क्या महाभारत के इन महान योद्धाओ की प्रेम कहानियों के बारे में जानते है आप ?? महाभारत की कुछ अनसुनी प्रेम कहानिया ,

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हमने महाभारत की कई कथाएं पढ़ी और सुनी है ! इन कथाओं में हमे कई प्रेम कहानिया भी मिलती है ! जिनमे से कुछ तो प्रसिद्ध है और सब उनके बारें में जानते है परन्तु कुछ ऐसी भी प्रेम कहानियाँ भी है जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते ! आज हम आपको  ऐसी ही प्रेम कहानियों के बारे में बताने जा रहे है  !
 रुक्मणि और श्री कृष्ण  -  हमने हमेशा से ही राधा और श्री कृष्ण की प्रेम कहानियाँ सुनी है परन्तु कहते है कि श्री कृष्ण ने रुक्मणि का अपहरण करके उनसे विवाह किया था ! हालाँकि रुक्मणि भी श्री कृष्ण से बहुत प्रेम करती थी !
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गांधारी और घृतराष्ट्र -  गांधारी को विवाह से पहले इस बात का पता नहीं था कि उनके पति घृतराष्ट्र दृष्टिहीन है ! परन्तु जैसे ही उन्हें अपने पति के दृष्टिहीन होने का पता चला तो उन्होंने स्वंय ही अपने पति जैसी जिंदगी बिताने के लिए अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली ! आँखे होते हुए भी गांधारी ने जिंदगी भर अपने आपको दृष्टिहीन रखा !
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अर्जुन और उलूपी  - हम सब जानते है कि अर्जुन का विवाह द्रोपदी के साथ हुआ था परन्तु उलूपी नागराजकुमारी थी  ! उसका दिल अर्जुन पर आ गया ! उन्होंने अर्जुन का अपहरण कर उनसे विवाह कर लिया था ! परन्तु जब उन्हें पता चला कि अर्जुन पहले से ही शादीशुदा है तो उन्होंने अर्जुन को जाने दिया ! साथ ही में एक वरदान दिया कि उन्हें पानी में कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा  !
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हिडिम्बा और भीम  - कुंती पुत्र भीम के प्रेम में हिडिम्बा डूब चुकी थी और इस प्रेम ने हिडिम्बा को बदल डाला क्योंकि हिडिम्बा पहले नरभक्षी थी !  जैसे ही दोनों का विवाह हुआ कुछ ही महीनों साथ रहने के बाद भीम ने उन्हें छोड़ दिया ! हिडिम्बा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम घटोत्कच्च था ! हिडिम्बा ने उस पुत्र का बिना किसी पश्चाताप के अकेले ही पालन - पोषण किया ! और बाद में यही भीम का पुत्र महाभारत की लड़ाई में अपने काका श्री अर्जुन के जान बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ !
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सत्यवती और ऋषि पराशर - ऋषि पराशर मशहूर होने के साथ - साथ योगी शक्तियों के मालिक भी थे ! उन्हें एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती से प्रेम हो गया ! सत्यवती लोगों को यमुना पार करवाती थी ! जब वह एक दिन ऋषि पराशर को यमुना पार करवा रही थी तो ऋषि पराशर ने सत्यवती से कहा कि - उन दोनों की रचना अनैतिक संबंध से संतान पैदा करने के लिए ही की गयी है ! तभी सत्यवती ने ऋषि पराशर के आगे 3 शर्तें रखी !  पहली शर्त के अनुसार दोनों को शारीरिक संबंध बनाते हुए कोई ना देखे ! इसके लिए ऋषि पराशर ने अपनी शक्तियों से एक कृत्रिम आवरण बना दिया ! सत्यवती की दूसरी शर्त यह थी कि - उसके कुँआरेपन पर कोई दाग ना लगे ! इसके लिए ऋषि ने उन्हें वरदान दिया कि जैसे ही बच्चे का जन्म होगा उनका शरीर दुबारा से कुँआरेपन जैसा हो जायेगा ! तीसरी शर्त के अनुसार सत्यवती ने कहा कि उनसे जो मछली की बदबू आती है वह सुगंधित हो जाय ! ऋषि पराशर ने चारों तरफ ऐसा सुगंधित वातावरण बना दिया कि 9 मील से ही उसकी सुगंधित खुशबु आने लगती थी !  9 महीने बाद सत्यवती के गर्भ से वेदव्यास जी ने जन्म लिया !

