin C, which is essential for a healthy immune response.


Anti-inflammatory: The anti-inflammatory properties of papaya can help reduce inflammation in the body and alleviate conditions such as arthritis and other inflammatory conditions.


Heart health: The high levels of potassium in papaya can help maintain healthy blood pressure levels and support heart health.


Skin health: Papaya is also known to have skin-friendly benefits, including the ability to improve skin health, reduce fine lines and wrinkles, and enhance skin radiance.


Cancer prevention: The antioxidants present in papaya have been shown to have cancer-fighting properties and may help prevent the development of certain types of cancer.


In conclusion, papaya is a nutritious and delicious fruit that can provide numerous health benefits, from supporting digestion and the immune system, to promoting heart health and preventing cancer. So, include papaya in your diet today to experience its many health benefits.


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 ससुराल का पहला दिन। 

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बर्तन गिरने की आवाज से शिखा की आंख खुल गई । घड़ी देखी.....   तो 8:00 बज रहे थे । वह हड़बड़ा कर उठी । मम्मी जी ने कहा था – कल सुबह जल्दी उठना है , रसोई की रसम करनी है ... हलवा पूरी बनाना है.....  और मैं हूं कि सोती ही रही। अब क्या होगा ......   ?  मम्मी जी और पापा जी मेरे बारे में क्या सोचेंगे ......  कहीं मम्मी जी गुस्सा ना हो जाए , हे भगवान ....   उसे रोना आ रहा था । सास और ससुराल का नाम उसे डरा रहा था । दादी ने विदा होते वक्त कहा था कि –  ससुराल है , जरा संभल कर रहना । किसी को भी कुछ कहने सुनने का मौका मत देना ,  वरना सारी उम्र ताने सुनने पड़ेंगे ।  सुबह –  सुबह उठ जाना , नहा धोकर साड़ी पहन कर तैयार हो जाना , फिर अपने सास-ससुर के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेना , कोई भी ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हें या तुम्हारे मां-बाप को कुछ उल्टा सीधा सुनना पड़े । शिखा के मन में एक के बाद एक दादी जी की बातें गूंजने लगी थी । किसी तरह वह भागा दौड़ी करके तैयार हुई , ऊंची नीची साड़ी बांधकर वह बाहर निकल ही रही थी कि आईने में अपना चेहरा देखकर वापस भागी , ना बिंदी ना सिंदूर आदत नहीं थी , तो सब लगाना भूल गई थी । ढूंढ कर बिंदी का पत्ता निकाला , फिर सिंदूर दानी ढूंढने लगी , जब नहीं मिली तो लिपिस्टिक से मांग पर सीधी लाइन खींच कर बाहर निकल आई । जिस हड़बड़ी से शिखा कमरे से बाहर आई थी । वह उसके चेहरे से और उसकी चाल से साफ झलक रही थी । लगभग भागती हुई सी वो रसोई में गई , वहां जाकर वह एकदम से ससक गई । उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर उसकी सासू मां ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा । फिर ऊपर से नीचे तक उसे निहारकर फिर धीरे से मुस्कुरा कर बोली –  आओ बेटा , नींद आई ठीक से या नहीं । शिखा अचकचा कर बोली – जी , मम्मी जी ! नींद तो आई मगर जरा देरी से आई , इसलिए सुबह आंख नहीं खुली , सॉरी ......  बोलते हुए उसके चेहरे से डर साफ झलक रहा था । सासू मां बोली –  कोई बात नहीं बेटा , नई जगह है  हो जाता है । शिखा हैरान होकर उनकी ओर देखने लगी । फिर बोली  मगर मम्मी जी , वो हलवा...  पूरी.....   सासू मां ने प्यार से उसकी तरफ देखा और पास रखी हलवे की कढ़ाई उठाकर शिखा के सामने रख दी और शहद जैसे मीठे स्वर में बोली –  हां बेटा , यह लो इसे हाथ से छू दो , शिखा ने प्रश्न भरी निगाहों से उनकी ओर देखा । उन्होंने उसकी ठोड़ी को स्नेह भरे हाथों से छूकर कहा – बनाने को तो सारी उम्र पड़ी है,  मेरी अभी इतनी प्यारी गुड़िया जैसी बहू के अभी तो हंसने खेलने के दिन है , उसे मैं अभी से रसोई का काम थोड़ी ही ना करवाऊंगी ,  तुम बस अपनी प्यारी सी मीठी मुस्कान के साथ सबको परोस देना , आज की रस्म के लिए बस इतना ही काफी है । यह सब सुनकर शिखा की आंखों में आंसू भर आए , वह अपने आप को रोक ना सकी और लपक कर उनके गले से लग गई । उसके रुंधे हुए गले से सिर्फ एक ही शब्द निकला –   मां .....  मेरी मां  ।


क्यों मनाई जाती है मकर सक्रांति 

हिंदू धर्म में सूर्य देव से जुड़े कई त्योहारों को मनाने की परंपरा है –  उन्हीं में से एक त्यौहार है मकर सक्रांति। शीत ऋतु के पौष मास में जब सूर्य देव भगवान उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं , तब मकर सक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार – शनि देव भगवान का अपने पिता सूर्यदेव से वैरभाव था । क्योंकि सूर्य देव ने शनि देव की माता छाया को  अपनी पहली पत्नी के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते देख लिया था । इस बात से नाराज होकर सूर्य भगवान ने छाया और शनि देव को अपने से अलग कर दिया था । इससे रुष्ट होकर शनिदेव और उनकी माता छाया ने सूर्य भगवान को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया । अपने पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देख कर उनके पुत्र यमराज काफी दुखी हुए । यमराज ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलवाने के लिए बहुत तपस्या की । लेकिन सूर्य भगवान ने क्रोधित होकर शनि देव महाराज के घर जाकर कुंभ जिसे शनि की राशि भी कहा जाता है , उसे जला दिया । जिससे शनिदेव और उनकी माता छाया को बहुत कष्ट भोगना पड़ा था । यमराज जी ने अपने भाई शनिदेव और माता छाया को कष्ट में देखकर सूर्य देव भगवान को बहुत समझाया । तब यमराज जी के समझाने पर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे । कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था । उस समय शनिदेव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था । इसलिए शनि देव ने सूर्य देव की काले तिल से पूजा की । शनिदेव की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि शनिदेव का दूसरा घर यानी मकर राशि सूर्य भगवान के आने से धन-धान्य से भर जाएगा । तिल के कारण ही शनिदेव को अपना वैभव दोबारा प्राप्त हुआ इसीलिए शनि देव को काले तिल बहुत ही प्रिय हैं । इसी समय से मकर सक्रांति पर सूर्य देव और शनि देव की तिल द्वारा पूजा करने का नियम शुरू हुआ। 

        महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने आज ही के दिन यानी मकर सक्रांति के दिन ही अपने प्राणों को त्यागने का निर्णय लिया था । मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिल गई थी ।

शास्त्रों में मकर सक्रांति के दिन स्नान , ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है । मकर सक्रांति को देवताओं का दिन बताया जाता है । इस दिन किया हुआ दान सौ गुना होकर वापस प्राप्त होता है ।


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Educational Hindi story | Motivational hindi story | Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | पहलवान की बेटी। ये कहानी सबको सुननी चाहिए |


 

एक गांव में एक पहलवान रहता था । वह अपने गांव का बहुत ही जाना माना और प्रसिद्ध पहलवान था । उसकी एक ही बेटी थी । उसने अपनी बेटी को बड़ी ही लाड और प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया था । जब वह बड़ी हुई तो पहलवान को उसकी शादी की चिंता हुई । वह खुद भी एक पहलवान था इसलिए अपनी बेटी के लिए भी उसे एक पहलवान ही पसंद आया । ऊंचा लंबा कद काठी का एक लड़का देखकर  उसने अपनी बेटी की शादी करके विदा कर दिया । शादी को 6 महीने भी नहीं गुजरे थे कि उस पहलवान दामाद ने पहलवान की बेटी को मारना पीटना शुरू कर दिया और एक दिन मार – मार कर घर से निकाल दिया । पहलवान ने उससे पूछा कि –तुमने ऐसा क्यों किया ? तो वह बोला कि – आपकी बेटी को घर का कुछ भी काम काज नहीं आता है ।  बाप का दिल उदास हो गया । लेकिन उसने किसी से कुछ नहीं कहा क्योंकि वह एक मशहूर पहलवान था , तो लोगों में इज्जत भी थी । उसने अपनी पत्नी को कहा कि – बेटी को घर का सारा काम सिखाओ । मां ने बेटी को खाना बनाना , झाड़ू पोछा , बर्तन मांजना आदि घर का सारा काम सिखा दिया । कुछ महीनों बाद सुलह सफाई हुई । दामाद को बुलाया और माफी मांगी और कहा कि – हमने अपनी बेटी को बड़े लाड प्यार से पाला था , इसलिए उसे घर का कुछ भी काम नहीं सिखाया था और बेटी को फिर से  दामाद के साथ विदा कर दिया । कुछ ही दिन बीते थे कि बेटी फिर मार खाकर अपने मायके वापस आ गई । अब की बार कहा कि इसे कुछ भी सिलाई कढ़ाई का काम नहीं आता । पहलवान फिर दुखी हुआ और अपनी पत्नी से कहा कि इसे सीना पिरोना सिखाओ । पत्नी ने अपनी बेटी को सिलाई , कढ़ाई , बुनाई सब सिखा दी । फिर दामाद को बुलाया गया , माफी मांगी और बेटी को उसके साथ विदा कर दिया । फिर कुछ महीने बाद ही बेटी मार खाकर मायके वापस आ गई । अबकी बार दामाद पहलवान कहने लगा कि – खेत खलियान नहीं संभाल सकती और गाय का दूध भी दोहना नहीं आता । पहलवान को बहुत ही गुस्सा आया । पर जमाने में इज्जत थी इसलिए खामोश रहा । बेटी को अपने घर बुलाकर खेती-बाड़ी का काम सिखाया , गाय भैसों का दूध दोहना सिखाया । फिर बड़ी खुशी के साथ बेटी को विदा कर दिया । लेकिन कुछ महीने बाद फिर वही हुआ जिसका डर था । बेटी फिर से मार खाकर अपने मायके वापस आ गई । पहलवान ने पूछा तो बेटी कहने लगी कि – पिताजी वे कहते हैं कि तू आटा गुदंते हुए हिलती बहुत है । पहलवान को सारी बात समझ में आ गई थी कि दामाद को आदत पड़ गई है , पत्नी पर हाथ उठाने और रोब जमाने की । तब वह पहलवान अपनी बेटी से बोला कि – बेटी मैंने तुझे सब सिखाया ,  पर वह चीज नहीं सिखाई , जो तुझे सिखानी चाहिए थी । बेटी कुछ ना समझी । फिर कुछ दिनों के बाद पहलवान के दामाद को लगा कि –  ससुर जी ने ना तो बुलाया , ना ही माफी मांगी , ना ही अपनी बेटी को विदा किया । वह खुद ही अपने ससुराल आ गया । पहलवान ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया और कहा कि – इन्हीं पैरों से वापस चला जा और आज की तारीख याद रख और पूरे 2 साल बाद वापिस आना और अगर इससे पहले आया तो तेरी टांगे तोड़ दूंगा । पहलवान की बात सुनकर दामाद डर गया और वापस चला गया । समय बीतता गया । पहलवान सूरज निकलने से पहले पहले ही अपनी बेटी को खेतों में ले जाता और सूरज निकलने के बाद घर वापस भेज देता । उसकी पत्नी ने कई बार पूछा पर पहलवान ने उसे कुछ भी नहीं बताया । 2 साल बीत चुके थे । दामाद बेटी को वापस लेने आया । पहलवान ने अपनी बेटी को खुशी खुशी विदा कर दिया । कुछ ही दिनों बाद पहलवान दामाद ने आदत से मजबूर चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया और मारने के लिए पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाया , तो पत्नी ने किसी मंजे हुए पहलवान की तरह अपने ही पति को उठाकर पटक दिया और कहा कि – तू जानता है ना , मैं किसकी बेटी हूं । वह समझ गया कि अब की बार 2 साल में इसके पिता ने इसे क्या सिखा कर भेजा है । उसके बाद कभी भी पहलवान दामाद ने ना ही अपनी पत्नी से ऊंची आवाज में बात की और ना ही उसे मारने की कोशिश की । और ना ही कभी बेटी मार खाकर अपने मायके वापस आई ।

