हिन्दू धर्म में देवताओं के साथ-साथ देवियों की भी पूजा की जाती है ! जैसे देवों में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है उसी तरह देवियों में सरस्वती ,लक्ष्मी और माँ काली को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ! ऐसा माना जाता है देवी पार्वती ने ही दुष्टों का संघार करने के लिए माँ काली का रूप धारण किया था ! माँ काली का रूप देखने में बड़ा ही भयावह लगता है ! उनके हाथों में कपाल , रक्त से भरी हुई कटोरी , लटकता नरमुंड और गले में मुंडों की माला उनके रूप को और भी भयावह बना देती है ! लेकिन दर्शको आज हम आपको बताएंगे कि आखिर किस कारण माता को यह रूप धारण करना पड़ा और वह युद्ध भूमि में दैत्यों का खून क्यों पीने लगी ? स्कंध पुराण और दुर्गा सप्तसती में एक कथा के अनुसार पौराणिक काल में शंखुशिरा नामक एक अत्यंत बलशाली दैत्य का पुत्र अस्थिचूर्ण हुआ करता था जो मनुष्यों की अस्थियां चबाया करता था ! वह मनुष्य के साथ-साथ देवताओं पर भी अत्याचार किया करता था ! उसके अत्याचारों से तंग आकर एक दिन देवताओं ने क्रोध में आकर उसका वध कर डाला ! उसी काल में रक्तबीज नामक एक और दैत्य भी हुआ करता था जब यह बात उसे पता चली तो वह देवताओं को पराजित करने के उद्देश्य से ब्रह्म क्षेत्र में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप करने लगा ! करीब 5 लाख वर्ष बाद रक्तबीज के घोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसको वरदान मांगने को कहा !

ब्रह्मदेव को अपने सामने देखकर रक्तबीज ने सबसे पहले उन्हें प्रणाम किया और बोला - हे परमपिता अगर आप मुझे वरदान देना चाहते है तो मुझे ये वरदान दीजिये कि मेरा वध देवता , दानव , गंधर्व , यक्ष , पिसाच , पशु , पक्षी , मनुष्य आदि में से कोई भी ना कर सके और मेरे शरीर से जितनी भी रक्त की बूंदे जमीन पर गिरे उनसे मेरे ही समान बलशाली, पराक्रमी और मेरे ही रूप में उतने ही दैत्य प्रकट हो जाये तब ब्रह्मा जी ने कहा हे रक्तबीज तुम्हारी मृत्यु किसी पुरुष द्वारा नहीं होगी लेकिन स्त्री तुम्हारा वध अवश्य कर सकेगी ! इतना कहकर ब्रह्मा जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए ! उसके पश्चात रक्तबीज वरदान के अंहकार में मनुष्यों पर अत्याचार करने लगा और एक दिन उसने वरदान के अंहकार में स्वर्ग लोक पर भी आक्रमण कर दिया और देवराज इंद्र को युद्ध में हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया ! उसके पश्चात 10 हज़ार वर्षों तक देवतागण रक्तबीज के भय से मनुष्यों की भांति दुखी होकर पृथ्वी पर छिपकर विचरण करने लगे ! उसके बाद इंद्र सहित सभी देवतागण पहले ब्रह्मा जी के पास गए फिर सभी ने उनको अपनी व्यथा सुनाई तब ब्रह्मा जी ने कहा - मैं इस संकट से आप सभी को नहीं उबार सकता इसलिए हम सभी को विष्णु देव के पास चलना चाहिए ! फिर ब्रह्माजी सहित सभी देवतागण श्री विष्णु जी के पास गए परन्तु विष्णुजी ने भी यह कहते हुए मना कर दिया कि रक्तबीज को मारना मेरे भी बस में नहीं है ! फिर सभी देवता वैकुण्ठ धाम से कैलाश के लिए चल दिए ! लेकिन जब वो वहाँ पहुंचे तो उन्हें पता चला कि भगवान शिव उस समय कैलाश पर नहीं बल्कि केदारनाथ क्षेत्र में सरस्वती नदी के तट पर विराजमान है !