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अर्जुन और सुभद्रा -  सुभद्रा के भाई गदा और अर्जुन दोनों ने द्रोणाचार्य के पास एक साथ ही शिक्षा ली थी ! जब अर्जुन द्वारिका में अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलने गए तो उन्हें सुभद्रा ने अपने महल में मिलने बुला लिया और वे अर्जुन से प्रेम करने लगी ! श्री कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा को अर्जुन का अपहरण कर विवाह करने के लिए कहा  ! सुभद्रा ने ऐसा ही किया ! जब अर्जुन सुभद्रा को विवाह के पश्चात द्रौपदी के पास लेकर गए तब सुभद्रा ने तुरंत द्रोपदी को अपने विवाह के बारे में कुछ नहीं बताया ! परन्तु जब वह उससे घुलमिल गयी तब उन्होंने अर्जुन और अपने विवाह के बारे में द्रोपदी को बताया और द्रोपदी ने उसे स्वीकार भी कर लिया !

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सत्यवती और शान्तनु -  ऋषि पराशर के वरदान से सत्यवती के पास से मछली की नहीं बल्कि एक सुगंधित खुशबू आती थी जो की 9 मील दूर से ही पता लग जाती थी ! शान्तनु को इस खुशबु ने बेहद आकृषित कर लिया ! उन्होंने इस खुशबु का जब पीछा किया तो उन्होंने सत्यवती को नौका में पाया ! उन्होंने सत्यवती से कहा कि वह उनको नदी पार करा दे ! जब वे नदी पार कर गए तो उन्होंने सत्यवती से दुबारा विनती की कि वे नदी के दूसरे पार जाना चाहते है ! इस तरह करते-करते 3 - 4  दिन बीत गए और उन्हें सत्यवती से प्रेम हो गया ! बाद में उन्होंने सत्यवती से विवाह कर लिया !



क्या आप जानते है कर्ण और अर्जुन से भी बढ़कर था महाभारत का ये योद्धा ? अगर श्री कृष्ण ना बचाते तो युद्ध से पहले ही अर्जुन को मार चूका होता ये योद्धा जिसके बारे में आप नहीं जानते ?

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महाभारत युद्ध की अनगिनत कहानियों और पराक्रमी पात्रों में कुछ ऐसे पात्र भी हैं जिन्हे पूर्णतः भुला दिया गया हैं ! उनका उल्लेख महाभारत की कहानियों में कहीं नहीं मिलता ! क्योंकि अधिकांश कहानियों में केवल महान और प्रसिद्ध चरित्रों का ही वर्णन है ! ऐसे ही अनसुने चरित्रों में एक नाम है भगदत्त का ! जो प्राग ज्योतिषपुर के राजा नरकासुर का पुत्र था ! भगदत्त का उल्लेख महाभारत में मिलता है ! भगदत्त मात्र एक ऐसा चरित्र था जिसने 8 दिन तक अकेले अर्जुन के साथ युद्ध किया ! युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय जब अर्जुन राज्यों को अपने अधीन कर रहे थे तब अर्जुन और भगदत्त का 8 दिन तक युद्ध चला ! अर्जुन ने अनेक प्रयास किये परन्तु प्राग्ज्योतिषपुर पर विजय प्राप्त नहीं कर सके ! भगदत्त और अर्जुन के पिता इंद्र देव आपस में घनिष्ठ मित्र थे ! इसलिए भगदत्त ने उन्हें यज्ञ के लिए शुभकामनाये दी  ! एक बार भगदत्त का युद्ध कर्ण के साथ भी हुआ था जिसमे कर्ण की विजय हुई क्योंकि कर्ण ने भगदत्त को पराजित किया था ! इसलिए भगदत्त ने महाभारत का युद्ध कौरवों की ओर से लड़ा था ! कर्ण ने सभी दिशाओं में राजाओं को अपने अधीन कर लिया था ! इसका उल्लेख महाभारत के उद्योगपर्व  के 164 वे अध्याय में मिलता है ! महाभारत के समय भगदत्त की आयु बहुत अधिक थी और इस योध्या ने भीम , अभिमन्यु और सार्तिके जैसे योद्धाओं को पराजित किया था ! द्रोण पर्व के 24 वे अध्याय में वर्णन मिलता है कि अभिमन्यु और अन्य अनेक योद्धाओं ने एक साथ भगदत्त पर आक्रमण कर दिया था परन्तु भगदत्त के सामने सबने घुटने टेक दिए ! द्रोण पर्व के 27 वे अध्याय में उल्लेखनीय है कि कुरुक्षेत्र युद्ध के 12  वे  दिन भगदत्त का सामना अर्जुन के साथ हुआ ! दोनों के मध्य भयंकर संग्राम हुआ ! एक समय तो ऐसा आया जब भगदत्त ने अपने हाथी से अर्जुन को लगभग कुचल ही दिया था परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बचा लिया ! इसके पश्चात पुनः भगदत्त  के सामने आने पर अर्जुन ने भगदत्त के अनेक अस्त्रों को विफल कर दिया ! तब भगदत्त ने वैष्णो अस्त्र चलाया जिसे काटना अर्जुन के लिए असम्भव था ! जब तक वैष्णो अस्त्र अर्जुन को आकर लगता तब तक भगवान कृष्ण बीच में गए !