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | जैसा बोओगे वैसा काटोगे । ना देर है , ना अंधेर है , सब कर्मों का खेल है । जब तक खुद पर ना बीते दूसरों की समस्या समझ नहीं आती ।

 जैसा बोओगे वैसा काटोगे 

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | जैसा बोओगे वैसा काटोगे । ना देर है , ना अंधेर है , सब कर्मों का खेल है  । जब तक खुद पर ना बीते दूसरों की समस्या समझ नहीं आती  ।


सासू मां की खांसी की वजह से बहू की नींद डिस्टर्ब हो रही थी । पति को तो कुछ कह नहीं सकती थी , इसलिए बेटे को ही चुटकी काट ली । बेटा रोने लगा तो पति को कहने लगी –  मां जी की खांसी की वजह से मुन्ना बार-बार उठ रहा है । पहले ही ठंड बहुत है , अगर ऐसा बार-बार होता रहा तो इसकी तबीयत खराब हो जाएगी । पति उठकर मां के पास गया और मां को डांटने लगा । लेकिन मां की खांसी कहां रुकने वाली थी , उन्हें तो टी बी था । तो बेटे ने गुस्से में आकर मां का बिस्तर घर के आंगन में लगा दिया । मां के पास ठंड में ओढ़ने के नाम का सिर्फ एक फटा पुराना कंबल ही था । उस दिन ठंड बहुत थी । मां कांपती रही पर खांसी थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । बहू की नींद फिर  से डिस्टर्ब हो गई । उसने फिर से अपने मुन्ना को चुटकी काट ली। पति फिर से उठा , तो पति से फिर से शिकायत करने लगी । पति बाहर गया और मां का बिस्तर आंगन से बाहर गार्डन में लगा दिया । जहां ठंड और ज्यादा लगने लगी । बेटा अपनी मां को एक आंख देखे बिना ही वहां से वापस कमरे की ओर मुड़ा , तो पत्थर से टकराकर गिर गया । बेटे को गिरता देख कर मां को चिंता हुई और मां कहने लगी –बेटा, तुझे चोट तो नहीं लगी । लेकिन बेटे ने अपनी मां की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहां से वापस अपने कमरे में आ गया । ठंड के कारण मां की खांसी और भी बढ़ती गई , कभी उल्टी होती , तो कभी कभी उसकी सांस रुक जाती और पता नहीं बेचारी कब खांसती खांसती  हमेशा के लिए खामोश हो गई । ठंड के कारण बूढ़ी मां का शरीर पूरी तरह से अकड़ चुका था । सुबह उठकर बहू ने पति और बच्चे को भी नाश्ता करवा दिया और अपने आप भी नाश्ता कर लिया । उसके बाद बाहर जाकर देखा तो बूढ़ी मां इस दुनिया से हमेशा के लिए चली गई थी । लेकिन बेटे और बहू के चेहरे पर तो कोई भी उदासी का भाव नहीं था । बल्कि वे दोनों तो खुश थे कि उन्हें हमेशा हमेशा के लिए बूढ़ी मां की खांसी से छुटकारा मिल गया । समय बीतता गया और उनका बेटा भी जवान हो गया । पत्नी तो अपने बेटे की जवानी में ही मर गई थी । लेकिन उसका पति ही बचा था जो अब वह भी बूढ़ा हो गया था । जब उसे भी खांसी आती , तो उसका बिस्तर भी वही आंगन में होता जहां उसने अपनी मां का बिस्तर लगाया था । एक सुबह वह अपने पोते को गोद में लेकर प्यार कर रहा था । रात को बच्चा बीमार हो गया , तो बहू ने सारा इल्जाम अपने ससुर पर लगा दिया और अपने पति से कहने लगी कि – ससुर ने हम से बदला लेने के लिए हमारे बच्चे को बाहर ठंड में सुला लिया । और जब मैंने अपना बच्चा मांगा तो वे मुझे गालियां देने लगे और कहने लगे कि – तू मेरे पोते को मुझसे दूर कर रही हो , और अब देखो इनकी वजह से हमारा बच्चा बीमार हो गया है । पत्नि झूठे ही मगरमच्छ के आंसू बहाने लगी । बेटे को बहुत ही गुस्सा आया और उसने अपने पिता की चारपाई आंगन से निकाल कर बाहर गार्डन में लगा दी । और अपने बाप को घसीटता हुआ वहां तक लेकर गया । बेटे की इसी तरह की रुसवाई को देख कर वह बूढ़ा बहुत रोया । फिर उसे अचानक याद आया कि उसने भी अपनी मां के साथ यही सब किया था । उसे यह भी याद आया कि जब वह अपनी मां की चारपाई को गार्डन में डाल कर जा रहा था , तो वह पर पत्थर से टकराकर गिर गया था । तब उसकी मां ने कहा था कि – बेटा , तुझे कहीं चोट तो नहीं लगी । वह बुड्ढा रात भर अपनी गलतियों को सोच सोच कर बहुत रोता रहा और अपनी मां को बार-बार याद करता रहा । वह सुबह उठकर हमेशा के लिए वृद्धा आश्रम चला गया और सोचने लगा कि – कहीं मैं अभी अपनी मां की तरह ठंड में ठिठुर ठिठुर कर मर गया तो कहीं मेरे बेटे के साथ भी वही ना हो जो मेरे साथ हुआ । मैं अपने बेटे से दूर रहूंगा और अपने पोते के प्यार से वंचित रह लूंगा । क्योंकि मैंने भी अपनी मां को अपने प्रेम आदर और सम्मान से वंचित रखा था और मैं इसी लायक हूं । यही मेरी सजा है।

       ★अपनी जिंदगी में हम जैसा भी करते हैं अच्छा या बुरा । वह घूम फिर कर वापस हमारे पास ही आता है , इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए । ★


ना देर है , ना अंधेर है , सब कर्मों का खेल है  ।

एक गांव में पति और पत्नी रहते थे । उनकी कोई भी संतान नहीं थी । उनकी शादी को 20 साल बीत गए थे । इन बीते वर्षों में जिस किसी ने भी उन्हें कोई भी व्रत या अनुष्ठान बताया , उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए वह सब किया । लेकिन उनकी कोई भी संतान नहीं हुई । तब अगले साल उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई । लेकिन दुर्भाग्य से उस पुत्र की मौत 20 दिन में ही हो गई । उन्होंने कई सालों तक अपने संतान प्राप्ति के लिए बहुत ही अनुष्ठान किए थे और अब 20 दिन में उसकी मृत्यु हो गई । उन्हें बहुत ही दुख हुआ । तब उसकी पत्नी ने अपने उस मृत बच्चे को गोद में उठाया । गांव के बाहर एक सिद्ध महात्मा रहते थे । वो उनके पास आई और उनसे कहने लगी कि – हे साधु महाराज कृपा करके मेरे बच्चे को बस एक बार जीवित कर दीजिए । मैं इसके मुंह से मां शब्द सुनना चाहती हूं । तब साधु महाराज जी उस स्त्री से बोले कि – संसार के रिश्ते नाते सब झूठे होते हैं । इस बच्चे की जिंदगी बस 20 दिन की ही थी । तुम्हें इस दुख से बाहर निकलना चाहिए , परन्तु वह स्त्री नहीं मानी । महात्मा जी ने उसे बहुत समझाया । लेकिन उस स्त्री के बहुत ही जिद करने पर साधु महाराज ने कुछ समय के लिए उस मृत बच्चे की आत्मा को धरती पर बुलाया । और जब वह आत्मा धरती पर आई तो उस स्त्री ने पूछा कि – तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे ? मैं तुम्हारी मां हूं  मैं तुम्हारे मुंह से एक बार मां शब्द सुनना चाहती हूं । तब वह आत्मा बोली कि कौन मां , किसकी मां , मेरी कोई मां नहीं है । मेरा किसी से कोई रिश्ता नहीं है । मेरा तो सिर्फ एक ईश्वर से ही रिश्ता है । मैं तो पिछले जन्म का हिसाब लेने के लिए तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न हुआ था । तो वो स्त्री बोली – हिसाब ,  कैसा हिसाब । तब वह आत्मा बोली कि – पिछले जन्म में तुम मेरी सौतेली मां थी और तुमने मुझे बहुत ही दुख और तकलीफ दी थी । जिंदगी भर मैं मां के प्यार के लिए तरस रहा था और रो रहा था और आज तुम मेरे लिए रो रही हो 

 कि मैं तुम्हें मां कह कर पुकारू   । बस यही वह कर्मों का हिसाब था जो मैं तुमसे लेने आया था ।  इतना कहते ही वह आत्मा वहां से चली गई । उस स्त्री को यह सब सुनकर बहुत ही झटका लगा और कुछ क्षण के लिए वह मूर्छित हो गई ।  जब उसे होश आया तो महात्मा ने उसे समझाया कि –  मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि इस संसार के सारे रिश्ते नाते हमारे कर्मों के कारण ही जुड़े हुए हैं । कोई भी हमारा अपना नहीं है । हम इस धरती पर अपने कर्मों का फल भोगने ही आते हैं । इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म  करने चाहिए ताकि हमें कभी पछताना न पड़े ।


