Hindi Story | श्री कृष्ण और नेवले की कथा | hindi story reading | hindi story for kids | love story in hindi | story in hindi with moral | short hindi story | bedtime stories in hindi | hindi story book | हिंदी स्टोरी बुक |
















 

महाभारत के युद्ध के पश्चात जब पांडवों ने हस्तिनापुर का राज्य संभाला । तब महाराज युधिष्ठिर ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ के दौरान महाराज युधिष्ठिर ने गरीबों को बहुत ही उपहार दिए । उन्होंने बहुत दान किया । उस समय जो भी उनके द्वार पर भिक्षा मांगने आया । वह उनके द्वार से खाली नहीं गया । वे उसकी झोली हीरे मोती से भर देते थे । चारों ओर बातें होने लगी कि महाराज युधिष्ठिर कितने बड़े दानी है , कितने बड़े महात्मा है  । सब लोग आपस में कहने लगे कि इससे बड़ा दान हमने पहले कभी भी नहीं देखा और न ही सुना है। लेकिन उसी दौरान वहां पर एक नेवला आया जिसका आधा शरीर सुनहरा था और आधा शरीर भूरे रंग का था । वह नेवला उस समारोह में आकर सबसे कहने लगा कि आप सब झूठ बोल रहे हैं । यह कोई महान दान नहीं है । तब वहां पर सभी उपस्थित लोग कहने लगे कि तुम यह क्या कह रहे हो ? महाराज युधिष्ठिर के द्वार पर जो भी कोई दान मांगने आया है और जिस ने जो कुछ भी मांगा है महाराज  ने उसे वही दान में दिया है । तो तुम यह बात कैसे कह सकते हो ? इन्होंने अपने द्वार पर आए हुए हर भिक्षुक को संतुष्ट किया है । इससे पहले दान ना तो किसी ने किया है , ना ही कोई ऐसा करेगा । परंतु नेवला उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ और वह कहने लगा कि एक बार एक बहुत ही छोटा सा गांव था । उस गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी , अपने बेटे और उसकी बहू के साथ रहता था । वे बहुत ही गरीब थे । अपने जीवन यापन के लिए ब्राह्मण जो भी भिक्षा मांगता था , उसी से वे अपने जीवन का निर्वाह करते थे ।  लेकिन एक बार उस गांव में अकाल पड़ गया । अब तो गरीब ब्राह्मण को जीवन यापन करना बहुत ही कठिन हो रहा था । ब्राह्मण को किसी दिन भिक्षा मिलती तो किसी दिन नही । एक बार तो उन्हें भिक्षा मिले हुए पूरे 10 दिन हो गए थे । उनके परिवार ने 10 दिन से कुछ भी भोजन ग्रहण नहीं किया था । एक दिन ब्राह्मण देव कुछ भिक्षा मांगने के लिए घर से निकले , तो उन्हें कहीं से थोड़ा सा जों का आटा दान में मिला । ब्राह्मण बहुत ही खुश हुआ और उसने घर आकर अपनी पत्नी को वह आटा दे दिया । उसकी पत्नी ने आटे से छोटी छोटी चार रोटियां बनाई  । ताकि सबके हिस्से में एक एक रोटी आ जाए ।  वहीं पर एक कोने में मैं भी बैठा हुआ था और सोच रहा था कि काश मुझे भी कुछ खाने को मिल जाए , तो मैं भी अपनी भूख को शांत कर लूं । पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था । जैसे ही परिवार वाले भोजन ग्रहण करने ही वाले थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई । जब ब्राह्मण देव ने जाकर दरवाजा खोला तो वहां पर एक अतिथि खड़ा था । उस अतिथि ने ब्राह्मण से कहा कि मुझे बहुत ही भूख लग रही है । मैं कई दिनों से भूखा हूं , कृपया मुझे कुछ खाने को दे दें ,  जिससे मैं अपने प्राणों को बचा सकूं । ब्राह्मण देव ने उस अतिथि