कोई इन्हे भोले बाबा कहता है , तो कोई शिव और तो कोई शंकर ! देवों के देव महादेव का ध्यान कई नामों से किया जाता है ! लेकिन आपने कभी ये जानने की कोशिश की है आखिर वास्तविकता में शिव कौन है ?

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कोई इन्हे भोले बाबा कहता है , तो कोई शिव और तो कोई शंकर ! देवों के देव महादेव का ध्यान कई नामों से किया जाता है ! लेकिन आपने कभी ये जानने की कोशिश की है आखिर वास्तविकता में शिव कौन है ? नहीं की तो कोई बात नहीं ! आइये आज हम आपको बताते है कि वास्तविकता में भोले नाथ का स्वरूप क्या है और शिव का वास्तविक अर्थ क्या है ! भारतीय आध्यत्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव महादेव शिव के बारे में कई गाथाएं सुनने को मिलती है ! शिव का एक गहरा अर्थ है जो केवल उन्ही के लिए उपलब्ध जो सत्य के खोजी है ! दुनिया में लोग  जिसे भी दिव्य मानते है उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते है ! लेकिन जब आप शिव पुराण को पूरा पढ़ेंगे तो आपको उसमे कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे तौर पर नहीं मिलेगा ! उनका जिक्र सुंदर मूर्ति के तौर पर हुआ है ! जिसका अर्थ सबसे सुंदर है ! शिव ही सत्य है !  लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी और कोई नहीं हो सकता क्योंकि शिव को महाकाल भी कहा जाता है जब वे अंत में इस सृष्टि का विनाश करते है ! आज हम आपको बताते है कि शिव कौन है ? शिव संस्कृत भाषा का शब्द है  जिसका अर्थ है कल्याणकारी या शुभकारी ! यजुर्वेद में शिव को शांति दाता बताया गया है ! 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' का अर्थ है देने वाला यानि दाता ! 'शिवोम' मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है तो दूसरा उसे संतुलित यानि नियंत्रित करता है ! दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है ! वह विनाशकारी हो सकती है इसलिए जब हम शिव कहते है तो हम ऊर्जा को एक खास तरिके से एक खास दिशा में ले जाने की बात करते है ! क्या है शिवलिंग ? शिव की दो काया है ! एक वह है जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए दूसरी वह जो सूक्ष्म रुपी लिंग के रूप में की जाती है ! शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग यानि शिव लिंग के रूप में की जाती है ! संस्कृत में लिंग शब्द का अर्थ होता है - चिन्ह ! इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए प्रयोग होता है ! अर्थात शिव का चिन्ह यानि शिवलिंग !
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शिव शंकर महादेव - शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है ! लोग कहते है शिव शंकर भोलेनाथ ! इस तरह अनजाने में ही लोग शिव और शंकर को एक ही शक्ति के दो नाम बताते है ! असल में दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की है ! शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है ! कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी दिखाया जाता है ! शिव ने सृष्टि की स्थापना , पालना और  विनाश के लिए ब्रह्मा , विष्णु और महेश यानि शंकर नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है ! इस तरह शिव ब्रह्माण्ड के रचियता हुए और शंकर उनकी एक रचना ! भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है ! इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से जाना और पूजा जाता है !
अर्धनारेश्वर  - शिव को अर्धनारेश्वर भी कहा गया है ! इसका अर्थ ये नहीं है कि शिव आधे पुरुष है या उनमे सम्पूर्णता नहीं ! बल्कि वे शिव ही है जो आधे होते हुए भी पूरे है ! इस सृष्टि के आधार और रचियता यानि स्त्री- पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप है ! दोनों ही एक दूसरे के पूरक है ! नारी प्रकृति है और नर पुरुष ! प्रकृति के बिना पुरुष और पुरुष के बिना प्रकृति अधूरी है ! दोनों का एक अटूट संबंध है ! अर्धनारेश्वर शिव इसी शक्ति के प्रतीक है ! आधुनिक समय में स्त्री पुरुष की बराबरी पर इतना जोर है उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा और समझा जा सकता है ! ये बताया जाता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है ! शक्ति के बिना शिव शिव न होकर शव रह जाता है !
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नीलकंठ क्यों कहा जाता है ? -  अमृत पाने की इच्छा लिए जब देव और दानव मंथन कर रहे थे तभी समुद्र से कालकूट नामक भयंकर विष निकला ! उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी ! देव , दानव , गंधर्व ,ऋषि मुनि ,मनुष्य ,  समस्त जीव हाहाकार करने लगे और उस विष की गर्मी से जलने लगे ! देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव विषपान करने के लिए तैयार हो गए ! उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और पी गए ! भगवान शिव के विषपान करने के बाद शक्ति रुपी माता पार्वती ने उस विष को शिवजी के गले में रोक कर  उसका प्रभाव खत्म कर दिया  ! विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए !
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भोले बाबा  -  शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है ! एक बार उस शिकारी को जंगल में देर हो गयी ! तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया ! रात को जागने के लिए उसने एक तरकीब सोची वो उस बेल वृक्ष का  एक - एक पत्ता तोड़कर नीचे डालने लगा !  बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था ! जैसा कि आप सब जानते है कि शिव को बेल पत्र बहुत प्रिय है ! शिवलिंग पर प्रिय बेल पत्र को चढ़ते देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए ! जबकि शिकारी को अपने इस शुभ काम का अहसास ही नहीं था ! भगवान शिव ने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया ! इसी भोलेपन के कारण भगवान शिव को भोलेबाबा भी कहा जाता है ! इस कथा से ये मालूम होता है कि भगवान शिव बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाते है ! शिव महिमा की ऐसी ही कई कथाओं का वर्णन हमारे पुराणों में मिलता है !

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