जब तक खुद पर ना बीते दूसरों की समस्या समझ नहीं आती  । 

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था । एक दिन उस चूहे ने देखा कि कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं । चूहे ने सोचा कि कुछ खाने का सामान होगा , पर बाद में देखा कि वह एक चूहेदानी थी । खतरा भांप जाने पर चूहे ने जाकर यह बात एक कबूतर को बताई कि घर में चूहेदानी आ गई है । कबूतर ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा कि –  मुझे क्या मुझे कौनसा उस में फंसना है । बेचारा निराश होकर चूहा यह बात मुर्गे को बताने गया । मुर्गे ने भी खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि – जा भाई , यह मेरी समस्या नहीं है । हताश चूहे ने बाड़े में जा कर यह बात बकरे को बताई , तो बकरा हंसते हंसते  लोटपोट हो गया । उसी रात चूहे दानी में खटाक की आवाज आई । जिसमें एक जहरीला सांप फस गया था । अंधेरे में उसकी पूंछ को चूहा समझ कर कसाई की पत्नी ने उसे निकाला , तो सांप ने उसे डस लिया । तभी कसाई ने एक हकीम को बुलवाया । हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी । वही कबूतर अब पतीले में उबल रहा था । खबर सुनकर कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुंचे । जिन के भोजन के प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया । कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गई , तो खुशी में आकर कसाई ने अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी । तो दावत में उसी बकरे को काटा गया । चूहा अब दूर जा चुका था .....    बहुत दूर । 

        ★ अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बताएं और आपको लगे कि यह मेरी समस्या नहीं है तो रुके और दोबारा सोचिए कि कहीं ये आगे चलकर आपकी समस्या  तो नहीं बन सकती , इसलिए उसे सुलझाने का प्रयास कीजिए ★

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | पतिव्रता नारी की शक्ति । एक नौकर की दर्दनाक दास्ताँ। शबक ,एक शिक्षा प्रद कहानी , गलतियों के खिलाफ जंग। एक बेटे की ददर्नाक कहानी।

शबक ,एक शिक्षा प्रद कहानी , गलतियों के खिलाफ जंग 


image taken from google 

एक पिता ने बड़े ही लाड प्यार से अपनी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया । उसे अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए । समय आने पर पिता ने अपनी पुत्री का विवाह कर उसे विदा भी करने लगा । विदाई के समय पिता ने अपनी बेटी को गले लगाते हुए कहा कि – बेटी , हमारी रीत ससुराल में नहीं चलेगी , इसलिए वहां पर जाकर वहां के बड़े बुजुर्गों से वहां के तौर तरीके और रीति-रिवाज सीखना । बेटी जब ससुराल में पहुंची तो उसने देखा कि ससुराल में उसके पति के अलावा उसकी सासू मां और एक दादी सास भी थी । ससुराल में जब बहू को कुछ दिन बीत गए तो उसने देखा कि उसकी ससुराल में उसकी दादी सास का बहुत ही अपमान और तिरस्कार हो रहा है । अपमान की हद तो तब हो जाती है, जब उसकी सास उसकी दादी सास को गालियां देती थी , उन्हें ठोकर मारती थी और उन्हें खाने को कुछ भी ना देती थी , उन्हें कई दिन तक भूखी रखती थी । जब बहू यह देखती तो उसे बहुत ही बुरा लगता । उसे अपने पिता के द्वारा दिए गए संस्कार याद आ गए । उसे अपनी दादी सास पर बहुत दया आई । उसने सोचा कि जिस घर में बड़े बूढ़ों का अपमान होता है , वह घर नरक के समान होता है । मुझे अपनी दादी सास के लिए कुछ ना कुछ अवश्य करना चाहिए । फिर उसने सोचा कि यदि वह अपनी सास को समझाने का प्रयत्न करेगी , तो हो सकता है कि उसकी सास भी उसके साथ भी ऐसा ही बर्ताव करना शुरू कर दे । इसलिए उसने स्वयं ही अपनी दादी सास की सेवा करने का सोचा । अब वह प्रतिदिन घर का काम खत्म करके दादी सास के पास बैठकर उनके पैर दबाती थी । जब उसकी सास ने देखा कि यह दादी सास के पास बैठकर उनके पैर दबाती है , उनकी सेवा करती है ,  तो उसे अपनी बहू का यह बर्ताव बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा । एक दिन उसने अपनी बहू को बुलाया और पूछा कि – तुम दादी सास के पास क्यों बैठती हो ।  बहू को पता था कि एक दिन उसकी सास उससे जरूर यह प्रश्न पूछेंगी , तब उसने अपनी सास से कहा कि – मां जी , मैं घर का सारा काम खत्म करके दादी सास के पास बैठ जाती हूं , ताकि उन्हें अकेलापन महसूस ना हो । आप बताइए घर का कुछ काम रह गया हो तो मैं उसे अभी निपटा देती हूं । सास बोली कि – काम तो कुछ भी नहीं है , पर दिनभर अपनी दादी सास के पास बैठना मुझे तुम्हारा अच्छा नहीं लगता । बहू ने अपनी सास की बात को ध्यान से सुना और कहा कि – मां जी , मेरे पिताजी ने सदैव मुझे यही सिखाया है कि अपने घर में हमेशा अपने बड़े बुजुर्गों की सेवा करना और उनका ध्यान रखना चाहिए और मैं दादी सास के पास बैठकर उनसे यहां की रीति रिवाज सीख रही थी कि आप उनके साथ कैसा बर्ताव करती है , किस तरह उन्हें खाना देती है । तभी सास बोली कि – क्या तू भी मेरे साथ ऐसा ही करेगी । बहू सास के इसी प्रश्न के इंतजार में थी । बहू ने कहा – मां जी , मेरे पिताजी ने मुझे ससुराल में बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर उनके घर के रीति रिवाज सीखने को कहा था । यदि इस घर के रीति रिवाज बड़ों का अपमान करना और तिरस्कार करना है , तो मुझे भी यह रीति रिवाज अवश्य मानने पड़ेंगे । बहू का उत्तर सुनकर सासू मां को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी । उसने सोचा जैसा व्यवहार मैं अपनी सास के साथ करूंगी वैसा ही मेरी बहू भी सीखेगी ।  फिर वह भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करने लगेगी । उसकी सास दिनभर इसी विचार में रहती । अगले दिन बहू ने घर के एक कोने में ठीकरी (खाना खाने का मिट्टी का एक बर्तन ) इकट्ठा करने शुरू कर दिए । घर के कोने में इतनी सारी ठीकरी देख सासू ने बहू से ठीकरी इकट्ठा करने का कारण पूछा – बहू तुमने यह इतनी सारी ठीकरी क्यों जमा की है ?  बहू ने बड़ी ही विनम्रता से कहा – मां जी आप दादी सास को ठीकरी में ही भोजन देती हैं , इसलिए मैंने सोचा कि बाद में ठीकरी मिले  ना मिले , इसीलिए अभी से आपके लिए ठीकरी जमा कर देती हूं । बहू का उत्तर सुनकर सास बहुत ही घबरा गई और उसने पूछा – तुम मुझे ठीकरी में ही भोजन परोसेगी क्या ? बहू ने कहा – मां जी , मेरे पिताजी ने कहा था कि यहां के रीति रिवाज वहां नहीं चलेंगे , वहां की रीति पूरी तरह से अलग होगी । अब जो यहां की रीति है , मुझे वैसे ही तो करना होगा । बहू की बात सुनकर सास ने कहा – यह यहां की रीति थोड़े ही है । तू अब अपनी दादी सास को थाली में भोजन दिया करना । बहू सास की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुई । बहू की चतुराई से अब दादी सास को थाली में भोजन मिलने लगा । अगले दिन बहू ने देखा कि – सबके खाना खाने के पश्चात बचा हुआ खाना दादी सास को दिया जाता था । बहू खाने को गौर से देखने लगी । बहू के इस तरह गौर से देखने पर सास ने पूछा कि – बहू क्या देख रही हो ?  बहू ने कहा कि – सीख रही हूं कि बूढ़ों को इस घर में क्या खाने को दिया जाना चाहिए । बहू की बात सुनकर सास ने घबराकर कहा कि – बहू यह इस घर की रीत थोड़े ही है । कल से तू दादी सास को सबसे पहले भोजन दिया करना । बस अगले दिन से ही दादी सास को सबसे बढ़िया भोजन मिलने लगा । धीरे-धीरे बहू ने अपनी सास की सारी बुरी आदतों को बदल दिया ।


एक नौकर की दर्दनाक दास्ताँ। 

मैं बिस्तर पर से उठा । अचानक मुझे छाती में दर्द होने लगा । कहीं मुझे हार्ट की दिक्कत तो नहीं , ऐसे विचारों के साथ में आगे कमरे वाली बैठक में आ गया । मेरा पूरा परिवार मोबाइल देखने में व्यस्त था । मैंने पत्नी को देखकर कहा –  आज मेरी छाती में रोज से कुछ ज्यादा दर्द हो रहा है । मैं डॉक्टर को दिखा कर आता हूं । हां , मगर संभल कर जाना और कुछ बात हो तो फोन करना – मोबाइल में देखते देखते ही पत्नी बोली । मैं एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुंचा । मुझे बहुत पसीना आ रहा था , एक्टिवा स्टार्ट ही नहीं हो रही थी । ऐसे वक्त में हमारे घर में काम करने वाला किशन साइकिल लेकर आया । साइकिल को ताला लगाते ही उसने मुझे सामने खड़ा देखा , तो बोला – क्यों साहब एक्टिवा चालू नहीं हो रही ? मैंने कहा – नहीं । आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साहब । इतना पसीना क्यों आ रहा है ? साहेब इस हालत में स्कूटी को किक नहीं मारते । लो , मैं इसे स्टार्ट कर देता हूं । किशन ने एक ही किक मार