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  और उनके सामने अस्त्र वैजन्ती माला में परिवर्तित हो गया और इस तरह भगवान श्री कृष्ण के द्वारा पुनः भगदत्त से अर्जुन के प्राणों की रक्षा हुई ! तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अब वो भगदत्त पर प्रहार कर उसका अंत करे ! इसके पश्चात सबसे पहले अर्जुन ने भगदत्त के सुप्रतीक नामक पराक्रमी हाथी पर प्रहार किया ! यह प्रहार इतना तीव्र था कि बाण हाथी के कुम्भ स्थल में पंख समेत प्रवेश कर गया ! तब गजराज ने तुरंत ही धरती पर अपने दांत टेक दिए ! इसके पश्चात भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि भगदत्त की आयु इतनी अधिक है कि झुर्रियों के कारण उसकी पलकें झुकी रहती है और उसके नेत्र बंद रहते है क्योंकि भगदत्त बहुत पराक्रमी और शूरवीर है इसलिए उसने अपने नेत्रों को खुला रखने के लिए अपने मस्तक पर पट्टी बांधी हुई है ! यह सुनकर अर्जुन ने सबसे पहले भगदत्त के मस्तक पर बंधी इस पट्टी पर तीर मारा ! जिसके परिणाम स्वरूप वो पट्टी क्षीण हो गयी और उसके नेत्र बंद हो गए ! भगदत्त की आँखों के सामने अँधेरा छा गया और अवसर पाकर अर्जुन ने भगदत्त का वध कर दिया ! वास्तव में भगदत्त चाहे कितना भी पराक्रमी था परन्तु उसके लिए अर्जुन को पराजित करना असम्भव था क्योंकि अर्जुन के पक्ष में स्वयं भगवान कृष्ण थे !



पति-पत्नी में प्यार के लिए बेडरूम में लगाएं इन 5 में से कोई एक तस्वीर

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नमस्कार दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे है व्यवहिक जीवन के लिए आपके कमरे में क्या होना चाहिए और क्या नहीं , किस चीज़ से बढ़ेगा आपके बीच में प्यार और किस चीज़ से बाद सकता है आपके बीज में तकरार ,
 राधा-कृष्ण का चित्र -  यदि पति पत्नी के बीच में तनाव चल रहा है और आपके बीच अच्छे सम्बंद नहीं बन पा रहे तो आप अपने कमरे के अंदर  राधा-कृष्ण का चित्र लगा सकते है इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा आएगी और आपके सम्बन्दो में मधुरता आएगी

