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कुली माँ की अफसर बिटिया।  माँ कुली बेटी IAS

भीमा को दो दिन से बुखार आ रहा था । फिर भी वो तीसरे दिन सवेरे सवेरे रेलवे स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गया । रेलवे स्टेशन पर वह कुली का काम करता था । उसका काम बहुत ही मेहनत वाला था । पूरे दिन में ना जाने कितने किलो वजन लेकर उसे एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म तक जाना पड़ता था । पूरे दिन की मेहनत के बावजूद किसी तरह उसके घर की रोटी चलती थी । उस दिन जब वह काम पर जा रहा था , तो उसकी गर्भवती पत्नी सावित्री ने उसे काम पर जाने के लिए मना कर दिया और उसे घर पर ही आराम करने को कहा । क्योंकि उसे 2 दिन से बुखार था । तब भीमा बोला – अरे ! तुम क्यों फ़िक्र करती हो ? मैं बिल्कुल ठीक हैं । उसकी पत्नी बोली – आप क्यों झूठ बोल रहे हैं , आपको 2 दिन से बुखार था । आज रहने दीजिए काम पर जाने के लिए .........  तभी भीमा बोला –  अरे नहीं , मैं बिल्कुल ठीक हूं , ले हमारा सर छू कर देख ले .....      यह कहकर भीमा ने सावित्री का हाथ पकड़कर अपने सर से लगा लिया ।  देखा , नहीं है ना बुखार ......  हो गई तसल्ली .......  देखो , सावित्री हमें पैसों की बहुत जरूरत है , अगर मैं घर पर बैठ गया ,तो बस फिर हो गया काम ....... यह कहकर भीमा काम पर चला गया । परंतु सावित्री को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह आखरी बार अपने पति को जाते हुए देख रही है । असल में भीमा को उस वक्त बुखार नहीं था , परंतु उसके शरीर में बहुत ही कमजोरी थी । जैसे ही वह प्लैटफॉर्म पर गया और ट्रेन आई , ट्रेन को आते देख जैसे ही वह भागा और अचानक उसे बहुत जोर से चक्कर आया और वह ट्रेन के आगे आ गया और उसकी मौत हो गई।  उसकी पत्नी सावित्री को जब यह पता चला तो वह रोते रोते स्टेशन पर गई । यह क्या हो गया ......  आप हमें किस के भरोसे छोड़ कर चले गए ....... भगवान के लिए आप वापस आ जाइए , आप वापस आ जाइए । यह कहते कहते वह बहुत जोर जोर से रो रही थी । तभी उसके पेट में बहुत जोर से दर्द उठा और वह वहीं बेहोश हो गई । भीमा का दोस्त मनोज उसे अस्पताल ले गया । वह भीमा की पत्नी सावित्रि को अपनी बहन की तरह ही मानता था । डॉक्टर ने उसकी हालत देखकर उसे तुरंत ही एडमिट कर लिया और कहा कि – हमें  इनका ऑपरेशन करना पड़ेगा । थोड़ी देर बाद डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आए और बोले कि –  हमें बहुत ही खेद है , हम बच्चे को नहीं बचा पाए .......     कुछ दिनों बाद  सावित्री भी अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ गई । उसके जीने का कुछ भी मकसद नहीं बचा था । उसका पति भी जा चुका था और उसका बच्चा भी । वह सारा दिन घर में भूखी प्यासी पड़ी रहती और पागलों की तरह रोती रहती । एक रात की बात है सावित्री ने तय कर लिया कि अब वह भी जिंदा नहीं रहेगी.....    पास वाली नदी में वह भी कूद कर आत्महत्या कर लेगी । यह सोचकर वह अपने घर से निकल पड़ी । सड़क बहुत सुनसान पड़ी थी । तभी उसके कानों में किसी बच्चे के रोने की आवाज आई । अरे ! यह किसके बच्चे की रोने की आवाज है ....   सावित्री ने इधर-उधर देखा .....  लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया । तभी अचानक उसकी नजर कूड़े के ढेर पर पड़ी ।  कूड़े के ढेर में एक नवजात बच्ची कपड़ों में लिपटी हुई पड़ी थी और वह लगातार रोए जा रही थी । सावित्री दौड़कर उसके पास गई और उसे गले से लगा लिया । बच्ची उसके सीने से लिपट कर चुप हो गई थी । सावित्री को ऐसे लगने लगा था कि भगवान ने कुछ दिनों पहले जो उसका बच्चा छीना था , वह उसे अब वापस कर दिया है । क्या हुआ क्यों रो रही हो...... तुम्हें भूख लगी है क्या ...... अरे कोई है यहां पर .....  