 कर एक्टिवा को चालू कर दिया । फिर उसने पूछा –  साहब , अकेले जा रहे हो ? मैंने कहा – हां  । उसने कहा ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते साहब ,  चलिए साहब मेरे पीछे बैठ जाइए । मैंने उससे पूछा – तुम्हें एक्टिवा चलानी आती है ? साहब गाड़ी का भी लाइसेंस है मेरे पास । आप चिंता छोड़ कर मेरे पीछे बैठ जाइए । पास ही के एक अस्पताल में हम पहुंचे । किशन दौड़कर अस्पताल के अंदर गया और व्हीलचेयर लेकर बाहर आया और कहा कि –  साहब , इस पर बैठे जाइए । उसके मोबाइल में लगातार घंटियां बज रही थी । मैं समझ गया था कि फ्लैट में से सब के फोन आते होंगे कि –  किशन अभी तक क्यों नहीं आया । किशन ने आखिरकार थक कर फोन उठाया और किसी से कह दिया कि मैं आज नहीं आ सकता । किशन डॉक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था । उसे बगैर बताए ही मालूम हो गया था कि साहब को हार्ट की तकलीफ है ।  लिफ्ट में से व्हील चेयर आई सी यू की तरफ ले कर गया । डॉक्टरों ने मेरी तकलीफ सुनकर शीघ्र ही सारे टेस्ट करने शुरू कर दिए । तब डॉक्टर ने कहा कि –आप सही समय पर पहुंच गए हो , इसमें भी आपने व्हीलचेयर का उपयोग किया । यह बहुत ही फायदेमंद रहा आपके लिए । अब किसी की राह देखना आपके लिए बहुत ही हानिकारक है । इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लॉकेज जल्दी ही दूर करने होंगे । इस फॉर्म पर आपके परिवारजन के हस्ताक्षर की जरूरत है । डॉक्टर ने किशन की ओर देखा । मैंने कहा – बेटा , दस्तखत करने आते हैं । किशन बोला – साहब , इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर मत डालो । मैंने कहा –  बेटे तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है , तुम्हारे साथ भले ही खून का संबंध नहीं है , फिर भी बिना कहे तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी की । वह जिम्मेदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी । एक और जिम्मेदारी पूरी कर दो बेटा । मैं नीचे सही करके लिख दूंगा कि – मुझे कुछ भी हुआ तो इसमें मेरी जिम्मेदारी होगी । किशन ने मेरे कहने पर हस्ताक्षर कर दिए थे । फिर मैंने कहा –  घर फोन  लगाकर खबर कर दो । परंतु उसी समय किशन के मोबाइल पर मेरी पत्नी का फोन आया । वह शांति से फोन सुनने लगा । थोड़ी देर के बाद किशन बोला – मैडम, आप को पगार काटने का है तो काटना, निकालने का हो तो निकाल देना , लेकिन अभी अस्पताल में ऑपरेशन शुरू होने से पहले पहुंच जाओ ।  हां मैडम , मैं साहब को अस्पताल लेकर आया हूं । डॉक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है । मैंने कहा – बेटा घर से फोन था । किशन बोला –  हां साहब ।  मैंने मन ही मन पत्नी के बारे में सोचा कि – तुम किस की पगार काटने की सोच रही हो और किस को निकालने के बारे में बात कर रही हो । मेरी आंखों में आंसू आ गए थे और मैंने किशन के कंधे पर हाथ रख कर कहा –  बेटे चिंता नहीं करते । मैं एक संस्था में सेवाएं देता हूं । वे बुजुर्ग लोगों को सहारा देते हैं । वहां तुम जैसे व्यक्तियों की जरूरत है । तुम्हारा काम बर्तन , कपड़े धोने का नहीं है , तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है और हां तुम्हें पगार मिलेगी बेटा , इसलिए चिंता बिल्कुल मत करना । ऑपरेशन के बाद मैं होश में आया । मेरी आंखों के सामने मेरा सारा परिवार था । मैंने पूछा – किशन कहां पर है ? पत्नी बोली – वह अभी अभी छुट्टी लेकर गांव गया है । उसके पिता हार्ट अटैक से मर गए हैं । इसलिए वह 15 दिन बाद आएगा । अब मुझे समझ में आया कि – उसे मेरे अंदर अपना बाप दिख रहा होगा । हे प्रभु , आपने मुझे बचा कर उसके पिताजी को उठा लिया । पूरा परिवार हाथ जोड़कर और नतमस्तक होकर माफी मांग रहा था । एक मोबाइल की लत अपनों को अपनों से कितना दूर ले जाती है । उसके परिवार को अब यह बात समझ आ रही थी । यही नहीं आज मोबाइल घर घर में कलह का कारण भी बन गया है । बहू छोटी छोटी बातें तत्काल अपने मां-बाप को बताती हैं  और मां की सलाह पर ससुराल पक्ष के लोगों से वह व्यवहार करती है । जिसके परिणाम स्वरूप बहुत समय गुजरने पर भी वह ससुराल वालों से अपनेपन से जुड़ नहीं पाती है । थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर कहा – कि किशन आप के कौन लगते हैं ? मैंने कहा – डॉक्टर साहब ,  कुछ संबंधों के नाम पर गहराई तक ना ही जाए तो ही अच्छा है । उससे संबंध की गरिमा बनी रहेगी । बस मैं इतना ही कहूंगा कि वह आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बनकर आया । तभी गौरव बोला – हमें माफ कर दो पापा । जो फर्ज हमारा था वह किशन ने निभाया । यह हमारे लिए बहुत ही शर्मनाक है । ऐसी भूल भविष्य में कभी नहीं होगी । मैंने कहा – बेटा , जवाबदारी और नसीहत लोगों को देने के लिए ही होती है , जब लेने की घड़ी आए तो लोग बदल  जाते हैं या ऊपर नीचे हो जाते हैं । अब रही मोबाइल की बात तो बेटे एक निर्जीव खिलौने ने एक जीवित खिलौने  को गुलाम बनाकर रखा है । अब समय आ गया है कि उसका मर्यादित उपयोग करना है ,  नहीं तो परिवार , समाज और राष्ट्र को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं और हमें उसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा ।


एक बेटे की ददर्नाक कहानी।  

जवानी चढ़ गई तो घर देर से आने लगा । सारी सारी रात घर से बाहर रहना और दिन भर बस सोए रहना । बस यही काम बन गया था । मां ने तो बहुत मना किया , पर वह नहीं माना । शुरू शुरू में तो मां उसके लिए देर रात तक जागती रही । फिर बाद में सोने से पहले फ्रिज के ऊपर एक चिट चिपकाकर सो जाती । जिसमें डिश का नाम और वह कहां पर रखी है वह सब लिखा होता था । धीरे-धीरे चिट्स बढ़ने लगी । गंदे कपड़े कहां रखने हैं और साफ कपड़े कहां पर रखे हैं , यह सब भी लिखने लगी और साथ ही साथ यह भी बताने लगी कि आज यह तारीख है और कल तुम्हें यह काम करना है और परसों वह काम । बहुत सालों तक बस ऐसे ही चलता रहा । एक रात वह घर देर से पहुंचा , वह बहुत थका हुआ था । फ्रिज पर चिट लगी हुई थी , पर वह बिना पढ़े ही सो गया । सोचा वही रोज की बातें होंगी । सुबह काम वाली बाई आई तो उसकी चीख निकल गई । उसकी चीख सुनकर वह नींद से जाग गया । काम वाली बाई दौड़ते हुए उसके कमरे में आई और उसकी आंखों में आंसू थे । उसने उसे वह खबर सुनाई जो उसकी दुनिया उजाड़ने वाली थी। कामवाली बाई ने रोते हुए कहा –  बेटा , अब तुम्हारी मां इस दुनिया में नहीं रही । यह खबर सुनने के बाद मानो उसके पैरों तले से जमीन ही सरक गई । वह खबर नहीं थी उसकी जिंदगी में आया हुआ सबसे बड़ा तूफान था । एक पल के लिए तो उसे ऐसा लगा कि कहीं काम वाली बाई उसके साथ मजाक तो नहीं कर रही । ऐसा कैसे हो सकता है उसके साथ । उसकी मां उसे इस तरह अचानक कैसे छोड़ कर जा सकती है । उसने तो अभी ठीक से मां से बातें भी नहीं की थी । वह रो रो कर कहने लगा कि अभी तो मुझे मां के लिए यह करना था , वह करना था । अभी तो मुझे उनकी ख्वाहिशों को पूरा करना था । अभी तो मुझे उन्हें यह बताना था कि मां मैं सुधर गया हूं और अब मैं रात को घर देर से नहीं आऊंगा । ऐसे कैसे मां अपनी अधूरी ख्वाहिशों को दिल में लेकर इस दुनिया से जा सकती हैं । यह सब सोचकर उसका सिर चकराने लगा । उसने कामवाली बाई से कहा आप झूठ तो नही बोल रही ? मां ने मुझे सबक सिखाने के लिए आपसे ऐसा कहने को कहा होगा । लेकिन वह रोए जा रही थी और कहने लगी कि नहीं बेटा मैं झूठ नहीं बोल रही । तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं है । उसकी बात सुनकर उसे ऐसा लगा जैसे कि एक गम का बहुत बड़ा पहाड़ उसके ऊपर टूट पड़ा हो । वह गिरते संभलते मां के कमरे में पहुंचा , तो देखा कि मां गहरी नींद में सो चुकी थी । उसने आवाज दी पर मां उठी ही नहीं । वह बोला मां उठो , चलो ऐसा भी कोई मजाक करता है क्या !  उस वक्त उसके दिल का बहुत बुरा हाल था और यह वही समझ सकता था जिसकी मां इस दुनिया में ना हो या फिर वह जो अपनी मां से बहुत ही प्यार करता हो । मां के अंतिम संस्कार के बाद वह घर आया । मां के बिना घर खाली खाली लग रहा था । सब कुछ काटने को दौड़ रहा था । फिर उसे ऐसा लगा जैसे उसकी मां उसे आवाज दे रही हो । फिर पता नहीं कैसे उसे अचानक याद आया कि कल रात मां ने उसके लिए फ्रिज पर एक चिट छोड़ी थी । वह तुरंत रसोई की ओर दौड़ा और फ्रिज पर लगी उस चिट को पढ़ने लगा । चिट पढ़ने के बाद वह अपने आप को कभी भी जिंदगी भर माफ नहीं कर पाया । उस चिट में लिखा हुआ था –  "बेटा , आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही । मैं बहुत देर से तुम्हारा इंतजार कर रही थी । लेकिन तुम आए नहीं , मैं सोने जा रही हूं । जब तुम आ जाओ , तो मुझे जगा देना और मुझे अस्पताल लेकर चलना ।" उस चिट को पढ़ने के बाद वह बहुत रोया । उसे क्या पता था कि कल सुबह उसकी मां उठेगी ही नहीं । 


