Gyan Ganga | भोलेनाथ जी की कथा | hindi story


















 

एक बार नारद मुनि कैलाश पर्वत पर गए । वहां पर भोलेनाथ और माता पार्वती विराजमान थे । नारद मुनि ने भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रणाम किया । महादेव ने उनसे आने का कारण पूछा । तब नारदजी ने कहा कि हे भगवन , मेरे मन में एक प्रश्न है । तब भोलेनाथ बोले – कहो , नारद क्या पूछना चाहते हो । तब नारद मुनि बोले कि –  भगवन , आप को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम और सुलभ साधन क्या है । मैं आप से पूछना चाहता हूं कि ऐसा संसार में क्या है जो आपको बहुत ही प्रिय है । तब भोलेनाथ बोले कि – मुझे भक्तों का भाव इस संसार में सबसे प्रिय है ।  इसके अलावा मुझे जल के साथ बिल्व पत्र बहुत ही प्रिय है । जो श्रद्धा पूर्वक भक्ति से मुझे बिल्व पत्र (बेल पत्र) चढ़ाता है , उससे मैं जल्दी ही प्रसन्न हो जाता हूं । उसके पश्चात नारद जी ने माता पार्वती और भोलेनाथ की आराधना की और वहां से चले गए । नारद जी के जाने के बाद माता पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा कि – हे भोलेनाथ , मेरे मन में यह जानने की तीव्र इच्छा है कि आप को बिल्व पत्र इतनी प्रिय क्यों है ? तब शिव जी ने कहा कि – पार्वती , यह बिल्व पत्र मेरी जटा के समान है । इस बिल्व पत्र के 3 पत्ते और उसकी शाखाएं समस्त शास्त्रों का सार है । बिल्व पत्र के तीन पत्ते ब्रह्मा , विष्णु और महेश के स्वरुप है । स्वयं महालक्ष्मी माता ने बिल्व पत्र के रूप में जन्म लिया था ।  यह बात सुनकर पार्वती माता को बड़ी ही उत्सुकता हुई कि आखिर क्यों महालक्ष्मी ने बिल्व पत्र के रूप में जन्म लिया ?  उन्होंने भोलेनाथ से कहा कि हे भगवन , कृपया मुझे यह कथा विस्तार से सुनाइए कि आखिर क्यों महालक्ष्मी ने बिल्व पत्र का रूप धरा ?  तब भोलेनाथ कहते हैं कि पार्वती , सतयुग में ज्योतिरूप में मेरे अंश का रामेश्वर लिंग था । जिसकी ब्रह्माजी आदि देवों ने विधिवत पूजा अर्चना की थी । इसके फलस्वरूप वाणी देवी सबकी  प्रिया हो गई । भगवान विष्णु के मन में वाणी देवी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई । विष्णु भगवान के मन में वाणी देवी के प्रति जो इतनी प्रीति थी , वह लक्ष्मी देवी को पसंद नहीं आई ।  वे विष्णु भगवान से रुष्ट होकर पर्वत पर चली गई ।  वहां जाकर उन्होने मेरे लिंग विग्रह की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी तपस्या दिन प्रतिदिन कठोर से कठोर होती जा रही थी । कुछ समय पश्चात लक्ष्मी देवी ने मेरे लिंग विग्रह से थोड़ा उर्ध्व में एक वृक्ष का रूप धारण किया , जो बिल्व वृक्ष का रूप था । देवी लक्ष्मी अपने पत्तों और फूलों द्वारा मेरे लिंग स्वरुप की आराधना करने लगी । देवी लक्ष्मी ने करोड़ों वर्षों तक वहां तपस्या की । उसके पश्चात मैंने देवी लक्ष्मी को दर्शन दिए । मैंने उनसे उनकी कठोर तपस्या का कारण पूछा और वरदान मांगने को कहा । तब देवी लक्ष्मी ने कहा कि – श्री विष्णु भगवान के मन में वाणी देवी के लिए जो स्नेह है , वह समाप्त हो जाए । तब शिवजी ने कहा कि – हे देवी लक्ष्मी , भगवान श्रीहरि के मन में आपके अतिरिक्त और किसी के लिए भी प्रेम नहीं है । वाणी देवी के लिए तो उनके मन में सिर्फ श्रद्धा मात्र है । यह सुनकर श्री लक्ष्मी देवी अत्यंत प्रसन्न हुई और वापस वैकुंठधाम में जाकर श्रीहरि के हृदय में स्थापित होकर उनके साथ प्रेम से रहने लगी । तब शिव जी ने कहा कि–   पार्वती , इस प्रकार महालक्ष्मी देवी के मन का एक बहुत ही बड़ा भ्रम दूर हुआ था । इसी कारण श्री लक्ष्मी देवी बिल्व पत्र से भक्ति पूर्वक मेरी पूजा-अर्चना करने लगी ।  इसी कारण मुझे बिल्व पत्र , उसके पत्ते ,फूल और फल बहुत ही पसंद है । मैं निर्जन स्थान में बिल्व पत्र का आश्रय लेकर रहता हूं ।  हे पार्वती , जो भी प्राणी भक्ति पूर्वक मुझे जल के साथ बिल्व पत्र अर्पित करता है । उससे मैं अत्यंत ही प्रसन्न हो जाता हूं ।