ततपश्चात सभी देवतागण केदारनाथ धाम पहुंचे ! वहां पहुंचकर देवताओं ने भगवान शिव को सारी बात बताई ! तब ब्रह्माजी ने शिव से - कहा हे शिव मेरे ही वरदान के कारण रक्तबीज को देवता , दानव , पिसाच , पशु , पक्षी , मनुष्य आदि में से कोई भी वध नहीं कर सकता ! परन्तु स्त्री उसका वध अवश्य कर सकती है तब भगवान शिव ने देवताओं से आदि शक्ति की स्तुति करने को कहा ! फिर सभी देवताओं ने रक्तबीज के वध की अभिलाषा से आदि शक्ति की स्तुति करना शुरू कर दिया ! कुछ समय पश्चात देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर हिमालय से एक देवी प्रकट हुई और देवताओं से कहा - हे देवतागण आप दैत्यराज रक्तबीज से बिलकुल निर्भय रहे मैं अवश्य उसका वध करूंगी ! उसके बाद देवी से वर पाकर सभी देवतागण अपने - अपने स्थान लौट गए ! फिर एक दिन देवताओं ने नारद जी से कहा कि वे रक्तबीज में ऐसी मति उत्तपन्न करे जिससे वह देवी के साथ किसी भी तरह का कोई अपराध करने को विवश हो जाये ! उसके बाद नारद जी ने रक्तबीज के पास जाकर उसको उकसाने के उद्देश्य से कहा - कि कैलाश पर्वत के ऊपर भगवान शिव का निवास स्थान है शिवजी को छोड़कर सभी देवता , दानव तुम्हारी आज्ञा का पालन करते है और तुमसे डरते है परन्तु शिव के साथ एक देवांगी नाम की अबला नारी रहती है जिससे शिव जी के कारण देव , दानव कोई भी उन्हें जीत नहीं सकता है ! तब रक्तबीज ने कहा - देवर्षि ऐसा क्या कारण है

जो उस स्त्री को कोई नहीं जीत सकता ! फिर नारद जी ने रक्तबीज से कहा - कि तीनों देवों में से शिवजी सबसे अधिक जितेन्द्रय और धैर्यवान है इसलिए देव , दानव , नाग आदि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता अगर तुम उन पर विजय प्राप्त करना चाहते हो तो किसी तरह सबसे पहले उनका धैर्य डिगाओ ! नारदजी के वचन सुनकर शिवजी को मोहित करने के उद्देश्य से रक्तबीज पार्वती के समान अत्यंत सुंदर स्त्री बनकर कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा ! शिव जी ने अपने ध्यान योग से उस पार्वती रूपी दैत्य रक्तबीज को पहचान लिया ! तब उन्होंने क्रोध में आकर उसे श्राप दिया और कहा - हे दुष्ट तुम कपट से पार्वती का वेश बनाकर मुझे छलने आया है इसलिए महेश्वरी पार्वती ही तेरा वध करेगी ! भगवान शिव का अपमान करने के बाद रक्तबीज अपने दरबार आ गया फिर वह अपने राक्षशों के साथ शिवजी पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाने लगा ! उसने सबसे पहले अपने राक्षशों से कहा कि यदि पार्वती मुझसे प्रेम करने लगी तो शिव का धैर्य अपने आप ही नष्ट हो जायेगा फिर पत्नी वियोग के कारण शिव कमजोर हो जायेंगे और उसके बाद उन्हें हम आसानी से जीत पाएंगे ! फिर उसने अपने राक्षशों को बताया कि शिव ने उसे स्त्री के हाथों मरने का श्राप दिया है लेकिन शिव ये नहीं जानते कि जब मेरे सामने इंद्र सहित कोई भी देवता नहीं टिक सके तो भला एक स्त्री मेरा वध कैसे कर सकती है ! इतना कहकर रक्तबीज जोर-जोर से हंसने लगा और थोड़ी देर बाद उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि तत्काल तुम लोग कैलाश जाओं और पार्वती को मेरे पास लेकर आओ और यदि वह ना माने तो बलपूर्वक मेरे पास ले आना ! इसके बाद राक्षशी सेना कैलाश पर्वत पर जा पहुंची और देवी पार्वती को अपने साथ दैत्यराज के पास चलने को कहा ! दैत्यों की बात सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गयी और अपने क्रोध से दैत्यों को जलाकर भस्म कर दिया ! उसी समय कुछ दैत्य वहां सेअपनी जान बचाकर रक्तबीज के पास पहुंचे और उसे माता पार्वती की शक्ति के बारे में बताने लगे ! यह सुनकर रक्तबीज क्रोधित हो उठा और उसने अपने राक्षशों को कायर कहा !