पतिव्रता नारी की शक्ति 


एक गांव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी कुटिया बनाकर रहते थे। उसकी पत्नी बहुत ही पतिव्रता थी । उन दोनों की एक संतान थी । उनका एक 6 महीने का पुत्र था । एक दिन ब्राह्मण देव घर के बाहर आंगन में यज्ञ हवन कर रहे थे । जब वे यज्ञ हवन करके उठे , तब उन्हें अचानक बहुत ही थकावट हुई  और उन्हें लगा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है । वे कुटिया के अंदर गए और अपनी पत्नी से कहने लगे कि मुझे मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही । इसलिए मैं कुछ देर आराम करना चाहता हूं । उनकी पत्नी बोली – ठीक है , स्वामी आप आराम कीजिए । मैं आपके चरण दबा देती हूं । इससे आपके शरीर को आराम मिलेगा । ब्राह्मण देव बोले –  ठीक है। उनकी पत्नी जैसे ही उनके चरण दबाने लगी , तभी ब्राह्मण देव को नींद आ गई और वह सो गए । उनकी पत्नी उनके चरण दबा रही थी , तभी उनकी पत्नी ने देखा कि उसका 6 माह का बेटा घुठलियों चलता चलता यज्ञ हवन की ओर जा रहा है । यज्ञ हवन में अभी भी अग्नि प्रज्वलित थी । लेकिन वह अपने पति के चरण दबाना छोड़ती तो , उसके पति की नींद खुल जाती ।  इसलिए वह अपने पति के चरण दबाती रही और उसका बेटा घुठलियों चलता चलता यज्ञ हवन की ओर जा रहा था । उसके मन में डर था कि यदि उसका बेटा यज्ञ हवन में गिर गया तो वह जल जाएगा और मर जाएगा । लेकिन वह अपने पति के चरण दबाना भी नहीं छोड़ सकती थी । क्योंकि यदि उसने ऐसा किया तो उसका पतिव्रत धर्म भंग हो जाएगा ।  यदि उसने अपने धर्म को बचाया तो उसका पुत्र मर जाएगा । वह दुविधा में फंस गई , लेकिन उसने निर्णय क्या कि वह अपने पतिव्रत धर्म को बचाएगी और वह अपने पति के चरण दबाती रही  और उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि यदि वह सच्ची पतिव्रता है तो यज्ञ हवन की अग्नि उसके पुत्र के लिए शीतल हो जाए ।  उसका बेटा यज्ञ हवन में गिर जाता है। लेकिन यह क्या ? उसका बेटा उस हवन कुंड की अग्नि में पड़ा हुआ जीवित था और वहां पर खेल रहा था । थोड़ी देर बाद ही वह अपने आप बाहर निकल आता है । हवन कुंड की अग्नि  चंदन के समान शीतल हो गई थी  । वह यह देखकर बहुत खुश थी , तभी थोड़ी देर बाद उसके पति की आंखें खुली और उसने यह सारा वृतांत अपने पति को बताया । तब उसके पति उसकी निश्चल पतिभक्ति से बहुत ही प्रसन्न हुए । 



Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | पोती का प्यार , हर घर की कहानी | मौर मोरनी की शिक्षा प्रद कहानी