Once Narad Muni went to Mount Kailash. Bholenath and Mother Parvati were sitting there. Narad Muni bowed down to Lord Bholenath and Mother Parvati. Mahadev asked him the reason for coming. Then Naradji said that O God, I have a question in my mind. Then Bholenath said - Say, what do you want to ask Narad. Then Narad Muni said that - God, what is the best and easiest way to please you. I want to ask you what is there in this world which is very dear to you. Then Bholenath said that - I love the feelings of the devotees the most in this world. Apart from this, I love Bilva Patra very much with water. The one who offers Bilv Patra (Bel leaf) to Me with devotion, I become very happy soon. After that Narad ji worshiped Mother Parvati and Bholenath and left from there. After the departure of Narad ji, Mother Parvati asked Bholenath that - O Bholenath, I have a strong desire to know why you love Bilv Patra so much? Then Shiv ji said that - Parvati, this Bilv Patra is like my Jata. The 3 leaves of this Bilva Patra and its branches are the essence of all the scriptures. The three leaves of Bilva Patra are the forms of Brahma, Vishnu and Mahesh. Mahalakshmi Mata herself was born in the form of Bilva Patra. Hearing this, Mother Parvati was very curious as to why Mahalakshmi took birth in the form of Bilva Patra. He told Bholenath that O God, please tell me this story in detail that why Mahalakshmi took the form of Bilva Patra? Then Bholenath says that Parvati, in the form of light in Satyuga, was the Rameshwar linga of my part. Which was duly worshiped by Brahmaji etc. Gods. As a result, Vani Devi became everyone's favorite. In the mind of Lord Vishnu, reverence for Vani Devi arose. Lakshmi Devi did not like the love that Lord Vishnu had for Vani Devi. She got angry with Lord Vishnu and went to the mountain. After going there, he started doing severe penance for my penis idol. His penance was getting harsher and harsher day by day. After some time, Lakshmi Devi took the form of a tree slightly above my linga idol, which was the form of Bilva tree. Goddess Lakshmi started worshiping my linga form with her leaves and flowers. Goddess Lakshmi did penance there for crores of years. After that I saw Goddess Lakshmi. I asked him the reason for his severe penance and asked him to ask for a boon. Then Goddess Lakshmi said that the affection that Lord Vishnu has for Vani Devi should end. Then Shivji said that – O Goddess Lakshmi, Lord Sri Hari has no love for anyone except you. He has only faith in his mind for Vani Devi. Hearing this, Shri Lakshmi Devi was extremely pleased and went back to Vaikunthdham and established herself in the heart of Shri Hari and started lovingly living with him. Then Shiv ji said that- Parvati, in this way a big confusion in the mind of Mahalakshmi Devi was dispelled. That's why Shri Lakshmi Devi started worshiping me with devotion with Bilv Patra. That's why I like Bilv Patra, its leaves, flowers and fruits very much. I live in an isolated place by taking shelter of bilva leaves. Oh Parvati, whoever offers me bilva leaves with water with devotion. That makes me very happy.

