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बेटी की शादी | बेटी क्यों नहीं गयी ससुराल  

शादी के बाद विदाई का समय था । आरती अपनी मां से लिपट लिपट कर खूब रो रही थी । वहां खड़े सभी लोगों की आंखे नम थी । उसके बाद आरती अपने पापा के पास आई और अपने पापा के गले लग कर खूब रोई । वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई हुई गाड़ी के पास आ गई थी। दूल्हा अमित अपने खास दोस्त विकास के साथ बातें कर रहा था । विकास ने कहा – यार अमित , सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल चलकर अच्छा खाना खाएंगे । यहां तेरे ससुराल में खाने का मजा नहीं आया । तभी पास में खड़ा अमित का छोटा भाई दीपक बोला – हां भैया , पनीर भी कुछ ठीक नहीं था और रसमलाई में तो रस ही नही था। यह कहते ही दीपक हंसने लगा । अमित भी बातें करने में पीछे नहीं रहा , वह बोला –  अरे यार ! तुम चिंता क्यों करते हो , हम होटल चलेंगे ना ..... जो तुम्हें खाना है ,खा लेना । मुझे भी यहां खाने में मजा नहीं आया , रोटियां भी गर्म नहीं थी । अपने हमसफर के मुंह से यह शब्द सुनते ही आरती , जो कि गाड़ी में बैठने ही जा रही थी – वापस मुड़ी ,  गाड़ी के दरवाजे को जोर से बंद किया और अपने पापा के पास पहुंची । अपने पापा दयाशंकर जी का हाथ अपने हाथ में थाम कर बोली –  मैं ससुराल नहीं जा रही , पापा ......    मुझे यह शादी  मंजूर नहीं । यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के से रह गए । सब आरती के पास आ गए । आरती के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा था । मामला क्या था , यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था । तभी आरती के ससुर मोहनलाल जी ने आगे बढ़कर आरती से पूछा – लेकिन बात क्या हुई बहू ? विदाई का समय है ...... शादी हो चुकी है, अचानक क्या हुआ तुम्हें  , जो तुम इस शादी को नामंजूर कर रही हो ? अमित की तो जैसे दुनिया ही उजड़ने जा रही हो , वह आरती के पास आ गया । अमित के दोस्त भी सब जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या ,  कि दुल्हन ससुराल जाने से मना कर रही है । आरती ने अपने पापा का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था । आरती ने अपने ससुर से कहा कि – बाबूजी , मेरे माता पिता ने अपने सपनों को मारकर हम बहनों को पढ़ाया लिखाया है , काबिल बनाया है । क्या आप जानते हैं एक बाप के लिए बेटी क्या मायने रखती है ? आप और आपका बेटा नहीं जान सकते , क्योंकि आपकी कोई बेटी नहीं है । आरती रोते हुए बोले जा रही थी । आप जानते हैं मेरी शादी के लिए व शादी में बारातियों की आवभगत के लिए , कोई कमी ना रह जाए , मेरे पिताजी पिछले 1 साल से रात के 2 – 3 बजे उठकर मेरी मां के साथ योजना बनाते थे......  कि खाने में क्या बनेगा .......  रसोईया कौन होगा...... । मेरी मां ने एक साल से कोई भी साड़ी नहीं खरीदी , ताकि मेरी शादी में कोई कमी न रह जाए , दुनिया को दिखाने के लिए अपनी बहन की साड़ी पहनकर मेरी मां खड़ी है । मेरे पापा की इस 150 रुपए की नई शर्ट के पीछे बनियान में डेढ़ सौ छेद है । मेरे माता पिता ने अपने कितने सपनों को मारा होगा , ना अच्छा खाया , ना अच्छा पिया । उनकी बस एक ही ख्वाहिश थी कि मेरी शादी में कोई कमी ना रह जाए  और आपके बेटे को रोटी ठंडी लगी , उनके दोस्तों को पनीर में कुछ गड़बड़ लगी और देवर जी .... देवर जी को तो रसमलाई में रस ही नजर नहीं आया । इनका खिलखिला कर हंसना मेरे पिता के अभिमान को ठेस पहुंचाने के समान है । आरती हाफ रही थी । आरती के पिता दयाशंकर जी ने रोते हुए कहा –  लेकिन बेटी , इतनी छोटी सी बात ......  आरती ने उनकी बात बीच में ही काटी और बोली – यह छोटी सी बात नहीं है पापा , मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नही......  रोटी क्या आपने बनाई ..... रस मलाई , पनीर यह सब तो कैटर्स का काम है । आपने दिल खोलकर वह हैसियत से बढ़कर खर्च किया है । कुछ कमी रही तो वह तो कैटर्स की तरफ से है । आप तो अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे हैं । आप और मां कितनी रात रोएंगे क्या मुझे पता नहीं । जो लोग पत्नी या बहू लेने आए हैं , वह लोग खाने में कमियां निकाल रहे हैं । मुझ में कोई कमी आपने नहीं रखी , ये बात इनकी समझ में नहीं आई । आरती के पिता दयाशंकर जी ने आरती के सिर पर हाथ फेरा और बोले –  अरे पगली , छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही है । मुझे तुझ पर गर्व है कि तू मेरी बेटी है । लेकिन बेटा इन्हें माफ कर दे , तुझे मेरी कसम । तभी अमित ने आकर दयाशंकर जी के हाथ पकड़ लिए , मुझसे गलती हो गई बाबूजी .....  यह कहते हुए उसकी आंखें नम हो गई थी । तभी मोहनलाल जी ने आगे बढ़कर आरती के सिर पर हाथ रखा , मैं तो बहू लेने आया था लेकिन भगवान बड़ा दयालु है उसने मुझे बेटी दे दी और एक बेटी की अहमियत भी समझा दी । मुझे भगवान ने बेटी नहीं दी शायद इसलिए कि मेरी किस्मत में तेरे जैसी बेटी थी । लेकिन बेटी इन नालायकों को माफ कर दे , मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूं ।  आरती ने अपने ससुर के हाथ पकड़ लिए और कहा कि – नही बाबू जी , मोहनलाल जी बोले कि – बाबूजी नहीं ,  पापा । आरती भी भावुक होकर अपने ससुर मोहनलाल जी से लिपट गई थी । आरती के पिता आरती जैसी बेटी पाकर गर्व महसूस कर रहे थे । आरती अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गई थी । पीछे छोड़ गई थी आंसुओं से भीगी अपने मां पापा की आंखें , अपने पिता का वह आंगन जिस पर वह चहकती थी , आज से इस आंगन की चिड़िया उड़ गई थी कहीं दूर प्रदेश में ।