 पोती का प्यार , हर घर की कहानी



मम्मी एक समोसा दादी मां को भी दे दूं  –पिंकी ने कहा । तुझे कितनी बार कहा है ये समोसा उस बुढ़िया के लिए नहीं बनाएं। तू भी चुपचाप खा ले वरना तुझे भी उस बुढ़िया के साथ कमरे में बंद कर दूंगी । मम्मी का इस तरह गुस्सा देखकर पिंकी बेचारी चुपचाप समोसा खाने लगी । इस घर में दादी के अलावा और कोई उसका दोस्त नहीं था । वह सारा दिन उन्हीं के साथ खेलती थी। अपने पापा की इकलौती संतान होने के कारण और कोई नहीं था, जिसके साथ वह खेल सकती। इसलिए वह हमेशा अपनी दादी के साथ ही खेला करती थी । पर कविता उसे हमेशा अपनी सास के पास जाने से रोका करती थी । क्योंकि उसका मानना था कि उसकी सास बहुत ही बदनसीब है क्योंकि उसने उसके पहले बेटे को निगल लिया । अजय आज दुकान से जल्दी आने वाले थे , क्योंकि आज कविता का जन्मदिन था इसलिए कविता ने पहले से ही सब तैयारियां कर रखी थी । बस अजय का इंतजार था । शाम को एक छोटी सी पार्टी भी रखी थी , जिसमें कविता ने अपनी सारी सहेलियों को बुलाया था । कविता ने खाना बनाकर थोड़ी सी दाल और दो सूखी रोटी पिंकी के हाथ अपनी दादी के लिए भिजवा दी । पिंकी खाना लेकर अपनी दादी मां के कमरे में गई । दादी मां दादी मां लो खाना खा लो , मैं आपके लिए खाना लाई हूं । आओ मेरी रानी बेटी , आओ मेरी गोद में बैठो ।  नहीं दादी अम्मा मम्मी ने मना किया है कि उस बुढ़िया की गोद में मत बैठना । अगर मम्मी ने देख लिया तो मम्मी मुझे खाना नहीं देगी । पता है दादी मां आज मम्मी ने समोसे बनाए हैं । पर गुड़िया रानी तुम मेरे लिए तो समोसा लेकर नहीं आई हो और यह रोटी कितनी सूखी है , खाई ही नहीं जा रही । दादी मां मम्मी ने मना कर दिया कि समोसे उनकी सहेलियों के लिए है , इसलिए नहीं दिए । तुमने समोसे खाए क्या ? कैसे बने थे ? बहुत स्वादिष्ट बने थे दादी मां , पिंकी के मुख से यह बात सुनकर दादी मां के मुंह में पानी आ गया । पिंकी बेटा अभी समोसे कितने बचे हैं , बहुत बचे हैं दादी मां । दादी मां , मैं अभी देखती हूं जो  मम्मी किचन में नहीं हुई तो मैं आपके लिए एक समोसा ले आऊंगी । पिंकी ने बाहर निकल कर देखा , तो उसकी मम्मी टीवी देखने में बिजी थी । पिंकी चुपके से किचन में जाती है और एक समोसा अपने नन्हे हाथों में छुपा कर अपनी दादी मां को देती है । बुढ़िया जैसे ही पिंकी के हाथों में समोसा देखती है , बहुत खुश हो जाती है और जल्दी-जल्दी खाने लगती है । पिंकी जब यह सब देखती है तो उसे बहुत ही आश्चर्य होता है । दादी मां धीरे-धीरे खाओ नहीं तो गले में अटक जाएगा । बुढ़िया थोड़ी ही देर में समोसा चट कर जाती है । बहुत स्वादिष्ट है पिंकी बेटा जाओ एक और समोसा ले आओ , बहुत मन कर रहा है खाने का । अभी नहीं दादी मां , अगर मम्मी ने देख लिया तो तुम्हें भी मार पड़ेगी और मुझे भी , अब मैं नहीं जाऊंगी दादी मां । उसे पता था कि अगर मम्मी ने अब देख लिया तो उस दिन की तरह दादी को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ेगा । बुढ़िया को अब रह रहकर उस समोसे का स्वाद याद आ रहा था । बेचारी अंगुलियां चाटती रह गई । अब मैं जाती हूं दादी मां , नहीं तो मम्मी को पता चल जाएगा । यदि रात में समोसे बच गए तो मैं एक और ले आऊंगी दादी मां । कविता टीवी देखते हुए –  खाना खा लिया बुढ़िया ने । हां मम्मी खा लिया । मम्मी पापा नहीं आए अभी तक । नहीं आए , पर आते ही होंगे । मम्मी आप ने पापा से मेरे लिए क्या मंगवाया है । तेरे लिए एक बहुत बड़ी गुड़िया मंगवाई है और दादी मां के लिए , कुछ नहीं और ऐसी भी क्या जरूरत है उस बुढ़िया पर पैसे खर्च करने की । वह देखो तुम्हारे पापा आ गए । पापा आ गए , पापा आ गए । अजय ने पिंकी को गोद में उठाते हुए कहा –  पता है हम तुम्हारे लिए क्या लाए हैं ?  क्या लाए हो पापा , हम तुम्हारे लिए एक बहुत ही बड़ी गुड़िया लाए हैं बिल्कुल तुम्हारे जैसी सुंदर , यह लो और तुम्हारे जितनी बड़ी ।  पापा इसे  में दादी मां को दिखा कर लाती हूं , दादी मां दादी मां , यह देखो पापा मेरे लिए गुड़िया लाए हैं । वाह बेटा यह तो बहुत सुंदर है तुम्हारे जैसी । यह लो कविता इसमें सामान है जो तुम ने मंगवाया था । और इसमे दो साड़ी है एक तुम्हारे लिए और एक मां के लिऐ। अजय मां को क्या जरूरत है साड़ी की , उनके पास तो पहले से बहुत  कपड़े हैं ।  इसलिए फालतू की चीजों में पैसे बर्बाद मत किया करो । कविता तुम्हें पता है आज हमारे पास जो कुछ है वह मेरी मां का ही है । अजय पर हमारे पास एक लड़की है और उसके भविष्य के लिए हमें धन की आवश्यकता है , अगर हम यूं ही फालतू चीजों में पैसे खर्च करेंगे तो कल हमारे पास कुछ नहीं बचेगा और वैसे भी तुम्हारी मां को कहीं जाना नहीं होता , पूरे दिन घर में ही रहती है । कविता तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो । वह मेरी मां है और मानो तो तुम्हारी भी । वह मेरी मां नहीं हो सकती , वह अभागन मेरे बेटे को निगल गई । खबरदार कविता अब एक और अपशब्द भी मेरी मां के बारे में  बोला , तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा । अजय फिर तुम भी मेरा आज एक फैसला सुन लो , या तो इस  घर में मैं रहूंगी या फिर वह बुढ़िया । ठीक है तो तुम जाओ यहां से , मैं तुम्हारे लिए अपनी मां को नहीं खो सकता । मैं भी अब इस घर में नहीं रहना चाहती हूं । चलो पिंकी हम चलते हैं , अब हम इस घर में कभी वापस नहीं आएंगे । नहीं मम्मा , मैं आपके साथ नहीं चलूंगी , मुझे तो यही दादी मां के पास ही रहना है । तू भी उस बुढ़िया के पास रहकर उसकी भाषा बोलने लगी , तो ठीक है जब शाम को मेरी याद आयेगी तब मत कहना। मम्मी आप मत जाओ प्लीज , मैं रात को किसके साथ सोऊंगी। अपने पापा के पास सोना मैं जा रही हूं । पापा रोको ना मम्मा को , वे जा रही हैं । बेटा जाने दो वह नहीं रुकेगी और चाहो तो तुम भी उसके के साथ जा सकती हो । नहीं पापा , मैं दादी मां को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी । कविता गुस्से में घर से निकल जाती है और अपने मायके चली जाती है । कविता को आज गए 2 दिन हो गए ।  दादी मां को जब से यह पता चला तो उन्होंने 2 दिन से कुछ भी खाया पिया नहीं । कविता हमेशा दादी मां को भला-बुरा कहती थी , यहां तक कि वह उसे खाने को सूखी रोटी दिया करती थी । लेकिन फिर भी उसकी सास उसकी फिक्र करती है , उसे बहुत बुरा लग रहा था , यहां तक कि वह कविता को घर से जाने का सबसे बड़ा कारण अपने आप को ही मान रही थी । अजय भी कविता के जाने से बहुत दुखी था , उसे भी नहीं पता था कि वह क्या करें । उसने कविता को कई बार फोन ट्राई किया , परंतु उसने फोन नहीं उठाया । उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कविता ने ऐसा क्यों किया । उसने तो उसके साथ जीने मरने का वादा किया था । कुछ समय के लिए अजय अपने अतीत में चला गया । उसे अपने कॉलेज के वह दिन याद आने लगे, जब वह कविता से मिला था । कितनी अनजान और अजनबी थी , वह भोली सी सूरत , शांत स्वभाव और दूसरों के लिए जीने वाली , अजय उसे देखकर इस कदर खोया की उसने सबके सामने पहली बार में ही उसे प्रपोज कर दिया और कविता भी उसके इस साहस को देखकर उसे ना नहीं कह सकी । कितनी अच्छी थी वो जिंदगी ना कोई समस्या , ना ही कोई गम था , ना ही किसी का कोई दबाव , बिल्कुल एक आजाद पंछी की तरह जिसकी ना कोई राह होती है , ना ही कोई मंजिल । अजय को अच्छी तरह याद था जब एक बार कविता के पापा ने कविता को उसके साथ देख लिया । लेकिन कविता की पसंद को वे ना नहीं कह पाए और उन दोनों की शादी करा दी । पर आज वह क्यों इतना असहाय हो गया था जैसे उसे किसी ने तीर मार दिया हो और वह छटपटा कर जमीन पर पड़ा हो । पापा पापा मम्मा का फोन आया है अचानक पिंकी की आवाज आई । वह आपसे बात करने के लिए कह रही है । यह सुनते ही अजय ख्वाबों से बाहर आ गया देखा तो पिंकी फोन लिए खड़ी थी । अजय ने कविता से बात की । कविता  बोली कि अजय मुझे पिंकी चाहिए । मैं पिंकी के बिना नहीं रह सकती । प्लीज मुझे मेरी बेटी दे दो । कविता लौट आओ अपने घर । मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं प्लीज लौट आओ कविता । नही अजय, अब यह शायद संभव नहीं है । जब तक आपकी मां उस घर में रहेगी तब तक मैं लौट कर नहीं आऊंगी । अब फैसला आपको करना है कि आप किसे चाहते हो।  और हां , मैं पिंकी को लेने आ रही हूं । भेज दोगे ना उसे मेरे साथ । हां ले जाओ , अगर वो खुशी खुशी तुम्हारे साथ जाना चाहे तो । यह कहते ही अजय का गला रूंध गया था , शब्द पता नहीं कहां गुम हो गए । वह बहुत ही टूट गया था । वह कविता के बिना भी नहीं रह सकता था और ना ही अपनी मां के बिना । अजय के मन में बहुत ही उथल-पुथल मच रही थी , क्योंकि अब उसे अपने अतीत और भविष्य में से किसी एक को चुनना था । उसके अतीत में मुंह पर झुरिया लिए और कुछ अधूरी सी उम्मीदें लिए एक तरफ उसकी बूढ़ी मां थी और दूसरी और उसके भविष्य में उसकी पत्नी और उसकी प्यारी सी गुड़िया पिंकी ।  पता नहीं उसकी जिंदगी को किसकी नजर लग गई । अब तो उसकी जिंदगी नरक सी बन गई थी । अचानक वह उठा और मां के कमरे की ओर बढ़ा । कुछ बोल पाता तभी उसकी मां बोल पड़ी बेटा किसका फोन था ? कविता का फोन था । क्या वह वापस आ रही है । नहीं , मां वह सिर्फ पिंकी को वापस लेने आ रही है और हम से हमेशा के लिए दूर जा रही है । अजय ने कविता की सारी बातें अपनी मां को बता दी । बेचारी बुढ़िया जिसने कभी सोचा ही नहीं था कि बात यहां तक बढ़ जाएगी कि उसकी वृद्धा आश्रम जाने तक की नौबत आ जाएगी । अजय की बात सुनकर बेचारी कुछ देर खामोश हो गई , पर उसने फैसला कर लिया कि वह वृद्धा आश्रम चली जाएगी , पर अपने बेटे और बहू को अलग नहीं होने देगी । मां के मुंह से ऐसी बात सुनकर अजय को धक्का सा लगा । यह क्या कह रही हो मां । तुम बृद्धाश्रम जाओगी , अपने खुद का घर छोड़ कर , वहां जाकर एक अनाथ की जिंदगी जीयोगी । नहीं मैं यह नहीं होने दूंगा । अच्छा होता यदि मैं आपके खिलाफ जाकर कविता से शादी ही नहीं करता , तो शायद ये नौबत ही नहीं आती । नहीं बेटा , ये क्या कह रहे हो , कविता तुम्हारी धर्मपत्नी है और रही बात मेरी , मेरे पास तो कुछ समय बचा है उसे मैं वृद्धा आश्रम में ही गुजार लूंगी और तुम्हारे पास अपनी पूरी जिंदगी बची है । वह तुम्हें कविता के साथ ही गुजारनी है । मेरे मरने के बाद तुम्हारी पत्नी ही बस तुम्हारा एक सहारा होगी और वैसे भी मैं क्या दुनिया छोड़ कर जा रही हूं , जब तुम्हारा मन करे तब वृद्धा आश्रम में आ जाना और सुना है वृद्धाआश्रम में भी बहुत ख्याल रखते हैं और ना ही मुझे परेशानी होगी और ना ही तुम्हें और कविता को । मां केबहुत समझाने पर अजय मान गया और मां को वृद्धा आश्रम छोड़ने के लिए तैयार हो गया । अगले दिन अजय अपनी मां का सारा सामान पैक कर के उसे वृद्ध आश्रम छोड़ आया । कविता को जब यह बात पता चली तो वह बहुत ही खुश हो गई और अपने ससुराल वापस लौट आई । पर अब अजय में वो पहले वाली बात नहीं रह गई थी , वह बहुत ही चुपचाप सा रहता था । कविता जिस खुशी की लालसा में यहां पर आई थी । वह उसे अब  नजर नहीं आ रही थी , क्योंकि अजय बहुत ही उदास रहने लगा था । वह कविता से ज्यादा बात भी नहीं करता था । अजय हर दिन अपनी मां से मिलने के लिए जाता था । लेकिन वृद्ध आश्रम में जाने के बाद उसकी मां की तबीयत बहुत ही खराब हो गई और वह बहुत ही बीमार रहने लगी । नर्स और डॉक्टर भी बहुत परेशान हो गए थे लेकिन अजय की मां के कहने पर किसी भी डॉक्टर और नर्स ने यह बात अजय को नहीं बताई क्योंकि उसकी मां चाहती थी कि कहीं अजय परेशान ना हो जाए । वह चाहती थी कि अजय अपनी जिंदगी में खुश रहे । लेकिन जब कई दिनों तक भी उसकी मां की तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो डॉक्टरों ने उसे बड़े अस्पताल में चेकअप के लिए भेज दिया और जब रिपोर्ट आई ,  तब पता चला कि उन्हें कैंसर है और यह बीमारी लगभग 2 वर्ष से है । अजय जब भी वहां मिलने जाता तो कविता को बहुत ही बुरा लगता था , वह उसे हमेशा वहां जाने से रोकती थी । वह कभी-कभी पिंकी को भी अपने साथ ले जाया करता था , जिस से कविता और भी नाराज हो जाती थी  । ज्यादा काम की वजह से कई दिन हो गए अजय वृद्ध आश्रम नहीं जा पाया ।  पर उसे यह बात पता नहीं थी कि उसकी मां को कैंसर है । जब वह बहुत दिनों के बाद वृद्धाआश्रम में आया तो उसे अपनी मां कहीं दिखाई नहीं दी । उसने आसपास पूछा तो पता चला कि उसकी मां की तबीयत ज्यादा खराब हो जाने से अस्पताल में भर्ती है । जब वह अस्पताल में गया तो देखा कि उसकी मां दवाई के नशे में उसे भी पहचान नहीं पा रही है । डॉक्टर ने बताया कि अब उनकी जिंदगी के बहुत ही कम दिन बचे हैं । डॉक्टरों ने अजय को उनकी बीमारी के बारे में भी बता दिया । डॉक्टरों के मुंह से यह बात सुनकर अजय के होश उड़ गए थे , उसने कभी सोचा नहीं था कि उसकी जिंदगी में ऐसा भी दिन आएगा । जब उसे अपनी मां से हमेशा के लिए अलग होना पड़ेगा ।  डॉक्टर अजय से – पता है यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है । कुछ गिने-चुने देशों में ही इसका इलाज संभव है । अगर तुम्हारी मां खुश रहे तो यह कुछ थोड़े ज्यादा दिन और गुजार सकती हैं । अजय – मुझे अब क्या करना चाहिए डॉक्टर । अब तुम इन्हें अपने घर ले जाओ और हो सके तो इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखो । घर छोड़ने के गम में ही इनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी । यदि तुम इन्हें अपने साथ घर ले जाओगे तो इनकी अच्छे से देखभाल करने से इनकी जिंदगी भी कुछ आसान हो जाएगी । आप इन्हें कल शाम अपने घर ले जा सकते हैं । डॉक्टर की बात सुनकर अजय अपने घर के लिए चल पड़ा । अब उसे एक ही इंसान दिखाई पड़ रहा था वह थी कविता । कविता को मनाना उसके लिए आसान नहीं था । अजय जानता था कि कविता कभी नहीं मानेगी । पर अजय मां को घर नहीं लाएगा तो बहुत बड़ी अनहोनी हो सकती है । अजय घर पहुंच जाता है अजय को देखते ही पिंकी दौड़ी दौड़ी आती है । पापा पापा आज आप दादी के पास गए थे । कैसी है दादी । क्या वे भी मुझे याद करती हैं । हां बेटा और कल हम दादी को घर लाएंगे । सच्ची पापा आप सच बोल रहे हो । हां बेटा । अजय जब कविता के पास गया तो वह खाना बना रही थी । कविता मैं आज मम्मी से मिलने गया था । डॉक्टर ने बताया कि उनके पास कुछ एक-दो दिन ही बचे हैं । मैं उन्हें वापस घर लाना चाहता हूं । मैं चाहता हूं कि अपनी जिंदगी के बचे हुए दिन हमारे साथ गुजारे । कविता कहती है ठीक है परंतु तुम्हें मेरी सारी बातें माननी होगी । कविता को इस प्रकार "हां"कहते देखकर अजय बहुत ही खुश हो जाता है । और कहता है –  हां कविता , मैं तुम्हारी सारी बातें मानूंगा । और वह अगले दिन हॉस्पिटल में अपनी मां को लेने पहुंच जाता है लेकिन यह क्या जैसे वह हॉस्पिटल में जाता है तो देखता है कि उसकी मां यह दुनिया छोड़कर जा चुकी थी । डॉक्टर उसे बताते हैं कि रात इनकी तबीयत बहुत ही खराब हो गई और मरते समय अपने आखिरी पल मे तुम्हारा नाम बार-बार ले रही थी । अजय बहुत जोर जोर से रो रहा था ।