Gyan Ganga |स्वयं भगवान ने लिया अपने भग्त का बदला | hindi story


















एक संत भगवान नाम की मस्ती में पैदल चल रहे थे । जुबां पर हरि नाम का कीर्तन था । इस मस्ती में भगवान का नाम लेते हुए झूम-झूम के चल रहे थे । तभी उनकी नजर रास्ते में एक हलवाई की दुकान पर पड़ी । हलवाई जलेबी बना रहा था और साथ में दूसरी ओर दूध की रबड़ी बनाई जा रही थी । संत जी कुछ क्षण के लिए वहां पर रुक गए । शायद उन्हें भूख लगी थी। वे जलेबी खाना चाह रहे थे । परंतु उनके पास तो पैसे ही नहीं थे , तो वे कैसे हलवाई से जलेबी मांगते । वे वहां से चलने लगे कि तभी हलवाई ने उन्हे रोका और शायद परमात्मा की प्रेरणा से हलवाई ने उन्हे गरमा गर्म कुछ जलेबी और रबड़ी खाने को दी । संत ने जलेबी और रबड़ी खाई । फिर संत ने आसमान की ओर हाथ उठाकर परमात्मा का धन्यवाद किया और उस हलवाई को आशीर्वाद देते हुए आगे चल दिए । संत जी हरि कीर्तन में मस्त होकर चल रहे थे । जैसे कि उन्हें दुनिया वालों की कोई खबर ही नहीं हो । वे मौज मस्ती में और सड़क पर पड़े हुए बारिश के पानी में छींटे उड़ाते हुए चल रहे थे । उनके पीछे – पीछे एक प्रेमी युगल जोड़ा बारिश के पानी से बचता बचाता चल रहा था । संत जी को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था । जैसे ही संत ने दोबारा पानी में पैर मारा , तब कुछ छींटे उस प्रेमी युगल जोड़े की प्रेमिका के कपड़ों पर लग गए। प्रेमी को यह देखते ही बहुत गुस्सा आ गया । और उसने संत के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ मारा । उसने संत जी के कपड़ों को पकड़कर कहा कि –तुम अंधे हो , तुम्हे दिखाई नहीं देता , जो तुमने इस कीचड़ के छींटे मेरी प्रेमिका के कपड़ों पर मार दिए है । उसके सारे कपड़े गंदे हो गए हैं । अब इसकी भरपाई कौन करेगा । प्रेमी गुस्से से बहुत ही लाल हो गया था । लेकिन संत जी चुपचाप थे । उन्होंने उस युवक से कुछ भी नहीं कहा । आसपास के आते जाते लोग भी इस तमाशे को बड़े ही शौक से देख रहे थे । किसी ने भी उन संत को छुड़ाने की कोशिश नहीं की । बाद में उस युवक ने संत जी को धक्का दे दिया और उन्हे कीचड़ में गिरा दिया । वो वहां से हंसता हुआ अपनी प्रेमिका के साथ चल दिया । तब संत जी ने आसमान की तरफ सिर उठाकर कहा कि – " वाह मेरे भगवन , कभी तो गरम गरम जलेबी रबड़ी खिलाता है और कभी गरम थप्पड़ " । ठीक है , जैसी तेरी मर्जी , तू जो चाहे उसी में मैं भी खुश हूं । और फिर वे दोबारा उठकर वापस अपने रास्ते पर चलने लगते है । दूसरी ओर प्रेमी और प्रेमिका थोड़ी आगे ही चलते है कि तभी वह युवक ठोकर खाकर बहुत जोर से गिरता है। उसकी प्रेमिका बहुत जोर से चिल्लाती है । आसपास के सब लोग इकट्ठा हो जाते हैं । वह उसे उठाने की कोशिश करती हैं । लेकिन उसका प्रेमी उठ ही नही रहा था । उसके सिर से खून निकल रहा था । वहां खड़े लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था कि किसी के अचानक ठोकर खाकर गिरने से इतना खून कैसे निकल सकता है । तभी कुछ लोग दूर से संत जी को आते हुए देखते हैं और सोचते हैं कि शायद संत जी ने इसे श्राप दिया है। जिसके कारण इसकी ये हालत हो गई हैं । सब लोग संत जी को घेर लेते हैं और कहते हैं कि आप कैसे साधु संत हैं , कैसे भक्त हैं आप , जो इस युवक के नाराज होने पर आप ने इसको मर जाने का श्राप दे दिया । तब संत जी बोले कि – नहीं , मैंने इसे श्राप नहीं दिया । लेकिन किसी को उनकी बात पर यकीन नहीं आया । तब संत जी ने लोगों से पूछा कि क्या आप मे से कोई ऐसा गवाह है जिसने वो पूरी घटना देखी थी। तो एक आदमी बोला कि – हां , मैं गवाह हूं, मैंने आप दोनों का झगड़ा अपनी आंखों से देखा था । तब संत जी बोले कि – क्या मैंने इस युवक के कपड़ों को अपने कीचड़ से गंदा किया था ? वो आदमी बोला कि– नही , आपसे तो उसकी प्रेमिका के कपड़ों पर कीचड़ लग गया था । तब संत जी बोले – फिर उसके प्रेमी ने मुझे थप्पड़ क्यों मारा ? वह क्यों नाराज हो गया ? तब वो आदमी बोला कि – उसका गुस्से में आना स्वभाविक ही था , क्योंकि वह उसका प्रेमी था । वह कैसे अपनी प्रेमिका के कपड़ों को गंदा होते देख सकता था । तब संत जी ने जोर से ठहाका लगाकर कहा कि – "जब इसका प्रेमी इसके कपड़ों पर लगे दाग को बर्दाश्त नहीं कर पाया , तो मेरा साथी , मेरा प्रेमी और जो मेरा यार है वह परमात्मा मुझे लगे थप्पड़ को कैसे बर्दाश्त कर सकता था ।" ईश्वर ही मेरा यार है जो मुझ से प्रेम करता है । उसकी लाठी से सब राजा महाराजा डरते हैं । यह कहते हुए वह संत जी बोले कि – जाओ , इसे जल्दी से अस्पताल में ले जाओ । मैं अपने उस परमात्मा से दुआ करूंगा कि यह बच जाए और इसे क्षमा करें । यह कहते हुए संत जी वहां से चले जाते हैं ।
तो भक्तो , इस कथा से हमें यही सीख मिलती है कि परमात्मा की लाठी में आवाज नहीं होती । हमें कभी भी किसी सच्चे भक्त और सच्चे साधु संत का अपमान नहीं करना चाहिए । क्योंकि परमात्मा एक बार अपने किए हुए अपमान को बर्दाश्त कर सकते हैं , परंतु अपने भक्तों के अपमान को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते ।


