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 Anant Chaturdashi katha: शास्त्रो में अनंत चतुर्दशी के व्रत का बहुत खास महत्व बताया गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु का अनंत स्वरूप पूजा जाता है, जिसमें हाथ में चौबीस गांठों वाला धागा बांधा जाता है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी खुश  होती। अनंत चतुर्दशी की पूजा में कहानी पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है। आप भी यह कहानी जाने और इसे पढे।


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Anant Chaturdashi 2023: Anant Chaturdashi Puja Katha: इस कहानी को पढ़ने और सुनने से होती है लक्ष्मी की प्राप्ति

Anant Chaturdashi katha: शास्त्रो में अनंत चतुर्दशी के व्रत का बहुत खास महत्व बताया गया है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु का अनंत स्वरूप पूजा जाता है, जिसमें हाथ में चौबीस गांठों वाला धागा बांधा जाता है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी खुश  होती। अनंत चतुर्दशी की पूजा में कहानी पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है। आप भी यह कहानी जाने और इसे पढे।

अनंत चतुर्दशी का वर्णन: एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, जिसमें एक अद्भुत और सुंदर यज्ञ मंडप बनाया गया था। उस मंडप में जल की जगह स्थल था, तो स्थल की जगह जल था। इससे दुर्योधन स्थल जगह देखा और जल कुण्ड में गिर गया। द्रौपदी ने देखा तो उनका उपहास किया और कहा कि अंधे के  अंधे होते हैं। दुर्योधन इस कटु वचन से बहुत दुखी हुआ, इसलिए उसने युधिष्ठिर को द्युत (जुआ) खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को बारह वर्ष का वनवास दे दिया।

वन में रहते हुए उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा। कृष्ण एक दिन वन में युधिष्ठिर से मिलने आए। योगी ने उन्हें सब कुछ बताया और इस कष्ट से बचने का उपाय भी पूछा। इसके परिणामस्वरूप भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चर्तुदशी का व्रत कराया और कहा कि इससे खोया हुआ राज्य भी मिलेगा। बातचीत के अंत में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को एक कहानी सुनाते हैं।

पुराने समय में एक ब्राह्मण की एक कन्या सुशीला थी। जब कन्या बड़ी हुई, ब्राह्मण ने उसे कौण्डिनय ऋषि से विवाह कर दिया। विवाह के बाद कौण्डिनय ऋषि अपने घर चले गए। वह रात को नदी के किनारे विश्राम करने लगे क्योंकि वह दूर जा रहे थे। सुशीला ने अनंत व्रत का महत्व पूछा। वहीं, सुशीला ने व्रत का पालन करते हुए चौबीस गांठों का डोरा अपने हाथ में बांध लिया। फिर वह अपने पति के पास गई।

 

कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे की पूछताछ की तो सुशीला ने पूरी जानकारी दी। सुशीला की बात कौण्डिनय ऋषि को अप्रिय लगी। उसने हाथ में डोरा भी आग में डाल दिया। इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ, जिससे कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति जल गई। सुशीला ने डोर को आग में जलाने का कारण बताया।

ऋषि अनंत भगवान को खोजने के लिए वन में चले गए। धीरे-धीरे वे निराश होकर गिर पड़े और बेहोश हो गए। उन्हें अनंत भगवान ने देखा और कहा कि मेरे अपमान से तुम्हारी यह हालत हुई और विपत्तियां आईं। लेकिन मैं अपने पश्चाताप से अब तुमसे खुश हूँ। अपने आश्रम में जाओ और विधि विधान से मेरा यह व्रत चौबीस वर्षों तक करो। इसलिए आपके सारे दुःख दूर हो जाएंगे। कौण्डिन्य ऋषि ने ऐसा ही किया, इससे उनके सभी पाप दूर हो गए और वे मोक्ष भी पाए। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत लिया। जिससे महाभारत में पाण्डवों की जीत हुई।


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