मौर मोरनी की शिक्षा प्रद कहानी 



एक जंगल में मोर और मोरनी का जोड़ा रहता था । वे दोनों हंसी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । एक दिन मोरनी मोर से कहती है कि हमें इस जंगल में रहते हुए काफी समय बीत गया है । मेरा मन करता है कि हमे अब दूसरे स्थान पर जाकर रहना चाहिए , जहां पर हमारे परिवार जन के बहुत सारे मोर मोरनी रहते हो । वहां पर चलकर उनके साथ थोड़ा सा समय बिताया जाए । मोर उसकी इस बात को सुनकर कहता है कि – नहीं , हमें वहां पर नहीं जाना चाहिए क्योंकि यदि हम वहां पर गए तो कभी ना कभी हमारे आपस में झगड़ा भी हो सकता है । इससे अच्छा तो यही है कि हम यहीं पर सुकून से रहें । लेकिन मोरनी नहीं मानती है तब मोर को मोरनी की जिद के आगे झुकना पड़ता है और मोर और मोरनी दूसरे जंगल में आ जाते हैं । उस जंगल के पास एक नगर होता है । उस नगर का राजा पशु पक्षियों की भाषा को बहुत ही आसानी से समझ लेता था । एक दिन राजा अपनी रानी से कहता है कि रानी हमें बहुत तेज भूख लग रही है , हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कीजिए । रानी कई प्रकार के व्यंजन बनाकर लाती है और जब राजा भोजन करने बैठते हैं तब रानी एक थाली में व्यंजनों को परोसती है , तभी एक चावल का दाना नीचे जमीन पर गिर जाता है , वहीं पर एक चींटी उस चावल के दाने को लेकर धीरे धीरे जाने लगती है । राजा का ध्यान उस चींटी पर पहुंच जाता है और वह उसे बड़ी गौर से देखता है । जब चींटी थोड़ा आगे चलती है , तभी चींटी के पास एक बहुत बड़ा चींटा आता है और उससे वो चावल का दाना मांगता है । वो चींटी से कहता है कि यह चावल का दाना मुझे दे दो और तुम राजा की थाली से दूसरा चावल का दाना ले आओ । राजा उन दोनों की भाषा को समझ जाता है ।  चींटी मना करती है कि – नहीं , मैं चावल का दूसरा दाना नहीं लाऊंगी । मुझे राजा से डर लगता है यदि राजा ने मुझे देख लिया तो कहीं मेरी मृत्यु ही ना कर दे । तभी चींटे का ध्यान राजा की तरफ जाता है । वो चींटी से कहता है – लगता है कि राजा ने हमारी बातों को सुन लिया है । क्योंकि वो हमारी तरफ ही देख रहा है और मुझे ऐसा लगता है कि इसने हमारी बात को समझ भी लिया है । क्योंकि यह राजा सभी जीव जन्तु और पशु पक्षियों की भाषा को समझता है । तब चींटी कहती है कि यदि ऐसा है ,  तो यदि राजा हमारी इस बात को किसी से भी कहेगा , तो वह पत्थर का हो जाएगा । चींटी की यह बात सुनते ही राजा बहुत जोर से हंसने लगता है । राजा को हंसते हुए देखकर रानी उनसे  पूछती है कि क्या हुआ महाराज , आप हंस क्यों रहे हैं ? क्या मुझसे भोजन बनाने में कोई गलती हो गई है । तब राजा कहता है कि नहीं , नहीं , कुछ नहीं , बस ऐसे ही , हंसी आ गई । रानी बहुत ही जिद करती है लेकिन राजा कुछ नहीं बताता , क्योंकि राजा को पता था कि यदि मैंने चींटी वाली बात रानी को बताई तो मैं चींटी के कहे अनुसार पत्थर का हो जाऊंगा । परंतु रानी बार-बार कहती है और अपने प्यार की शपथ दिलाती है । तब राजा कहता है कि ठीक है , यदि तुम नहीं मानती तो मैं तुम्हें अपनी हंसी का कारण बताने को तैयार हूं । परंतु रानी जब तुम मेरी हंसी का कारण जान लोगी तो उसके बाद तुम्हें बहुत ही पछताना होगा । इसलिए मैं तुम्हें एक बार फिर से कहता हूं कि यह जिद छोड़ दो । अब तो रानी की जिज्ञासा और बढ़ जाती है और वो कहती है मुझे पछताना मंजूर है महाराज , परन्तु आप अपनी हंसी का कारण बताइए। तब  राजा रानी को जंगल में लेकर जाता है । जंगल में जाकर  राजा  रानी को जैसे-जैसे चींटी और चींटे की बातें बताते जाता है वैसे वैसे ही राजा पत्थर का होना शुरू हो जाता है । जब राजा अपनी आखिरी बात कहता है तभी वह सारा पत्थर का बन जाता है । रानी राजा को इस तरह देखकर बहुत जोर जोर से रोने लगती है । वो सोचती है कि राजा इसी कारण मुझे मना कर रहे थे लेकिन मैंने राजा की बात नहीं मानी । राजा और रानी के इस पूरे दृष्टांत को मोर और मोरनी देख रहे होते हैं । तब मोर मोरनी को समझाता है कि देखो मोरनी , यदि आज रानी ने राजा की बात मानी होती  तो राजा आज पत्थर का ना होता ,  राजा आज जीवित होता । इसलिये तुम भी ये हठ छोड़ दो और वापिस अपने उसी पुराने जंगल में चलो। क्योंकि त्रिया हठ और बाल हठ कई बार घातक सिद्ध होते है । तब मोरनी मोर की बात मान लेती है और वह वापस उसी स्थान पर चले जाते हैं ।और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगते हैं।

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | बेटी की शादी | बेटी क्यों नहीं गयी ससुराल | गरीब की उड़ान




बेटी की शादी | बेटी क्यों नहीं गयी ससुराल  

शादी के बाद विदाई का समय था । आरती अपनी मां से लिपट लिपट कर खूब रो रही थी । वहां खड़े सभी लोगों की आंखे नम थी । उसके बाद आरती अपने पापा के पास आई और अपने पापा के गले लग कर खूब रोई । वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई हुई गाड़ी के पास आ गई थी। दूल्हा अमित अपने खास दोस्त विकास के साथ बातें कर रहा था । विकास ने कहा – यार अमित , सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल चलकर अच्छा खाना खाएंगे । यहां तेरे ससुराल में खाने का मजा नहीं आया । तभी पास में खड़ा अमित का छोटा भाई दीपक बोला – हां भैया , पनीर भी कुछ ठीक नहीं था और रसमलाई में तो रस ही नही था। यह कहते ही दीपक हंसने लगा । अमित भी बातें करने में पीछे नहीं रहा , वह बोला –  अरे यार ! तुम चिंता क्यों करते हो , हम होटल चलेंगे ना ..... जो तुम्हें खाना है ,खा लेना । मुझे भी यहां खाने में मजा नहीं आया , रोटियां भी गर्म नहीं थी । अपने हमसफर के मुंह से यह शब्द सुनते ही आरती , जो कि गाड़ी में बैठने ही जा रही थी – वापस मुड़ी ,  गाड़ी के दरवाजे को जोर से बंद किया और अपने पापा के पास पहुंची । अपने पापा दयाशंकर जी का हाथ अपने हाथ में थाम कर बोली –  मैं ससुराल नहीं जा रही , पापा ......    मुझे यह शादी  मंजूर नहीं । यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के से रह गए । सब आरती के पास आ गए । आरती के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा था । मामला क्या था , यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था । तभी आरती के ससुर मोहनलाल जी ने आगे बढ़कर आरती से पूछा – लेकिन बात क्या हुई बहू ? विदाई का समय है ...... शादी हो चुकी है, अचानक क्या हुआ तुम्हें  , जो तुम इस शादी को नामंजूर कर रही हो ? अमित की तो जैसे दुनिया ही उजड़ने जा रही हो , वह आरती के पास आ गया । अमित के दोस्त भी सब जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या ,  कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है । आरती ने अपने पापा का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था । आरती ने अपने ससुर से कहा कि – बाबूजी , मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया है , काबिल बनाया है । क्या आप जानते हैं एक बाप के लिए बेटी क्या मायने रखती है ? आप और आपका बेटा नहीं जान सकते , क्योंकि आपकी कोई बेटी नहीं है । आरती रोते हुए बोले जा रही थी । आप जानते हैं मेरी शादी के लिए व शादी में बारातियों की आवभगत के लिए , कोई कमी ना रह जाए , मेरे पिताजी पिछले 1 साल से रात के 2 – 3 बजे उठकर मेरी मां के साथ योजना बनाते थे......  कि खाने में क्या बनेगा .......  रसोईया कौन होगा...... । मेरी मां ने एक साल से कोई भी साड़ी नहीं खरीदी , ताकि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाए , दुनिया को दिखाने के लिए अपनी बहन की साड़ी पहनकर मेरी मां खड़ी है । मेरे पापा की इस 150 रुपए की नई शर्ट के पीछे बनियान में डेढ़ सौ छेद है । मेरे माता पिता ने अपने कितने सपनों को मारा होगा , ना अच्छा खाया , ना अच्छा पिया । उनकी बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी ना रह जाए  और आपके बेटे को रोटी ठंडी लगी , उनके दोस्तों को पनीर में कुछ गड़बड़ लगी और देवर जी .... देवर जी को तो रसमलाई में रस ही नजर नहीं आया । इनका खिलखिला कर हंसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है । आरती हाफ रही थी । आरती के पिता दयाशंकर जी ने रोते हुए कहा –  लेकिन बेटी , इतनी छोटी सी बात ......  आरती ने उनकी बात बीच में ही काटी और बोली – यह छोटी सी बात नहीं है पापा , मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नही......  रोटी क्या आपने बनाई ..... रस मलाई , पनीर यह सब तो कैटर्स का काम है । आपने दिल खोलकर वह हैसियत से बढ़कर खर्च किया है । कुछ कमी रही तो वह तो कैटर्स की तरफ से है । आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे हैं । आप और मां कितनी रात रोएंगे क्या मुझे पता नहीं । जो लोग पत्नी या बहू लेने आए हैं , वह लोग खाने में कमियां निकाल रहे हैं । मुझ में कोई कमी आपने नहीं रखी , ये बात इनकी समझ में नहीं आई । आरती के पिता दयाशंकर जी ने आरती के सिर पर हाथ फेरा और बोले –  अरे पगली , छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही है । मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है । लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे , तुझे मेरी कसम । तभी अमित ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए , मुझसे गलती हो गई बाबूजी .....  यह कहते हुए उसकी आंखें नम हो गई थी । तभी मोहनलाल जी ने आगे बढ़कर आरती के सिर पर हाथ रखा , मैं तो बहू लेने आया था लेकिन भगवान बड़ा दयालु है उसने मुझे बेटी दे दी और एक बेटी की अहमियत भी समझा दी । मुझे भगवान ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि मेरी किस्मत में तेरे जैसी बेटी थी । लेकिन बेटी इन नालायकों को माफ कर दे , मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूं ।  आरती ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए और कहा कि – नही बाबू जी , मोहनलाल जी बोले कि – बाबूजी नहीं ,  पापा । आरती भी भावुक होकर अपने ससुर मोहनलाल जी से लिपट गई थी । आरती के पिता आरती जैसी बेटी पाकर गर्व महसूस कर रहे थे । आरती अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गई थी । पीछे छोड़ गई थी आंसुओं से भीगी अपने मां पापा की आंखें , अपने पिता का वह आंगन जिस पर वह चहकती थी , आज से इस आंगन की चिड़िया उड़ गई थी कहीं दूर प्रदेश में ।