फिर रक्तबीज चण्ड-मुण्ड आदि असंख्य दैत्यों को साथ लेकर कैलाश पर्वत जा पहुंचा और देवी के साथ युद्ध करने लगा ! इस युद्ध में माता पार्वती सभी देवताओं की शक्तियों के साथ मिलकर लड़ने लगी और चण्ड - मुण्ड सहित सभी दैत्यों का वध कर दिया ! पतंतु रक्तबीज के शरीर से जितनी भी रक्त की बुँदे धरती पर गिरती उससे उसके समान ही एक और दैत्य उत्पन्न हो जाता इसलिए अभी तक उसका वध नहीं ही सका था ! फिर देवी पार्वती ने माँ काली का रूप धारण किया और अपना मुँह को फैलाकर रक्तबीज का खून पीने लगी ! इसी प्रकार अपनी जीभ फैलाई जिससे माँ काली उत्पन्न हुए दूसरे रक्तबीजों को निगलने लगी ! कुछ को रक्तविहीन करके मार दिया ! अंत में मुख्य रक्तबीज भी शूल आदि अस्त्रों के मारे जाने व उसका खून चूसे जाने से रक्तविहीन होकर धरती पर गिर पड़ा ! इस प्रकार देवताओं सहित तीनों लोक रक्तबीज के नाश से प्रसन्न हो गए ! मित्रों ! इसी तरह माँ काली ने कई राक्षशों और दैत्यों का वध किया !


महाभारत के युद्ध में कौरवो की ओर से 11 अक्षौहिणी सेना और पांडवो की ओर 7 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था !अक्षौहिणी यानी अत्यंत विशाल और चतुरंगिणी सेना जिसमे 109350 पैदल , 65610 घोड़े , 21870 रथ , 21870 हाथी होते है अर्थात वह सेना जिसमे अनेक हाथी , घोड़े , रथ और पैदल सिपाही हो ! यानि इस युद्ध में सभी महारथियों और सेनाओं को मिलाकर करीब 50 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया था ! लेकिन यहां अब सवाल यह उठता है कि इतनी विशालकाय सेना के लिए युद्ध के दौरान भोजन कौन बनाता था और कैसे ये सब प्रबंध करता था और सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हर दिन हज़ारों लोग मारे जाते थे तो शाम को खाना किस हिसाब -किताब से बनता था ! दोस्तों - महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध भी कह सकते है क्योंकि उस समय शायद ही ऐसा कोई राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग न लिया हो ! उस काल में आर्यवर्त के सभी राजा या तो कौरव या फिर पांडव के पक्ष में खड़े दिख रहे थे ! हम सभी जानते है कि श्री बलराम और रुक्मी ये दो ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था किन्तु एक और राज्य ऐसा था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध से विरक्त था और वो था दक्षिण के उड्डपी का राज्य ! महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब उड्डपी के राजा अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुंचे तो कौरव और पांडव दोनों उन्हें अपने -अपने पक्ष में लेने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उड्प्पी के राजा बहुत ही दूरदर्शी थे उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा कि हे माधव दोनों ओर से जिसे देखो युद्ध के लिए ललायित दिखता है किन्तु क्या किसी ने सोचा है कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा महाराज आपने बिलकुल सही सोचा है आपकी इस बात से मुझे प्रतीत होता है कि आपके पास इसकी कोई योजना है अगर ऐसा है तो कृपया बताएं ! उसके बाद उड्प्पी नरेश बोले - हे वासुदेव सत्य तो यह कि भाइयों के बीच हो रहे इस युद्ध को में उचित नहीं मानता ! इसी कारण इस युद्ध में भाग लेने की इच्छा मुझें नहीं है !