A saint named God was walking in fun. The name of Hari was chanted on the tongue. Taking the name of God in this fun, they were walking with a bang. That's why his eyes fell on a confectionery shop on the way. The confectioner was making jalebi and at the same time milk rabri was being made on the other side. Saint ji stopped there for a few moments. Maybe he was hungry. They wanted to eat jalebi. But he had no money, so how could he ask for jalebis from the confectioner. They started walking from there when the confectioner stopped them and perhaps with the inspiration of God, the confectioner gave them some hot jalebi and rabdi to eat. The saint ate jalebi and rabdi. Then the saint thanked God by raising his hands towards the sky and went ahead blessing that confectioner. Saint ji was walking engrossed in Hari Kirtan. As if they don't have any news about the people of the world. They were walking merrily and splashing in the rain water lying on the road. A loving couple was walking behind them, saving themselves from the rainwater. Saint ji did not know anything about this. As soon as the saint stepped into the water again, some splashes fell on the clothes of the couple's girlfriend. The lover got very angry on seeing this. And he slapped the saint hard on the face. Holding the saint's clothes, he said - You are blind, you cannot see that you have splashed this mud on my girlfriend's clothes. All his clothes have become dirty. Now who will compensate for this? The lover had become very red with anger. But the saint was silent. He didn't say anything to that young man. People coming and going around were also watching this spectacle with great interest. No one tried to rescue that saint. Later that young man pushed the saint and made him fall in the mud. He left there laughing with his girlfriend. Then the saint raised his head towards the sky and said - "Wow my God, sometimes he feeds hot jalebi rabri and sometimes hot slap". Okay, as you wish, I am also happy in whatever you want. And then they get up again and start walking back on their way. On the other hand, the lover and the beloved walk a little ahead, that's why the young man stumbles and falls down very hard. His girlfriend screams very loudly. Everyone around gathers. She tries to wake him up. But her lover was not getting up. Blood was coming out of his head. The people standing there could not understand that how can so much blood come out when someone suddenly stumbles and falls. Only then some people see Sant ji coming from a distance and think that maybe Sant ji has cursed it. Because of which it has become like this. Everyone surrounds the saint and says what kind of saint you are, what kind of devotee you are, that when this young man got angry, you cursed him to die. Then the saint said - No, I did not curse him. But no one believed his words. Then the saint asked the people whether there was any such witness among you who had seen the whole incident. So a man said – Yes, I am a witness, I had seen the quarrel between you two with my own eyes. Then the saint said - did I dirty the clothes of this young man with my mud? The man said - No, you had got mud on his girlfriend's clothes. Then the saint said - then why did her lover slap me? Why did he get angry? Then the man said that it was natural for him to get angry because he was her lover. How could he see his girlfriend's clothes getting dirty. Then the saint laughed loudly and said - "When his lover could not tolerate the stain on his clothes, then how could God, my companion, my lover and my friend, tolerate the slap on me." God is my friend who loves me. All the kings and emperors are afraid of his stick. Saying this, the saint said - Go, take him to the hospital quickly. I will pray to my God that he is saved and forgives him. Saying this, the saint leaves from there.
So devotees, we learn from this story that there is no sound in the stick of God. We should never insult any true devotee and true saint. Because God can tolerate the insult done to him once, but cannot tolerate the insult of his devotees at all.

भगवान जो करता है अच्छे के लिए करता है | hindi story
















 