       *एक बेटी मां बाप का अभिमान और अनमोल धन होती है , पराया धन नहीं । जब कभी हम किसी शादी में जाएं तो यह ध्यान रखें कि एक पनीर की सब्जी बनाने में एक पिता ने अपना कितना कुछ खोया होगा । अपने आंगन को उजाड़ कर किसी दूसरे का आंगन महकाना कोई छोटी बात नहीं होती । बेटी की शादी में बनने वाली रोटी , रसमलाई और पनीर बनने में उतना समय लगता है जितनी उस लड़की की उम्र होती है । यह भोजन सिर्फ भोजन नहीं पिता के अरमान वह उनकी जिंदगी का सपना होता है । *


 गरीब की उड़ान 


एक छोटे से गांव में सकूबाई नाम की औरत रहती थी । उसका एक बेटा भी था –  राकेश । जो बहुत ही होशियार था । सकू बाई के पति के गुजर जाने के बाद सारी जिम्मेदारियां उसके कंधों पर आ गई थी । वह किसी के घर बर्तन मांजती , तो किसी के घर खाना बनाती थी । उसका बेटा भी उसके साथ साथ जाया करता था । सक्कूबाई वहां पर काम करती और उसका बेटा वहां पर पड़े अखबारों को पढ़ने लगता था । एक दिन सक्कूबाई किसी के घर जाकर काम कर रही थी और उसका बेटा वहां पर अखबार पढ़ रहा था तो उस घर की मालकिन आई और बोली अरे – राकेश , तू क्या यहां बैठकर अखबार पढ़ रहा है , जा अपनी मां के साथ काम करा । अखबार पढ़ने से कौनसा तू बड़ा अफसर बन जाएगा , ये अखबार मुझे दे , मुझे चाय के साथ अखबार पढ़ने की आदत है । राकेश बोला –  मालकिन , मैं एक बड़ा अफसर बनना चाहता हूं । इसलिए  मैं अखबार पढ़ कर जानकारी इकट्ठी करता हूं ।  ये बात सुनकर मालकिन जोर-जोर से हंसने लगी और बोली कि – तू और अफसर बनेगा । ये कहते ही उसके हाथ से अखबार छीन लिया ।  तभी सक्कूबाई सारे काम निपटा कर आती है और अपने बेटे को साथ लेकर घर चली जाती है । उसके बाद सकू बाई ने शादियों में रोटियां बनाने का काम शुरू कर दिया । राकेश भी अपनी मां का हाथ बटाया करता था और फिर बाद में जो समय मिलता उसमे पढ़ने लग जाता था ।  ऐसे ही कई सालों तक चलता रहा । राकेश पढ़ता रहा और अपने स्कूल में अव्वल आने लगा । राकेश की लगन को देखकर उसके अध्यापक ने उसे दिल्ली आईएएस की तैयारी करने के लिए भेजा । और उसका खर्चा स्वयं उठाने की जिम्मेवारी ली । राकेश दिल्ली जाकर पढ़ाई करने लगा । परीक्षा से कुछ दिन पहले ही उसका एक्सीडेंट हो जाता है । जिसमें उसके दाएं हाथ पर चोट आ जाती है परंतु वह अपने बाएं हाथ से लिखने का फैसला करता है और अपने पूरे साल को बर्बाद होने से बचा कर परीक्षा देता है। उसके बाद वह अपने गांव वापस आ जाता है । थोड़े दिन बाद उसकी मां अखबार खरीद कर लाती है और उसे उसका रिजल्ट देखने के लिए कहती है । राकेश जब अखबार देखता है तो अपना रिजल्ट देख कर खुशी के मारे झूम उठता है । कहता है – मां .... मां....  मैं पास हो गया । मां मैं अफसर बन गया । मां और बेटे दोनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं ।

         हमें हमेशा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन मेहनत करनी चाहिए । चाहे दुनिया हमारी कितनी भी हंसी उड़ाए , लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

Hindi story | Hindi stories । हिंदी कहानिया | कृष्ण नाम का महत्व | बकरी बोली कृष्णा कृष्णा


 

किसी गांव में एक आदमी के पास बहुत सारी बकरियां थी । वह बकरियों का दूध बेचकर ही अपना गुजारा करता था । एक दिन उनके गांव में बहुत से महात्मा आए । उन सब ने गांव के बाहर जंगलों में आकर यज्ञ किया। उनमें से कुछ महात्मा वृक्षों के पत्तों को तोड़ कर उस पर चंदन से कृष्ण कृष्ण नाम लिख रहे थे । वह आदमी बकरियों को घास चराने  गांव से बाहर ही जाया करता था । कुछ दिनों बाद साधु अपना यज्ञ हवन करके वहां से चले गए । लेकिन कुछ कृष्ण नाम लिखे पत्ते वहीं पर पड़े रह गए । वह आदमी जब वहां पर घास चराने आया तो उनमें से एक बकरी ने उस कृष्ण नाम के लिखे हुए पत्ते को खा लिया । आदमी बकरी चराने के बाद अपने घर चला गया । घर जाकर सब बकरियां मैं मैं कर रही थी । लेकिन सिर्फ एक ही बकरी कृष्ण का नाम जप रही थी । क्योंकि उसने कृष्ण रूपी पत्ते को खा लिया था । उसके अंदर कृष्ण वास करने लगे थे । कृष्ण नाम जपने से उसका मैं (अंहकार) तो अपने आप ही खत्म हो गया था  । तब सब बकरियां ने उसे अपनी भाषा में समझाया कि तू अपनी भाषा छोड़कर यह क्या कृष्ण कृष्ण नाम जप रही है । तब वह कहती कि मैंने कृष्ण नाम का पत्ता अपने अंदर ले लिया है और मेरे मुख से अपने आप ही कृष्ण कृष्ण निकल रहा है । तब सब बकरियों ने फैसला किया कि हमें इसे अपनी टोली से बाहर कर देना चाहिए । सब बकरियों ने सींग मार कर उसे अपने बाड़े से बाहर कर दिया । सुबह जब उसका मालिक आता है , तो देखता है कि वह बकरी बाड़े से बाहर खड़ी है   मालिक उसे पकड़कर बाड़े के अंदर कर देता है । लेकिन सब बकरियां उसे फिर से सींग मार कर बाहर कर देती है । मालिक को कुछ समझ नहीं आता कि सब बकरियां इसकी  दुश्मन क्यों बन गई  है ।  तब वह सोचता है कि जरूर इसको कुछ बीमारी होगी , तभी सब बकरियां इसे अपने पास नहीं आने दे रही है । कहीं एक बकरी की वजह से सारी बकरियां बीमार ना हो जाए । मालिक उस बकरी को रात में जंगल में छोड़ आता है ।  जंगल में अकेली खड़ी बकरी को देख एक आदमी जो चोर होता है , उस बकरी को लेकर भाग जाता है और किसी  दूर गांव में जाकर एक किसान को बेच देता है । किसान बेचारा बहुत ही भोला भाला होता है । उसे समझ में नहीं आता कि बकरी मैं मैं कर रही है , या फिर कृष्ण कृष्ण ।  बकरी सारा दिन कृष्ण कृष्ण करती रहती थी ।  किसान  उसका दूध बेच कर अपना गुजारा करता था । कृष्ण नाम के प्रभाव से बकरी बहुत ही ज्यादा और मीठा दूध देती थी ।दूर-दूर से सब लोग उस किसान से उस बकरी का दूध लेने आते थे । दूध की बिक्री की वजह से अब उस किसान की हालत भी सुधरने लगी थी । एक दिन राजा का मंत्री और सैनिक उस गांव से गुजर रहे थे । उन्हें बहुत ही भूख लगी । उन्हें किसान का घर दिखाई दिया । किसान ने उन्हें बकरी का दूध पिलाया । बकरी का मीठा और अच्छा दूध पीकर सैनिक और मंत्री बहुत ही खुश हुए और कहने लगे कि उन्होंने कभी भी ऐसा दूध पहले नहीं पिया है । तब किसान बोला कि यह तो इस बकरी का दूध है , जो सारे दिन कृष्ण कृष्ण कहती है  ।  मंत्री और सैनिक बकरी को देखकर हैरान हो गए। बाद में मंत्री किसान का धन्यवाद कहकर अपने राज महल में चले गए । कुछ दिनों के बाद राज महल की राजमाता बीमार हो गई । कई वैद्य ने उनका उपचार किया , परंतु वे ठीक नहीं हो रही थी । तब वैद्य जी ने राजा से कहा कि अब इनका ठीक होना बहुत मुश्किल है । अब तो भगवान ही इन्हें बचा सकते हैं । तब राजगुरु जी ने राजा से कहा कि आपको अब इनके पास बैठ कर इन्हें भगवान का नाम याद कराना चाहिए । लेकिन राजा अपने काम में इतने व्यस्त थें कि वे चाहकर भी राजमाता के पास बैठकर ठाकुर जी का नाम नहीं जप सकते थे । तभी राजा के मंत्री को उस बकरी की याद आई और उन्होंने बकरी के बारे में सारी बात राजा को बताई । पहले तो  राजा को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । परंतु जब मंत्री राजा को किसान के घर लेकर पहुंचा तो राजा यह सब देख कर हैरान हो गया । राजा ने किसान से कहा कि यह बकरी उसे दे दे । तब किसान ने हाथ जोड़कर नम्रता पूर्वक राजा से कहा कि इस बकरी के कारण ही मेरे घर की दशा में सुधार आया है । यदि यह बकरी मैं आपको दे दूंगा तो मैं फिर से भूखा मर जाऊंगा ।  राजा ने कहा कि आप इस बात की चिंता मत करो । मैं आपको इतना धन दे दूंगा कि आप की गरीबी दूर हो जाएगी । तब किसान ने बकरी राजा को दे दी और राजा बकरी को राज महल में ले आया । अब तो बकरी राजमाता के पास बैठकर सारे दिन कृष्ण कृष्ण नाम का जाप करती रहती थी । सारे दिन कानों में कृष्ण का नाम जाने से और बकरी का मीठा दूध पीने से राजमाता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी और वह अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी । अब तो वह बकरी राजा के साथ राज महल में ही रहने लगी । उस बकरी के कृष्ण कृष्ण नाम के जप से सारे राजमहल में कृष्ण का नाम समा गया। अब तो सभी कृष्ण का नाम जपते थें। कृष्ण नाम के प्रभाव से राजा का यश चारों ओर फैल गया और वह बहुत से दान और पुण्य करने लगा । अपने अंत समय में बकरी और राजमहल के सभी लोग वैकुंठ धाम को चले गए।