से कहा कि –  अंदर आइए और आसन ग्रहण कीजिए । मैं अभी आपको यथाशक्ति भोजन देता हूं । अतिथि ने स्थान ग्रहण किया और उसके पश्चात ब्राह्मण देव ने अपने हिस्से की एक रोटी उस अतिथि को परोस दी । अतिथि मानो कई वर्षों से भूखा था , उसने पलक झपकते ही एक रोटी फटाफट खाकर समाप्त कर दी और कहने लगा कि आपने तो मुझे मार ही दिया । मैं तो कई दिनों से भूखा था । एक रोटी को खा कर मेरी तो भूख और बढ़ गई है । यह शांत नहीं हो रही । कृपया मुझे कुछ और भोजन खाने को दीजिए । अतिथि के यह कहते ही ब्राह्मण देव असमंजस में पड़ गए । क्योंकि उनका परिवार भी कई दिनों से भूखा था और आज उन्हें कुछ खाने को मिला था ,  तो वह कैसे अपने परिवार को अपने हिस्से की रोटी देने के लिए नहीं कह सकते थे । लेकिन ब्राह्मण के चेहरे के हावभाव को देखकर उसकी पत्नी बोली कि आप मेरे हिस्से का भोजन इन्हें दे दीजिए ।  और पत्नी ने यह कहकर अपने हिस्से की रोटी उस अतिथि के सामने परोस दी । उस रोटी को खाने के बाद अतिथि और रोटी मांगने लगा । तब बेटे ने अपने हिस्से की रोटी भी उस अतिथि के सामने परोस दी और कहने लगा कि अपने पिता के सम्मान की रक्षा करना ही एक बेटे का कर्तव्य होता है । अतिथि ने उसके बेटे के हिस्से की रोटी भी खा ली और वह एक और रोटी मांगने लगा । तब उसके बेटे की बहू ने भी अपना हिस्सा उसे दे दिया । अतिथि उस रोटी को खाकर संतुष्ट हो चुका था । वह उसके परिवार को आशीर्वाद देता हुआ वहां से चला गया । अतिथि के जाने के बाद उन ब्राह्मण परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो गई । क्योंकि वे भी कई दिनों से भूखे थे और भूख के कारण उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए । फिर नेवला बोला कि – उस अतिथि ने जहां पर भोजन ग्रहण किया था । वहां पर नीचे जमीन पर एक छोटा सा झूठा रोटी का टुकड़ा गिरा हुआ था । मैंने जैसे ही उस  टुकड़े को खाया , तभी उसे खाते ही मेरा आधा शरीर सुनहरा यानी सोने का हो गया है । और तभी से मैं इस आधे सुनहरे शरीर के साथ घूम रहा हूं । और उस भोजन की तलाश में हूं जैसा भोजन मैंने ब्राह्मण देव के घर ग्रहण किया था । ताकि जिसे खाते ही मेरा पूरा शरीर सोने का हो जाए । लेकिन मुझे अभी तक ऐसा भोजन ग्रहण कराने वाला नहीं मिला ।  जब मैंने महाराज युधिष्ठिर के दान के बारे में सुना तो मैं यहां पर आया और यहां पर बची जूठन को खाया । तब भी मेरा शरीर ऐसा ही रहा । मेरा शरीर पूरा सुनहरा नहीं हुआ है । इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह महान दान नहीं है । क्योंकि महान दान तो उस ब्राह्मण ने किया था । जिसके कारण मेरा आधा शरीर सोने का हो गया ।  नेवले की बात सुनकर वहां पर खड़े सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए और महाराज युधिष्ठिर भी अपने आप में बहुत ही शर्मिंदा हुए । क्योंकि उन्हें अपने मन ही मन में अपने महान दानी होने पर बहुत अभिमान हो गया था । और कृष्ण भगवान ये सब जान चुके थे । यह सब तो भगवान कृष्ण की एक लीला थी और कृष्ण भगवान ने महाराज युधिष्ठिर का अंहकार समाप्त करने के लिए ही ये लीला की थी। इसलिए तो कहा गया है कि – "अतिथि देवो भव: " ।  


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