एक गरीब किसान था । वह नित्य प्रतिदिन शिव के मंदिर में जाया करता था । उसके बाद ही अपने खेत पर काम करने जाया करता था । उसके परिवार में उसकी पत्नी , एक बेटी और एक बेटा था । एक दिन किसान खेत पर जाने के लिए तैयार हो रहा था । तभी उसका बेटा और बेटी दोनों उससे बोले कि – पिताजी , आज हम भी आपके साथ खेत पर जाएंगे । किसान ने कहा – ठीक है , चलो । किसान अपने दोनों बच्चों को खेत पर ले गया । और उन्हें पास में एक पेड़ की छांव में बिठा दिया और अपने खेत में काम करने लगा। तभी वहां पर एक सांप आया और उसके बेटे को डस लिया । अपनी बेटी की जोर जोर से रोने की आवाज सुनकर किसान भागा आया और देखा कि उसका बेटा वहां पर मूर्छित पड़ा है , उसके मुंह से झाग निकल रहे हैं । तभी उसने एक सांप को वहां से जाते हुए देखा । वह अपने बेटे को लेकर गांव में आया और पूरे गांव में शोर मच गया कि किसान के बेटे को सांप ने डस लिया है । परंतु उस समय  गांव में कोई भी वैद्य नहीं था । जो गांव का वैद्य था वह किसी काम से दूसरे गांव में गया हुआ था । वह मन ही मन शिव जी को दोष दे रहा था , कि हे प्रभु मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूं ,तब भी आपने मेरे परिवार की रक्षा नहीं की । तभी वह देखता है कि एक अनजान सा आदमी उसके पास आता है और बोला कि – मैं एक वैद्य हूं । इस गांव से गुजर रहा था , तो लोगों को आपस में बातें करते सुना कि तुम्हारे बेटे को सांप ने काट लिया है ।  मैं इसे जड़ी-बूटी दे देता हूं । यह ठीक हो जाएगा , घबराने की कोई बात नहीं है । उस व्यक्ति ने उसके बेटे को जड़ी-बूटी घोलकर पिलाई और जहर को निकाल दिया । उसका बेटा थोड़ी देर बाद होश में आ गया । वह व्यक्ति वहां से चला जाता है । एक दिन किसान कुछ खरीदने के लिए बाजार में जा रहा था । तभी वहां पर दो बैलों को आपस में झगड़ते देखा । वह उन से बचते हुए निकल ही रहा था कि तभी एक बैल उसके पीछे तेजी से भागता हुआ आया । किसान को कुछ भी पता नहीं था । कि तभी एक व्यक्ति ने उस किसान का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया । परन्तु बैल के सींगों से किसान को थोड़ी सी चोट लग गई । किसान यह सब देखकर हक्का-बक्का सा रह गया था , उसे समझ ही नहीं आया कि यह एकदम से क्या हो गया । तब वह उस व्यक्ति से बोला कि यदि आप मेरा हाथ पकड़ कर ना खींचते , आज तो यह बैल मुझे मार ही देता । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । यह कहता हुआ किसान आगे चला गया और मन में कह रहा था कि हे शिव शंकर भगवान , क्या सारे कष्ट आपने मुझे ही देने थे । पहले मेरे बच्चे को सांप ने डस लिया और आज मैं मारा जाता । मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूं , फिर भी आप मुझे इतने कष्ट क्यों दे रहे हैं ? इस तरह वह मन ही मन भगवान को बहुत दोष दे रहा था । किसान मंदिर में जाकर शिव के सामने अपनी गरीबी को मिटाने के लिए प्रार्थना करता था । इस वर्ष उसकी फसल  बहुत ही अच्छी हुई थी । पूरे गांव में किसान के जैसी फसल किसी की नहीं हुई थी । उसके खेतों में सबसे ज्यादा गेहूं की पैदावार हुई थी । किसान बहुत खुश था और भगवान का धन्यवाद कह रहा था । किसान खेत में अपनी पत्नी को लेकर गेहूं की फसल काटने गया । रात होने को आ रही थी किसान ने अपनी पत्नी से कहा कि –  मैं आज रात खेत में ही रहकर अनाज  (गेहूं के दाने) की रखवाली करता हूं । कल दिन में इस अनाज को घर लेकर चलेंगे , तुम अब बच्चों के पास घर चली जाओ ।  किसान की पत्नी घर चली जाती है । किसान वहीं पर खाट बिछा कर लेट जाता है ।  तभी वह देखता है कि बहुत जोर से आसमान में बिजली कड़क रही है । वह ये देखकर घबरा जाता है । वह भगवान को मन ही मन कह रहा था कि हे भगवान वर्षा ना हो , वरना मेरा सारा अनाज बह जाएगा और मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी । लेकिन तभी बहुत जोर – जोर से वर्षा होने लगी और अनाज सारे खेतों में इधर-उधर बह गया  । उसकी फसल नष्ट हो गई ।  वह बहुत ही रोता है और रोते-रोते भगवान के मंदिर में जाता है । भगवान को जाकर बहुत ही भला बुरा कहने लगता है कि आपसे मेरी खुशी देखी नहीं गई , जो आपने बारिश कर दी । आपने ऐसा क्यों किया , मुझे लगा था कि इस बार मेरी फसल आपकी कृपा से बहुत अच्छी हुई है। लेकिन आप से ये देखा नही गया । मैं रोज आपके मंदिर में आता हूं तब भी आपने मेरा कुछ भी भला नहीं किया । बल्कि मुझे कष्ट देते जा रहे हो । वह शिवलिंग पर अपने माथे को पटक रहा था । उसकी पुकार सुनकर भगवान भोलेनाथ साक्षात प्रकट हो गए । और कहने लगे कि पुत्र क्या हुआ , क्यों रो रहे हो ?  वो कहता है कि आप अब भी पूछ रहे हो कि मैं क्यों रो रहा हूं ? क्या आप नहीं जानते ? मेरे रोने का कारण क्या है । भगवान उससे बोले कि तुम्हारी फसल नष्ट हो गई है , तुम इसलिए रो रहे हो ।  हां भगवन , आपने ऐसा क्यों किया । मेरी अच्छी फसल हुई थी । आपने वर्षा क्यों की ।  आप चाहते तो वर्षा को रोक सकते थे । फिर आपने मेरी फसल को बर्बाद होने से क्यों नहीं बचाया ?  भगवान कहते हैं कि –  मैं जो करता हूं ,  अपने भक्तों के भले के लिए ही करता हूं । तुम जानते हो जब तुम्हारे बेटे को सांप ने काटा था और तुम्हारे गांव में कोई भी वैद्य नहीं था । तब वह अनजान व्यक्ति जो वैद्य के रूप में आया था , वह मैं ही था । मैंने ही तुम्हारे बच्चे की रक्षा की ।  और तुम्हें बैल के मारने से जिस व्यक्ति ने पकड़कर खींचा था , वह भी मैं ही था । वरना वो बैल तुम्हें वही मार कर चला जाता और आज तुम जिंदा ना होते । और रही बात वर्षा होने की , तो तुम्हारी अच्छी फसल को देखकर कुछ गांव वाले तुमसे जलने लगे थे । इसलिए गांव के कुछ लोगों ने जब तुम अपनी पत्नी से बातें कर रहे थे तब तुम्हारे अनाज में जहर मिला दिया था । जिससे कि तुम्हारा पूरा परिवार खत्म हो जाए ,  इसलिए मैंने वर्षा की और तुम्हारी फसल को नष्ट कर दिया । भगवान की यह बात सुनकर वह हक्का-बक्का सा रह गया था । वह भगवान से क्षमा याचना करने लगा कि प्रभु आपकी बातें सुनकर मेरी आंखे खुल गई है । अब मेरी समझ में आ गया है कि भगवान जो करता है वह अच्छे के लिए ही करता है ।  भगवान हमारे जीवन में आने वाले दुखों से लड़ने की हिम्मत देता है। भोले नाथ किसान को आशीर्वाद देकर वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं । अब किसान के जीवन में जो भी कष्ट आता था उसके लिए वो भगवान को आरोप नहीं देता था । बल्कि मुसीबतों का हिम्मत से सामना करता था । वह नियम से प्रतिदिन शिव मंदिर में जाकर दुख को सहने की शक्ति मांगता था ।  अगली बार उसके खेत में फसल बहुत अच्छी हुई । और धीरे-धीरे वो बहुत ही धनवान होता चला गया ।


तो भक्तों , इस कथा से हमे यहीं सीख मिलती है कि भगवान जिसका हाथ एक बार थाम लेते हैं उसका हाथ कभी नहीं छोड़ते । एक बार भक्त चाहे भगवान को भूल सकता है, परंतु भगवान अपने भक्तों को कभी नहीं भूलते ।