       *एक बेटी मां बाप का अभिमान और अनमोल धन होती है , पराया धन नहीं । जब कभी हम किसी शादी में जाएं तो यह ध्यान रखें कि एक पनीर की सब्जी बनाने में एक पिता ने अपना कितना कुछ खोया होगा । अपने आंगन को उजाड़ कर किसी दूसरे का आंगन महकाना कोई छोटी बात नहीं होती । बेटी की शादी में बनने वाली रोटी , रसमलाई और पनीर बनने में उतना समय लगता है जितनी उस लड़की की उम्र होती है । यह भोजन सिर्फ भोजन नहीं पिता के अरमान वह उनकी जिंदगी का सपना होता है । *


 गरीब की उड़ान 


एक छोटे से गांव में सकूबाई नाम की औरत रहती थी । उसका एक बेटा भी था –  राकेश । जो बहुत ही होशियार था । सकू बाई के पति के गुजर जाने के बाद सारी जिम्मेदारियां उसके कंधों पर आ गई थी । वह किसी के घर बर्तन मांजती , तो किसी के घर खाना बनाती थी । उसका बेटा भी उसके साथ साथ जाया करता था । सक्कूबाई वहां पर काम करती और उसका बेटा वहां पर पड़े अखबारों को पढ़ने लगता था । एक दिन सक्कूबाई किसी के घर जाकर काम कर रही थी और उसका बेटा वहां पर अखबार पढ़ रहा था तो उस घर की मालकिन आई और बोली अरे – राकेश , तू क्या यहां बैठकर अखबार पढ़ रहा है , जा अपनी मां के साथ काम करा । अखबार पढ़ने से कौनसा तू बड़ा अफसर बन जाएगा , ये अखबार मुझे दे , मुझे चाय के साथ अखबार पढ़ने की आदत है । राकेश बोला –  मालकिन , मैं एक बड़ा अफसर बनना चाहता हूं । इसलिए  मैं अखबार पढ़ कर जानकारी इकट्ठी करता हूं ।  ये बात सुनकर मालकिन जोर-जोर से हंसने लगी और बोली कि – तू और अफसर बनेगा । ये कहते ही उसके हाथ से अखबार छीन लिया ।  तभी सक्कूबाई सारे काम निपटा कर आती है और अपने बेटे को साथ लेकर घर चली जाती है । उसके बाद सकू बाई ने शादियों में रोटियां बनाने का काम शुरू कर दिया । राकेश भी अपनी मां का हाथ बटाया करता था और फिर बाद में जो समय मिलता उसमे पढ़ने लग जाता था ।  ऐसे ही कई सालों तक चलता रहा । राकेश पढ़ता रहा और अपने स्कूल में अव्वल आने लगा । राकेश की लगन को देखकर उसके अध्यापक ने उसे दिल्ली आईएएस की तैयारी करने के लिए भेजा । और उसका खर्चा स्वयं उठाने की जिम्मेवारी ली । राकेश दिल्ली जाकर पढ़ाई करने लगा । परीक्षा से कुछ दिन पहले ही उसका एक्सीडेंट हो जाता है । जिसमें उसके दाएं हाथ पर चोट आ जाती है परंतु वह अपने बाएं हाथ से लिखने का फैसला करता है और अपने पूरे साल को बर्बाद होने से बचा कर परीक्षा देता है। उसके बाद वह अपने गांव वापस आ जाता है । थोड़े दिन बाद उसकी मां अखबार खरीद कर लाती है और उसे उसका रिजल्ट देखने के लिए कहती है । राकेश जब अखबार देखता है तो अपना रिजल्ट देख कर खुशी के मारे झूम उठता है । कहता है – मां .... मां....  मैं पास हो गया । मां मैं अफसर बन गया । मां और बेटे दोनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं ।

         हमें हमेशा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन मेहनत करनी चाहिए । चाहे दुनिया हमारी कितनी भी हंसी उड़ाए , लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

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