यह किसकी बच्ची है ? लेकिन वहां कोई नहीं था । पता नहीं लोग अपने बच्ची को क्यों कूड़े में फेंक देते हैं । सावित्री के पास इन सब बातों का कोई जवाब नहीं था । लेकिन सावित्री को अपने जीने का मकसद मिल चुका था । कुछ समय पहले वह अपने जीवन को खत्म कर देना चाहती थी , परंतु इस बच्ची के मुस्कुराते चेहरे को देखकर उस में जीने की आशा फिर से आ गई थी । तभी तो कहते हैं कि बच्चे भगवान का दूसरा रूप होते हैं । सावित्री ने उस बच्ची का नाम आशा रखा , क्योंकि वह उसके जीने की आशा थी । सावित्री उसे अपने घर ले आई । अरे घर में तो खाने-पीने का कुछ भी सामान नहीं है ।  मैं थोड़ा सा दूध मनोहर भैया से लेकर आती हूं । सावित्री मनोहर के घर से थोड़ा सा दूध ले आई और बच्ची को पिलाने लगी । अब उसने सोच लिया था कि वह भी मेहनत करेगी और इस बच्ची को पालेगी । जिस स्टेशन पर भीमा काम करता था , उसी स्टेशन पर सब एक कुली महिला को देखकर आश्चर्यचकित हो गए ,  जिसने एक नवजात बच्ची को अपनी पीठ पर बांध रखा था । वह औरत और कोई नहीं बल्कि सावित्री थी । प्लेटफार्म पर ट्रेन की आने की घोषणा हुई । सावित्री दौड़कर ट्रेन के पास जा रही थी । ट्रेन आकर रुकी .....  तभी उसमें से एक महिला उतरी ......  जिसके पास काफी सामान था । सावित्री उसके पास आकर बोली –  कुली ...कुली ....कुली ....चाहिए मैम साहब ! अरे तुम उठा पाओगी यह सारा बोझ , उस मैम साहब ने कहा । मेम साहब , मैंने अपने जीवन में ऐसे ऐसे बोझ उठा लिए हैं , ये तो कुछ भी नहीं है । यह कहकर सावित्री ने उसका सामान अपने सर पर रखा और चल पड़ी । उस दिन उसके जीवन का यह एक नया अनुभव भी था और नया सफर भी । सावित्री बहुत मन लगाकर काम करती । हालांकि कभी-कभी वह थक भी जाती । लेकिन अपनी बेटी के लिए फिर से खड़ी होती और काम पर लग जाती । धीरे-धीरे उसकी बेटी आशा बड़ी हो रही थी । सावित्री ने उसका दाखिला एक अच्छे स्कूल में करवा दिया । एक दिन सावित्री जब घर पहुंची , तो उसकी बेटी आशा उससे जाकर लिपट गई ....   मां ..  मां ... मुझे आपको एक चीज दिखानी है । क्या चीज है बेटा ...   तब आशा ने एक बहुत बड़ा अवार्ड अपनी मां को दिखाया , जो उसे स्कूल की ओर से मिला था । अरे वाह ! वाह .... वाह....  मेरी बेटी यह तुम्हें स्कूल से मिला ...  हां मां ..... मैं स्कूल में फर्स्ट आई हूं । यह तो बस आशा की शुरुआत भर थी । एक बार इनाम मिलने का सिलसिला जो शुरू हुआ फिर वह रुका नहीं ..... मिडिल स्कूल से हाई स्कूल  फिर कॉलेज .... हर जगह आशा ने सावित्री का नाम रोशन किया । आशा को आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना था । लेकिन वह चिंता में थी कि वह कैसे शहर में जाकर आगे की पढ़ाई करेगी । क्योंकि इतने पैसे जो नहीं थी उसके पास ....   अरे तुझे फिक्र करने की क्या जरूरत है .........  तेरी मां है ना ....तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे । पैसे कैसे आएंगे .....   कहां से आएंगे......  