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यदि आप राधा-कृष्ण का चित्र नहीं लगा सकते या आपको नहीं मिल पाया तो आप अपने बैडरूम के अंदर दो हंसो के जोड़े का चित्र भी लगा सकते है ,

अगर आपको ऊपर बताए दोनों चित्र नहीं मिलते तो आप हिमालय का सुन्दर सा चित्र लगा सकते है इससे आपके घर में असीम शांति आएगी और आपके सम्बनों में मधुरत आएगी और साथ ही साथ आपका प्यार नई उचाइयो को छुएगा

आप अपने बैडरूम में शंख का चित्र भी लगा सकते है , इसके लगाने से भी पति पत्नी के सम्बन्दो के बीच में मधुरता आती है

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इन चारो के आलावा आप अपने बैडरूम में बासुरी का चित्र भी लगा सकते है यह भी पति पत्नी के सम्बन्दो में सुधर लाता है ,

ध्यान रखें, उपरोक्त में से किसी भी एक का ही चित्र लगाएं। यदि शयन कक्ष अग्निकोण में हो तो पूर्व-मध्य दीवार पर शांत समुद्र का चित्र लगाना चाहिए। शयन कक्ष के अंदर भूलकर भी पानी से संबंधित चित्र न लगाएं, क्योंकि पानी का चित्र पति-पत्नी और 'वो' की ओर इशारा करता है।

शयन कक्ष में राधा कृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी देवी या देवताओं की तस्वीर ना लगाएं। बेडरूम में सिरहाना पुरब या दक्षिण की ओर होना चाहिए। बेडरूम में आईना और तेल नहीं रखें। बेडरूम में इलेक्ट्रॉनिक सामान भी नहीं रखें। शयन कक्ष या बेडरूम की दीवारों में दरार नहीं होना चाहिए और दीवारों का रंग एकदम आंखों को चुभने वाला भी नहीं होना चाहिए। बेडरूम में ज्यादा सामान नहीं होना चाहिए। अरमारी को दक्षिण या पश्‍चिम की दीवार से सटा कर रखना चाहिए। इसी तरह की और भी कई हिदायतें है जिन्हें जानकार आप बेडरूम का वास्तु ठीक कर सकते हैं।

क्यों पीती है काली माता रक्त ?

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हिन्दू धर्म में देवताओं के साथ-साथ देवियों की भी पूजा की जाती है ! जैसे देवों में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है उसी तरह देवियों में सरस्वती ,लक्ष्मी और माँ काली को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ! ऐसा माना जाता है देवी पार्वती ने ही दुष्टों का संघार करने के लिए माँ काली का रूप धारण किया था ! माँ काली का रूप देखने में बड़ा ही भयावह लगता है ! उनके हाथों में कपाल , रक्त से भरी हुई कटोरी , लटकता नरमुंड और गले में मुंडों की माला उनके रूप को और भी भयावह बना देती है ! लेकिन दर्शको आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किस कारण माता को यह रूप धारण करना पड़ा और वह युद्ध भूमि में दैत्यों का खून क्यों पीने लगीस्कंध पुराण और दुर्गा सप्तसती में एक कथा के अनुसार पौराणिक काल में शंखुशिरा नामक एक अत्यंत बलशाली दैत्य का पुत्र अस्थिचूर्ण हुआ करता था जो मनुष्यों की अस्थियां चबाया करता थावह मनुष्य के साथ-साथ देवताओं पर भी अत्याचार किया करता था ! उसके अत्याचारों से तंग आकर एक दिन देवताओं ने क्रोध में आकर उसका वध कर डाला ! उसी काल में रक्तबीज नामक एक और दैत्य भी हुआ करता था  जब यह बात उसे पता चली तो वह देवताओं को पराजित करने के उद्देश्य से ब्रह्म क्षेत्र में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप करने लगा ! करीब 5 लाख वर्ष बाद रक्तबीज के घोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए  और उसको वरदान मांगने को कहा !