There was a poor farmer. He used to go to Shiva's temple everyday. Only after that he used to go to work on his farm. He was survived by his wife, a daughter and a son. One day the farmer was getting ready to go to the farm. That's why both his son and daughter said to him - Father, today we will also go to the farm with you. The farmer said - Okay, let's go. The farmer took both his children to the farm. And made them sit under the shade of a tree nearby and started working in their field. Then a snake came there and bitten his son. Hearing the loud cry of his daughter, the farmer came running and saw that his son was lying there unconscious, foam coming out of his mouth. Then he saw a snake going from there. He came to the village with his son and there was a hue and cry in the whole village that the farmer's son had been bitten by a snake. But at that time there was no doctor in the village. The village doctor had gone to another village for some work. He was blaming Shiv ji in his heart, that O Lord, I worship you so much, even then you did not protect my family. Then he sees that an unknown man comes to him and said – I am a doctor. When I was passing through this village, I heard people talking among themselves that a snake has bitten your son. I give it herbs. It'll be fine, there's nothing to worry about. That person gave his son a drink mixed with herbs and the poison was removed. His son regained consciousness after a while. That person leaves from there. One day the farmer was going to the market to buy something. That's why I saw two bulls fighting with each other there. He was about to escape from them when a bull came running fast after him. The farmer did not know anything. That's why a person grabbed the farmer's hand and pulled him towards him. But the farmer was slightly hurt by the horns of the bull. The farmer was stunned to see all this, he did not understand what happened all of a sudden. Then he said to that person that if you had not pulled me by holding my hand, today this bull would have killed me. thank you so much . Saying this, the farmer went ahead and was saying in his mind that O Lord Shiva Shankar, did you have to give me all the troubles. Earlier my child was bitten by a snake and today I would have been killed. I worship you so much, yet why are you giving me so much trouble? In this way, he was blaming God a lot in his mind. The farmer used to go to the temple and pray before Shiva to remove his poverty. This year his crop was very good. No one in the whole village had a crop like that of the farmer. The highest yield of wheat was in his fields. The farmer was very happy and was saying thanks to God. The farmer went to the field to harvest the wheat crop with his wife. Night was coming, the farmer said to his wife that - I will stay in the field tonight and take care of the grains (wheat grains). Tomorrow we will take this grain home during the day, now you go home to the children. The farmer's wife goes home. The farmer lays down on the cot there. Only then he sees that lightning is thundering very loudly in the sky. He gets scared seeing this. He was telling God in his mind that O God, it should not rain, otherwise all my grain will be washed away and all my hard work will go in vain. But then it started raining very heavily and the grain got washed away all over the fields. His crop was destroyed. He cries a lot and goes to the temple of God crying. Going to God, he starts saying very good and bad that you have not seen my happiness, that you made it rain. Why did you do this, I thought that this time my crop has been very good by your grace. But this was not seen from you. I come to your temple everyday, even then you have not done me any good. Rather you are troubling me. He was banging his forehead on the Shivling. Hearing his call, Lord Bholenath appeared in person. And started saying what happened son, why are you crying? He says you are still asking why I am crying? don't you know What is the reason for my crying. God said to him that your crop has been destroyed, that's why you are crying. Yes God, why did you do this? I had a good crop. Why did you rain? If you wanted, you could have stopped the rain. Then why didn't you save my crop from getting ruined? God says that whatever I do, I do it only for the good of my devotees. You know when your son was bitten by a snake and there was no doctor in your village. Then that unknown person who came in the form of a doctor was me. I only protected your child. And the person who pulled you from being hit by the bull was also me. Otherwise that bull would have killed you and gone away and you would not have been alive today. And as far as rain is concerned, some villagers were envious of you after seeing your good crop. That's why some people of the village mixed poison in your grain when you were talking to your wife. So that your whole family is destroyed, so I rained and destroyed your crop. He was stunned after hearing these words of God. He started apologizing to God that Lord my eyes have opened after listening to your words. Now I have understood that whatever God does, He does for the good only. god humaRay gives courage to fight the miseries in life. After blessing the Bhole Nath farmer, he disappeared from there. Now the farmer did not blame God for whatever troubles he faced in his life. Rather he used to face difficulties with courage. He used to regularly go to the Shiva temple daily and ask for the strength to bear the pain. Next time the crop in his field was very good. And gradually he went on becoming very rich.


So devotees, we get a lesson from this story that God never leaves the hand of the one whom He holds once. Once a devotee may forget God, but God never forgets His devotees.

मेघनाथ को क्यों नहीं मार सकते थे राम | Why couldn't Ram kill Meghnath?











 

भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास काट कर वापस अयोध्या लौटे । तो उनका राजतिलक हुआ और राम राज्य की स्थापना हुई ।  तब एक बार अगस्त्य मुनि श्री राम से मिलने के लिए अयोध्या में आए । और बातों ही बातों में लंका युद्ध के प्रसंग पर बातें होने लगी । तब अगस्त्य मुनि बोले कि–  मेघनाथ को केवल लक्ष्मण जी ही मार सकते थे और किसी भी अन्य देवी , देवता के हाथों उसकी मृत्यु संभव ही नहीं थी । श्री राम जी इस रहस्य को जानते थे । परंतु वे अपने अनुज श्री लक्ष्मण की इस वीरता और त्याग को सारी अयोध्या के सामने लाना चाहते थे । ताकि घर – घर में लक्ष्मण की वीरता की बातें हो ।  इसलिए उन्होंने बड़े ही भोलेपन से अगस्त्य मुनि से पूछा कि हे मुनिराज , ऐसा क्यों ? कि सिर्फ लक्ष्मण ही मेघनाथ को मार सकता था । तब अगस्त्य मुनि ने कहा कि –  मेघनाथ को वरदान था कि सिर्फ वही उसे मार सकता है , जिस पुरुष में ये तीन बातें हो । पहली बात –  जिसने 14 वर्ष तक भोजन न किया हो , दूसरी बात –  जो 14 वर्ष तक सोया ना हो और तीसरी ये कि – जिसने 14 वर्ष तक अपनी स्त्री का मुख ना देखा हो । और यह तीनों ही बातें श्री लक्ष्मण जी से मिलती हैं ।  तब श्री राम जी को बहुत ही आश्चर्य हुआ और और कहने लगे कि हे मुनिराज – आपकी तीसरी बात तो ठीक है क्योंकि वनवास में लक्ष्मण ने  अपनी पत्नी का मुख ही नहीं देखा । किंतु पहली और दूसरी बात यह कैसे संभव हो सकता है कि लक्ष्मण ने 14 वर्ष तक भोजन नही किया और ना ही 14 वर्ष तक सोए हो  । तब श्री राम ने लक्ष्मण जी को अपने पास बुलाया । और  लक्ष्मण जी से पूछा कि –  अगस्त्य मुनि जो कह रहे हैं , क्या यह सच है ? वनवास के समय हमे जो भी भोजन या फल और कंदमूल प्राप्त होते थें , उसके मैं तीन हिस्से करता था । और एक हिस्सा मैं तुम्हे खाने के लिए देता था ।  तुम फिर 14 वर्ष तक बिना खाए कैसे रह सकते हो । और 14 वर्ष तक तुम सोए भी नही । ये कैसे संभव है ।   तब लक्ष्मण जी बोले – भैया , अगस्त्य मुनि सच कह रहे हैं , मैंने 14 वर्ष तक कुछ नहीं खाया । क्योंकि भोजन करने के उपरांत मुझमें नींद और आलस्य की प्रवृति उत्पन्न ना हो जाए  । इसलिए मैं भोजन नही करता था ।  क्योंकि रात्रि को भोजन के बाद नींद और आलस्य आ ही जाता है । और मुझे तो दिन और रात आपकी सेवा ही करनी थी । आपकी सेवा ही मेरा धर्म है । तो मैं कैसे नींद और आलस्य को अपने शरीर में प्रवेश करने देता । रात्रि में जब आप और सीता माता विश्राम करते थे , तब मैं आपकी कुटिया के बाहर जागकर पहरा देता था । मैंने गुरु विश्वामित्र से अपनी भूख पर नियंत्रण रखने की विद्या सीखी थी । उसी विद्या का प्रयोग करके मैंने अपनी भूख पर नियंत्रण रखा ।  एक बार रात्रि में पहरा देते समय निद्रा देवी ने मुझे घेर लिया था ।  तब मैंने निद्रा को अपने बाणों से बांध दिया  ।  तब निद्रा देवी ने  मुझे वचन दिया  कि – जब तक मैं भैया श्री राम के साथ वनवास में रहूं ,तब तक मुझ पर निद्रा देवी हावी नही होंगी । इसलिए मैं 14 वर्षों तक नहीं सोया , केवल आपकी सेवा करता रहा । क्योंकि मेरे जीवन का लक्ष्य सिर्फ आपके चरणों की सेवा करना ही है और कुछ भी नहीं । लक्ष्मण की यह बात सुनकर श्री राम प्रभु की आंखों में आंसू आ गए । और यह सब सुनकर श्री राम भाव विभोर हो गए और लक्ष्मण को गले से लगा लिया । तब श्री राम बोले कि –  लक्ष्मण , मैं तुम्हारा यह कर्ज कैसे उतारूंगा , तुमने तो मुझे अपना ऋणी बना लिया । इस जन्म में तुम्हारे जैसा भाई पाकर मैं धन्य हो गया । और मैं अपने हर जन्म में तुम्हे ही भाई  के रुप में पाना चाहता हूं ।   मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अगली बार जब मैं इस पृथ्वी पर जन्म लूंगा , तब तुम मेरे बड़े भाई के रूप में जन्म लोगे और मैं  तुम्हारा छोटा भाई रहकर तुम्हारी सेवा करूंगा , तुम्हारी आज्ञा मानूंगा ।  


तो भक्तों, इस दुनिया में परिवार से बढ़कर कुछ भी नहीं है परिवार का प्रेम ही सब कुछ है । भाई – भाई को आपस में प्रेम से रहना चाहिए । आपस में धन – दौलत के लिए झगड़ना नही चाहिए। एक भाई को दूसरे भाई की ताकत बनना चाहिए ।