वह सब तू अपनी मां पर छोड़ दे । सावित्री ने कुछ पैसे ब्याज पर उधार ले लिए । उसने उन पैसों से आशा को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया । सावित्री अब और भी ज्यादा मेहनत करने लगी थी , क्योंकि वह चाहती थी कि उसकी बेटी आशा को अब किसी बात की कोई कमी ना रहे । आशा ने भी अपनी मां की मेहनत को बेकार नहीं जाने दिया । वह खूब मेहनत करती , वह पूरी यूनिवर्सिटी में प्रथम आई। बाद में वह नौकरी की तैयारी करने लगी । उसकी मेहनत का फल भी उसे मिल गया । वह रेलवे की बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और उसकी पोस्टिंग उसी के शहर में हो गई । लेकिन उसने यह बात अपनी मां को नहीं बताई और सीधा ट्रेन से अपने घर की ओर चल पड़ी । उसकी ट्रेन ठीक समय पर प्लेटफार्म पर पहुंची । आशा अपने सामान सहित स्टेशन पर उतरी । आशा का स्वागत करने के लिए उसके असिस्टेंट भी वहां पर मौजूद थे । सावित्री हमेशा की तरह दौड़ती हुई ट्रेन के पास पहुंची और कहने लगी – कुली ....कुली .....कुली .....  मेमसाहब कुली चाहिए क्या ....    अचानक सावित्री की नजर गेट पर खड़ी हुई उसकी बेटी आशा पर गई । उसके असिस्टेंट मैडम मैडम कहकर आशा के पास आकर खड़े हो गए । सावित्री को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । इधर आशा का पूरा ध्यान अपनी मां पर था । वह अपनी मां सावित्री के पास गई और उनके पैर छुए । दोनों की आंखों में आंसू थे । आशा के असिस्टेंट सावित्री को घूर कर देख रहे थे । उनके दिमाग में एक ही सवाल चल रहा था कि ये कुली कौन है .... जिसके पांव उनकी मैडम आशा ने छुए हैं । लेकिन थोड़ी देर में ही उन्हें यह बात पता चल गई कि वह कुली कौन है , जब आशा ने सावित्री को मां कहकर पुकारा । बेटी यह लोग कौन है और यह तुम्हें मैडम मैडम क्यों कह रहे हैं । मां ....  मैं अफसर बन गई हूं । अफसर .....  मेरी बच्ची तुम अफसर बन गई हो , हे भगवान ! आज तूने मेरी सारी तपस्या का फल मुझे दे दिया । तूने मेरे लिए बहुत कष्ट सहे हैं मां , काश कि मैं तेरे सारे कष्ट ले पाती । पता है मां .....मैं भगवान से यही दुआ करती हूं कि हर जन्म में मुझे तेरे जैसी मां मिले । मुझे भी हर जन्म में तेरी जैसी बेटी चाहिए आशा .....  सिर्फ तेरे जैसी ।  आशा ने अपनी मां सावित्री का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था , हालांकि यह सब उसके कठिन परिश्रम के बिना बिल्कुल संभव नहीं था ।



नया पड़ोसी।  शिक्षा प्रद कहानी 


अचानक दरवाजे की कुंडी खटखटाई .......खट ...खट..... खट..... कौन है ...... पता नहीं कौन है ?  इतनी रात गए.....  बड़बड़ाते हुए रमा देवी ने दरवाजे के बीच बने झरोखे से झांकते हुए देखा । अरे !  पायल तुम .... इतनी रात गए  । जानती हो 2:00 बज रहे हैं । अच्छा बताओ... क्या हुआ ? आंटी जी – वो अचानक बाबू जी की तबीयत खराब हो गई है। उन्हें अस्पताल ले कर जाना होगा । आंटी जी अंकल जी से कहिए ना वह अपनी गाड़ी से उन्हें...... बात बीच में ही काटते हुए सावित्री देवी बोली –  वह क्या है बेटा , इनकी भी तबीयत खराब है ........  अभी दवाई देकर बड़ी मुश्किल से सुलाया है , ऊपर से गाड़ी भी ठीक नहीं है । तुम चौक पर चली जाओ , वहां से कोई ऑटो रिक्शा मिल जाएगा । क्या चौक पर ...... यह सुनकर पायल की आंखें भीगी हो गई थी । रात के 2:00 बजे ......  वह भी चौक पर ....  वह सोचने लगी –  मां और बाबू जी ने कभी भी 8:00 बजे के बाद घर से बाहर नहीं निकलने दिया । कारण अक्सर मां बाबूजी समझाते हुए कहते थे कि बेटा ,ये समय असामाजिक तत्वों के बाहर घूमते हुए शिकार करने का ज्यादा होता है । लेकिन आज ......    आज तो मुझे जाना ही होगा । मां को घर में ढांढस बंधा कर आई हूं ।  मुझे बेटी नहीं , बेटा मानते हैं मेरे मां और बाबू जी ,  तो मैं कैसे पीछे हट सकती हूं ......   लेकिन मन में अक्सर अकेली लड़कियों के साथ होती वारदातों की खबरें पायल के मन में होने वाली शंका को और बढ़ा रही थी । लेकिन वह हिम्मत करते हुए अपनी गली से बाहर सड़क की ओर जाने लगी । अरे रुको .....  