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  ब्रह्मदेव को अपने सामने देखकर रक्तबीज ने सबसे पहले उन्हें प्रणाम किया और बोलाहे परमपिता अगर आप मुझे वरदान देना चाहते है तो मुझे ये वरदान दीजिये कि मेरा वध देवता , दानव , गंधर्व , यक्ष , पिसाच , पशु , पक्षी , मनुष्य आदि में से कोई भी ना कर सके और मेरे शरीर से जितनी भी रक्त की बूंदे जमीन पर गिरे उनसे मेरे ही समान बलशाली, पराक्रमी  और मेरे ही रूप में उतने ही दैत्य प्रकट हो जाये तब ब्रह्मा जी ने कहा हे रक्तबीज तुम्हारी मृत्यु किसी पुरुष द्वारा नहीं होगी लेकिन स्त्री  तुम्हारा वध अवश्य कर सकेगी ! इतना कहकर ब्रह्मा जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए ! उसके पश्चात रक्तबीज वरदान के अंहकार में मनुष्यों पर अत्याचार करने लगा और एक दिन उसने वरदान के अंहकार में स्वर्ग लोक पर भी आक्रमण कर दिया और देवराज इंद्र को युद्ध में हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया ! उसके पश्चात 10 हज़ार वर्षों तक देवतागण रक्तबीज के भय से मनुष्यों की भांति दुखी होकर पृथ्वी पर छिपकर  विचरण करने लगे ! उसके बाद इंद्र सहित सभी देवतागण पहले  ब्रह्मा जी के पास गए फिर सभी ने उनको अपनी व्यथा सुनाई तब ब्रह्मा जी ने कहा - मैं इस संकट से आप सभी को नहीं उबार सकता इसलिए हम सभी को विष्णु देव के पास चलना चाहिए ! फिर ब्रह्माजी सहित सभी देवतागण श्री विष्णु जी के पास गए परन्तु विष्णुजी ने भी यह कहते हुए मना कर दिया कि रक्तबीज को मारना मेरे भी बस में नहीं है ! फिर सभी देवता वैकुण्ठ धाम से कैलाश के लिए चल दिए ! लेकिन जब वो वहाँ पहुंचे तो उन्हें पता चला कि भगवान शिव उस समय कैलाश पर नहीं बल्कि केदारनाथ क्षेत्र में सरस्वती नदी के तट पर विराजमान है !
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  ततपश्चात सभी देवतागण केदारनाथ धाम पहुंचे ! वहां पहुंचकर देवताओं ने भगवान शिव को सारी बात बताई ! तब ब्रह्माजी ने शिव से - कहा हे शिव मेरे ही वरदान के कारण रक्तबीज को देवता , दानव , पिसाच , पशु , पक्षी , मनुष्य आदि में से कोई भी वध नहीं कर सकता  ! परन्तु स्त्री उसका वध अवश्य कर सकती है तब भगवान शिव ने देवताओं से आदि शक्ति की स्तुति करने को कहा ! फिर सभी देवताओं ने रक्तबीज के वध की अभिलाषा से आदि शक्ति की स्तुति करना शुरू कर दिया ! कुछ समय पश्चात देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर हिमालय से एक देवी प्रकट हुई और देवताओं से कहा - हे देवतागण आप दैत्यराज रक्तबीज से बिलकुल निर्भय रहे मैं अवश्य उसका वध करूंगी ! उसके बाद देवी से वर पाकर सभी देवतागण अपने - अपने स्थान लौट गए ! फिर एक दिन देवताओं ने नारद जी से कहा कि वे रक्तबीज में ऐसी मति उत्तपन्न करे जिससे वह देवी के साथ किसी भी तरह का कोई अपराध करने को विवश हो जाये ! उसके बाद नारद जी ने रक्तबीज के पास जाकर उसको उकसाने के उद्देश्य से कहा - कि कैलाश पर्वत के ऊपर भगवान शिव का निवास स्थान है शिवजी को छोड़कर सभी देवता , दानव तुम्हारी आज्ञा का पालन करते है और तुमसे डरते है परन्तु शिव के साथ एक देवांगी नाम की अबला नारी रहती है जिससे शिव जी के कारण देव , दानव कोई भी उन्हें जीत नहीं सकता है ! तब रक्तबीज ने कहा - देवर्षि ऐसा क्या कारण है