Lord Shri Ram returned to Ayodhya after spending 14 years of exile. So he was crowned and the kingdom of Rama was established. Then once Agastya Muni came to Ayodhya to meet Shri Ram. In other words, talks started on the issue of Lanka war. Then Agastya Muni said that only Lakshman ji could have killed Meghnath and his death was not possible at the hands of any other deity. Shri Ram ji knew this secret. But he wanted to bring this bravery and sacrifice of his cousin Shri Lakshmana in front of the whole of Ayodhya. So that there should be talk of valor of Laxman in the house. That's why he very naively asked Agastya Muni that why, O Muniraj, why? That only Lakshman could have killed Meghnath. Then Agastya Muni said that – Meghnath had a boon that only he can kill him, the man who has these three things. The first thing - one who has not eaten food for 14 years, the second thing - one who has not slept for 14 years and the third thing - one who has not seen his woman's face for 14 years. And all these three things come from Shri Lakshman ji. Then Shri Ram ji was very surprised and started saying that O Muniraj – your third point is right because Lakshmana did not even see the face of his wife in exile. But first and secondly, how can it be possible that Lakshmana did not eat food for 14 years nor slept for 14 years. Then Shri Ram called Lakshman ji to him. And asked Lakshman ji that - what Agastya Muni is saying, is it true? Whatever food or fruits and tubers we used to get during the exile, I used to make three portions of it. And I used to give you a part to eat. How can you then live without eating for 14 years? And you didn't even sleep for 14 years. How is this possible? Then Lakshman ji said – Brother, Agastya Muni is telling the truth, I did not eat anything for 14 years. Because after having food, the tendency of sleepiness and laziness should not arise in me. That's why I didn't eat. Because after the meal at night sleep and laziness come. And I had to serve you day and night. Your service is my religion. So how do I allow sleep and laziness to enter my body. In the night when you and Sita Mata used to rest, I used to stand guard outside your hut. I learned the knowledge of controlling my hunger from Guru Vishwamitra. Using the same knowledge, I controlled my hunger. Once while guarding me at night, the goddess of sleep surrounded me. Then I tied sleep with my arrows. Then Nidra Devi promised me that - As long as I stay in exile with brother Shri Ram, then Nidra Devi will not dominate me. That's why I didn't sleep for 14 years, only served you. Because the goal of my life is only to serve your feet and nothing else. Hearing this from Lakshmana, tears welled up in the eyes of Lord Rama. And hearing all this, Shri Ram became very emotional and hugged Lakshmana. Then Shri Ram said - Lakshman, how will I repay this debt of yours, you have made me your indebted. I am blessed to have a brother like you in this birth. And I want to have you as my brother in every birth. I promise you that the next time I take birth on this earth, you will be born as my elder brother and I will serve you as your younger brother, obeying you.


So devotees, in this world nothing is more important than family, love of family is everything. Brother-brother should live with love among themselves. One should not fight for money and wealth. One brother should become the strength of another brother.

Gyan Ganga | महाभारत मे करोड़ो सेनिको का भोजन कौन बनाता था ?


 

महाभारत के युद्ध में कौरव और पांडवों दोनों ने दक्षिण भारत में स्थित उडुपी के राजा को युद्ध में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था । वे दोनों उडुपी के राजा को अपनी सेना में शामिल होने के लिए मनाने लगे । तब उडुपी के राजा श्री कृष्ण भगवान के पास गए और उनसे कहा कि– मैं इस युद्ध में शामिल होकर अपना योगदान देना चाहता हूं , किंतु मैं यह निश्चित नहीं कर पा रहा हूं कि किस तरफ से युद्ध  करूं । कृपया आप मेरा मार्गदर्शन करें ।  तब श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि – यदि तुम इस युद्ध में अपना सहयोग देना चाहते हो , तो तुम बिना लड़े भी इस युद्ध में अपना सहयोग दे सकते हो । करोड़ों सैनिक इस युद्ध में लड़ने के लिए तैयार है , परंतु मुझे उनके भोजन की बहुत ही चिंता है । हे राजन ! आप मेरे कहने से उन करोड़ों सैनिकों के भोजन की व्यवस्था कीजिए । यही आप का इस युद्ध में सबसे बड़ा सहयोग होगा । तब श्री कृष्ण के कहने पर राजा उडुपी करोड़ों सैनिकों के भोजन की व्यवस्था करने को तैयार हो गए । । परंतु उन्हें एक बात समझ नहीं आ रही थी । तब उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा कि हे प्रभु युद्ध में तो प्रतिदिन हजारों सैनिक मारे जाएंगे । तो मैं फिर कितने सैनिकों का भोजन प्रतिदिन बनवाया करूंगा ?  मैं चाहता हूं कि भोजन बिल्कुल भी व्यर्थ ना जाए और कोई भूखा भी ना रहे । तब श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि तुम मेरे पास रात को मूंगफली लाया करना । और मैं जितनी भी मूंगफली खाऊं , तुम समझना कि उतने ही  1000 गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाएंगे । इस प्रकार जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ । तब उडुपी नरेश प्रत्येक रात्रि को भगवान श्री कृष्ण के पास गिनकर मूंगफली रखते थे। श्री कृष्ण भगवान जितनी मूंगफली खाते थे  । उडुपी नरेश समझ जाते थे कि उतने ही हजार गुना सैनिक युद्ध में अगले दिन मारे जायेंगे। जैसे कि – श्री कृष्ण भगवान ने 50 मूंगफली खाई तो उडुपी नरेश समझते थे कि अगले दिन 50000 सैनिक युद्ध में मारे जाएंगे । तब वे उतने ही सैनिकों का खाना कम बनवाने की तैयारी करते थे । महाभारत का युद्ध जब समाप्त हुआ , तो राजा युधिष्ठिर ने उडुपी नरेश की बहुत प्रशंसा की । और कहने लगे कि आपने इतने सारे करोडों सैनिकों के भोजन की व्यवस्था इतनी अच्छी तरीके से की थी । और ना ही आपने भोजन को बिल्कुल व्यर्थ जाने दिया , आपने यह किस प्रकार किया था । तब उडुपी नरेश ने इस रहस्य से पर्दा उठाया और सभी को श्री कृष्ण के इस चमत्कार के बारे में बताया । सब श्री कृष्ण भगवान के प्रताप को जानकर उनके आगे नतमस्तक होकर शीश झुकाने लगे । 

इस प्रकार राजा उडुपी ने युद्ध में भाग लेने वाले करोड़ों सैनिकों के भोजन की व्यवस्था करने का कार्यभार संभाला था ।  आज भी कर्नाटक प्रदेश में स्थित कृष्ण मठ  में यह कथा बहुत ही प्रचलित है और प्रतिदिन सुनाई जाती है । कहते हैं इस कृष्णमठ की स्थापना राजा उडुपी ने की थी ।