कौन हो तुम ?   पीछे से आवाज आई .....  पायल ने घबराकर पीछे की ओर देखा तो गली के नुक्कड़ पर महीने भर पहले आए हुए नए पड़ोसी जो की रिक्शा चलाते हैं , उन्हें खड़ा देखा । अरे तुम तो हमारी गली के दीनानाथ जी की बिटिया हो ना ? कहां जा रही हो ? इतनी रात गए  ....   ।     काका , वह बाबू जी की तबीयत खराब है , बड़े अस्पताल लेकर जाना है कोई सवारी रिक्शा .....ढूंढने ।  क्या दीनानाथ जी की तबीयत खराब है । तुम घर चलो वापस , कहते हुए जंजीर से बंधे अपने रिक्शे को खोलने लगे । पायल तुरंत घर पहुंची और बाबूजी को सहारा देकर उठाने की कोशिश ही कर रही थी कि रिक्शा वाले भैया अंदर आ गए ।  आइए दीनानाथ जी , सहारा देते हुए दीनानाथ जी को पकड़ते हुए रिक्शेवाले ने कहा –  अरे भाभी जी ......   बिटिया .... कुछ नहीं , सब कुछ ठीक है । अभी डॉक्टर के पास पहुंच जाएंगे । तीनों को पिछली सीट पर बिठा कर रिक्शे को तेजी से पेंडल मारकर खींचने लगा । अस्पताल पहुंचकर पायल के साथ डॉक्टरों के आगे पीछे भाग कर दीनानाथ जी को भर्ती कराया । देखिए , थोड़ा बी पी बढ़ा हुआ था । डॉक्टरों ने उन्हें दवाई सहित थोड़ा आराम करने को कहा । डैडी के पास बैठी पायल को अपनी आंखों सामने शाम की वह तस्वीर नजर आ रही थी , जब बगल वाली रमा आंटी अंकल के साथ खिल खिलाकर गाड़ी से उतरी । तब ना तो गाड़ी खराब थी , ना ही अंकल जी की तबीयत । बस ......      देखिए , यह इंजेक्शन मंगवा लीजिए डॉक्टर ने एक पर्ची पायल की ओर बढ़ाते हुए कहा । यहां दीजिए , डॉक्टर साहब ! रिक्शा वाले ने यह कहकर पर्ची पकड़ ली । तुम मम्मी-पापा के साथ रहो , हम अभी लेकर आए बिटिया ..... और वह बाहर की ओर तेजी से निकल गया ।  पायल एक टक उसकी ओर देखती रही । एक छोटा सा टीन की चद्दर वाले , मकान में रहने वाला रिक्शा वाला .....   गली में सभी के घर दो तीन मंजिला मकान वाले थे । सभी के घरों में मार्बल , पत्थरों की सजावट थी , तो किसी के घर में टाइल्स की..... बस वही एक झोपड़ी नुमा घर अजीब सा लगता था । लो डॉक्टर साहब , अचानक रिक्शे वाले की आवाज आई । डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाया और आराम करने के लिए कह कर चला गया । सुबह 6:00 बजे तक डॉक्टर साहब ने तकरीबन चार बार बीपी चेक किया । सभी समय सुधार था , इसलिए डॉक्टर साहब ने उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी । वापसी रिक्शे पर लेकर रिक्शेवाले ने बहुत सावधानी से दीनानाथ जी को जैसे ही घर तक छोड़ा और चलने को हुआ , तभी पायल ने पर्स निकालकर पांच सौ का नोट उसकी ओर बढ़ा कर कहा , लीजिए  काका........    यह क्या कर रही हो बिटिया । हम इन कामों के पैसे नहीं लेते ।  मतलब ......   यह तो आपका काम है ना काका लीजिए  – पायल ने कहा । बेटा हमारे परिवार के जीवन यापन के लिए सुबह से शाम तक हम मेहनत  कर उस ऊपर वाले की दया से कमा लेते हैं । ज्यादा का लालच नहीं है । वह ऊपर वाला सब इंतजाम कर देता है , हमारा पेट भरने का ....   और वैसे भी हम एक गली में रहते हैं , तो हम दोनों तो पड़ोसी हुए ना ....   और वह पड़ोसी किस काम का जो ऐसी स्थिति में भी साथ ना दे .... कहकर पायल के सिर पर हाथ फेर कर वह चलने लगा । पायल भीगी हुई आंखों से आंसु पोंछते हुए , ऊपर वाले की ओर देखकर बोली – सच कहते है बाबूजी, आप किसी ना किसी रूप में आकर जरूर मदद करते है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो ऐसे पड़ोसी दिए  , पड़ोसी हो तो ऐसे ।

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