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जो उस स्त्री को कोई नहीं जीत सकता ! फिर नारद जी ने रक्तबीज से कहा - कि तीनों देवों में से शिवजी सबसे अधिक जितेन्द्रय और धैर्यवान है इसलिए देव , दानव , नाग आदि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता अगर तुम उन पर विजय प्राप्त करना चाहते हो तो किसी तरह सबसे पहले उनका धैर्य डिगाओ ! नारदजी के वचन सुनकर शिवजी को मोहित करने के उद्देश्य से रक्तबीज पार्वती के समान अत्यंत सुंदर स्त्री बनकर कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा ! शिव जी ने अपने ध्यान योग से उस पार्वती रूपी दैत्य रक्तबीज को पहचान लिया ! तब उन्होंने क्रोध में आकर उसे श्राप दिया और कहा - हे दुष्ट  तुम कपट से पार्वती का वेश बनाकर मुझे छलने आया है इसलिए महेश्वरी पार्वती ही तेरा वध करेगी ! भगवान शिव का अपमान करने के बाद रक्तबीज अपने दरबार गया फिर वह अपने राक्षशों के साथ शिवजी पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाने लगा ! उसने सबसे पहले अपने राक्षशों से कहा कि यदि पार्वती मुझसे प्रेम करने लगी तो शिव का धैर्य अपने आप ही नष्ट हो जायेगा फिर पत्नी वियोग के कारण शिव कमजोर हो जायेंगे और उसके बाद उन्हें हम आसानी से जीत पाएंगे ! फिर उसने अपने राक्षशों को बताया कि शिव ने उसे स्त्री के हाथों मरने का श्राप दिया है लेकिन शिव ये नहीं जानते कि जब मेरे सामने इंद्र सहित कोई भी देवता नहीं टिक सके तो भला एक स्त्री मेरा वध कैसे कर सकती है ! इतना कहकर रक्तबीज जोर-जोर से हंसने लगा और थोड़ी देर बाद उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि तत्काल तुम लोग कैलाश जाओं और पार्वती को मेरे पास लेकर आओ और यदि वह ना माने तो बलपूर्वक मेरे पास ले आना ! इसके बाद राक्षशी सेना कैलाश पर्वत पर जा पहुंची और देवी पार्वती को अपने साथ दैत्यराज के पास चलने को कहा ! दैत्यों की बात सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गयी और अपने क्रोध से दैत्यों को जलाकर भस्म कर दिया ! उसी समय कुछ दैत्य वहां सेअपनी जान बचाकर रक्तबीज के पास पहुंचे और उसे माता पार्वती की शक्ति के बारे में बताने लगे ! यह सुनकर रक्तबीज क्रोधित हो उठा और उसने अपने राक्षशों को कायर कहा !
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  फिर रक्तबीज चण्ड-मुण्ड आदि असंख्य दैत्यों को साथ लेकर कैलाश पर्वत जा पहुंचा और देवी के साथ युद्ध करने लगा ! इस युद्ध में माता पार्वती सभी देवताओं की शक्तियों के साथ मिलकर लड़ने लगी और चण्ड - मुण्ड सहित सभी दैत्यों का वध कर दिया ! पतंतु रक्तबीज के शरीर से जितनी भी रक्त की बुँदे धरती पर गिरती उससे उसके समान ही एक और दैत्य उत्पन्न हो जाता इसलिए अभी तक उसका वध नहीं ही सका था ! फिर देवी पार्वती ने माँ काली का रूप धारण किया और अपना मुँह को फैलाकर रक्तबीज का खून पीने लगी ! इसी प्रकार अपनी जीभ फैलाई जिससे माँ काली उत्पन्न हुए दूसरे रक्तबीजों को निगलने लगी ! कुछ को रक्तविहीन करके मार दिया ! अंत में मुख्य रक्तबीज भी शूल आदि अस्त्रों के मारे जाने उसका खून चूसे जाने से रक्तविहीन होकर धरती पर गिर पड़ा ! इस प्रकार देवताओं सहित तीनों लोक रक्तबीज के नाश से प्रसन्न हो गए ! मित्रों ! इसी तरह माँ काली ने कई राक्षशों और दैत्यों का वध किया !